इस्लाम के उदय के पूर्व सम्राट अशोक के बौद्ध धम्म की नीतियों के कारण बौद्ध धर्म और बौद्ध शासन भारत से लेकर अरब तक फ़ैल गया था. अर्बस्थान के पैगन केवल मूर्तिपूजक हिन्दू ही नहीं थे पर्याप्त संख्या में बौद्ध भी थे. अरब के काबा में तो इस्लामिक एन्सायक्लोपीडिया के अनुसार ३६० से अधिक हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियाँ थी और इस्लाम के प्रवर्तक पैगम्बर मोहम्मद के चाचा और परिवार उस विशालकाय मन्दिर के संरक्षक और महंथ थे.
मौर्य और शुंग वंश के बाद क्या हुआ
मौर्य और शुंग वंश के बाद मगध साम्राज्य के कमजोर पड़ने के कारण भारतवर्ष की सीमा के बाहर शासन कर रहे हिन्दू क्षत्रप शक, कुषाण और पह्लव जर्जर मगध साम्राज्य के अधिक से अधिक हिस्सों पर अधिकार करने केलिए आगे बढे. तुर्किस्तान से निकला कुषाण सबसे आगे बढ़कर भारत के भीतर तक घुसने में सफल हो गया. सीमावर्ती क्षेत्रों में बौद्ध धर्म की प्रबलता के कारण कुषाण हिन्दुओं का सबसे प्रतापी शासक कनिष्क बौद्ध धर्म अपना लिया. कुषाणों के समय तुर्किस्तान से लेकर वर्तमान अफगानिस्तान, समरकंद, स्वात, बाजूर, काफिरिस्तान आदि में बौद्ध शासन हो गया. इराक और अरब के अन्य राज्यों में बौद्ध शासन कब शुरू यह अभी अनुसन्धान का विषय है.
इस्लाम के उदय के बाद अरब, इराक में बौद्धों का क्या हुआ
अर्बस्थान (अरब) में जब इस्लाम का उदय हुआ तो देखते ही देखते यहूदियों, ईसाईयों, बौद्धिष्टों, हिन्दुओं आदि को तलवार के दम पर मुसलमान बना दिया गया. तुरगस्थान (तुर्की) के बुधिष्ट तो जल्द धराशायी होकर मुसलमान बन गये पर हिन्दू थोड़े वीर निकले. इसलिए तुर्को के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में शुरू हुआ तो उन सबको मुसलमान बनाने में पुरे सौ साल लग गये. इराक के अंतिम राजकुल का नाम बर्मक था. अलबरूनी के इतिहास के अनुवादक एडवर्ड डी सचौ ने लिखा है की इराक में नवबहार नगर नवबिहार का अपभ्रंश है. वह एक बौद्ध पीठ था. इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं, “इस पीठाधीश के पद को परमक (परमगुरु) कहते थे. अरब-इस्लामी आक्रामकों ने जब इराक पर हमला कर इराक को बल पूर्वक मुसलमान बनाया तब से परमक उर्फ़ बर्मक की धर्मसत्ता समाप्त हो गयी. परमक उर्फ़ बर्मक के इस्लामिक राजा बन जाने के कारन उसके अनुयायी जनता उसी के आज्ञा से मुसलमान बन गयी”.
अरबों द्वारा ईरान के पारसियों का इस्लामीकरण के बाद तुर्कों ने मार्कण्डेय नगर (समरकंद) के बौद्ध राजा को हराकर कब्जा कर लिया. ग्रीक इतिहासकार ओरियन के अनुसार मारकण्ड यह सागदियाना की राजधानी थी. मारकण्ड शायद वही नगर है जिसे ईरानी लोग आजकल समरकंद कहते हैं- Sir W Drummond का ग्रन्थ पेज ३२२
मारकण्ड वास्तव में मार्कण्डेय है अर्थात समरकंद नगर का पुराना नाम मार्कण्डेय नगर था क्योंकि वहां ऋषि मार्कण्डेय का आश्रम और गुरुकुल था. सागदियाना राजकुल प्राचीन शुद्धोधन शब्द है. समरकंद पर मुस्लिमों के अधिकार करने से पूर्व समरकंद बौद्ध नगर था और यहाँ का राजा भी बौद्ध था. अंतिम बौद्ध राजा का राजमहल अब तैमूर लंग का मकबरा कहा जाता है-पी एन ओक अब बारी भारतवर्ष की थी. इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं, “यूरेशिया के महान वैदिक आर्य संस्कृति के लोग (हिन्दू, बौद्ध) “अहिंसा परमोधर्म:” की मूर्खतापूर्ण माला जपते हुए “हिंसा लूट परमोधर्म:” की संस्कृति में समाते जा रहे थे.”
प्रतापी राजा दाहिर सेन से बौद्धों का विश्वासघात
भारतवर्ष पर आक्रमण केलिए खलीफा का गवर्नर हज्जाज ने अपने जैसे ही क्रूर शैतान मोहम्मद बिन क़ासिम को क्रूर लड़ाकों के साथ भेजा. कासिम ने अपनी सारी ताकत से सिंध के राजा दाहिर सेन पर आक्रमण किया पर दाहिर के सैनिकों ने उसे छठी का दूध याद दिला दिया. दुर्भाग्य से निरोनकोट और सिवस्तान के राजनीतिक बुद्धिष्टों ने राजा दाहिर सेन से ईर्ष्यावश गद्दारी करते हुए शैतान कासिम की भारी मदद की (इतिहासकार हेमचन्द्र राय चौधरी ने इस मत का समर्थन किया है). उनकी१ मदद से क़ासिम ने छल से अपने कुछ सैनिकों को रात के समय औरतो के वेश में स्थानीय औरतों के झुण्ड में दाहिर की सेना के पास भेजा. रोती बिलखती आवाजो के कारण राजा दाहिर उनकी मदद के लिए आए और कासिम ने अंधेरे का फायदा उठा कर अकेले दाहिर पर हमला बोल दिया. दाहिर हजारों हत्यारो के बीच लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किये. सिंध की राजधानी अलोर पर कासिम ने अधिकार कर लिया.
हज्जाज ने कासिम को संदेश भेजा, “काफिरों को जरा भी मौका मत देना. तुरंत उनके सिर कलम कर देना…यह अल्लाह का हुक्म है.”
कासिम के सिंध विजय के बाद बौद्धों का क्या हुआ
आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने सिंध विजय के बाद हिन्दूओं और बौद्धों के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया, हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं, इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए, तालाब में डूब मरीं. स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी. सिंध के राजा दाहिर और सिंध की जनता से गद्दारी कर मोहम्मद बिन कासिम को सहयोग देनेवाले राजनितिक बुद्धिष्ट भी नहीं बख्शे गये. उन्हें भी मौत या मुसलमान बनने में से एक को चुनना पड़ा. तारीखे हिंद और चचनामा के अनुसार अरब के मुस्लिम आक्रमणकारियों ने कराची के पास देवल मे 700 बौद्ध साध्विओ का सामूहिक बलात्कार किया. शांतिप्रिय और अहिंसक बौद्ध स्त्रियाँ हिंसक और रक्तपिपाशु जिहादी पैदा करने की मशीन बन गयी. कासिम जबतक सिंध पर पूरी तरह अधिकार किया तबतक सिंध लगभग पूरी तरह बौद्ध मुक्त हो गया था.
भारत के वीरों ने इस्लामिक शासन का अंत कर दिया
जिस तरह अलेक्जेंडर महान का विश्वविजय का सपना भारत के आगे घुटने टेक दिया था उसी तरह इस्लाम का विजय रथ भी भारतवर्ष के वीरों के आगे घुटने टेक दिया था. अरब आक्रमणकारियों ने कुछ समय तक सिंध, मुल्तान और वर्तमान अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों पर जो अधिकार किया था उसे भी कुछ ही वर्षों में रघुवंशी सिसोदिया वंश के राजा बप्पा रावल और गुर्जर प्रतिहार वंश के वीरों ने अरबों को खदेड़कर पुनः अपने कब्जे में कर लिया था. कश्मीर मे करकोटक वंश के ललितादित्य मुक्तपीड ने अरबों को वो धूल चटाई की सदियो तक कश्मीर की तरफ आँख नहीं उठा सके. उन्होंने अरबों को अरब तक खदेड़ कर मारा था. सम्पूर्ण भारतवर्ष एकबार फिर भगवामय हो गया परन्तु एक समस्या रह गयी थी.
एक गम्भीर समस्या की शुरुआत
वह समस्या थी अरब आक्रमणकारियों द्वारा सिंध और मुल्तान के हिन्दुओं को हिंसा, नरसंहार और बलात्कार के द्वारा जबरन बनाये गए मुसलमान. इस्लामिक आतंक से मुक्त होकर वे भी राहत की साँस ले रहे थे, उन्हें भी इस्लाम से घृणा था क्योंकि उन्हें जबरन मुसलमान बनाया गया था. वे वापस अपने पूर्वजों के सनातन धर्म में शामिल होना चाहते थे पर धर्म के कुछ ठेकेदार सनातन धर्म और उनके बिच दीवार बनकर खड़े हो गये. कुछ हिन्दुओं की मुर्खता ने उनके वापसी का मार्ग ही बंद कर दिया. इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं “वे विदेशी मुस्लिम बर्बरता के शिकार थे. उन्हें सुहानुभूति और सहारे की आवश्यकता थी पर उन्हें दुत्कार दिया गया. विवश होकर उन्हें भारत के शत्रुओं का पक्ष लेना पड़ा.” यह वह समय था जब ईसाई और मुसलमान तलवार के जोर पर गैरधर्मियों को जबरन अपने धर्म में शामिल कर रहे थे पर यहाँ अपने ही भाई बन्धु जो कुछ काल केलिए मजबूरी में मौत और बहन बेटियों के बलात्कार के डर से मुसलमान बन गये थे और अब खुद हिन्दू धर्म में वापस आना चाहते थे पर मुर्ख हिन्दू उन्हें अपने में शामिल करने केलिए तैयार नहीं थे.
अहिंसा परमोधर्म: की मुर्खता के बाद हिन्दुओं की यह दूसरी सबसे भयानक और घातक मुर्खता थी. इसका परिणाम यह हुआ की उन मुस्लिमों के वंशज हताश होकर अपना इतिहास उन्ही बर्बर आक्रमणकारी मुसलमानों में ढूंढने लगे जिससे भारत के भीतर ही भारत विरोधी शक्ति पनपने लगा जिन्हें सनातन संस्कार के कारन हिन्दू खत्म भी नहीं कर सकते थे. यही कारन है की जब ढाई सौ वर्षों बाद तुर्कों ने सिंध पर हमला किया तो सिंध के मुसलमानों ने आक्रमणकारियों का स्वागत किया और सिंध पर तुर्कों का स्थायी अधिकार हो गया. हिन्दुओं ने यही गलती आगे कश्मीर में भी दुहराया.
मुस्लिम आक्रमणकारी और भारतवर्ष के बौद्ध शासक
आगे भारतवर्ष के खुरासान में एक मुस्लिम शासक बना अलप्तगीन. उसने सुबुक्तगिन नामक तुर्की को सेनापति बनाया. मुसलमान भारतवर्ष को इस्लामिक राज्य बनाने केलिए लगातार अफगानिस्तान और भारत के हिस्सों पर आक्रमण करने लगे. मुस्लिम आक्रमणकारी बामियान के बौद्धों को आसानी से हराने में सफल हो गये. बामियान में बौद्धों का कत्लेआम कर और सत्ता पर अधिकार करने के बाद मुसलमानों ने काबुल के तुर्कीशाही बौद्धों पर हमला किया. तुर्कीशाही वंश के बौद्ध राजा लघमान तुर्क ने आत्मसमर्पण कर मुसलमान बनना स्वीकार कर लिया. उसके साथ ही सभी बौद्ध प्रजा मुसलमान बन गये और हिन्दू जो बच गये गांधार की तरफ भाग गये. काबुल के बचे हुए हिन्दुओं के सहयोग से गांधार (या उदभांड) के हिन्दूशाही वंश के कल्लर (ब्राह्मण) ने तुरंत बौद्ध से मुसलमान बने तुर्कीशाही वंश पर हमला कर दिया और काबुल पर अधिकार कर लिया. गांधार के हिन्दूशाही वंश ने मुसलमानों से कड़ा संघर्ष किया और उनके छक्के छुड़ा दिए. कहा जाता है एक वीर योद्धा जसराज ने मुहम्मद गजनी के बाप सुबुक्तगिन को इनके खुद के दरबार मे मारकर इनका सर मूलतान मे लाके टाँग दिया था.
हिन्दूशाही वंश का जयपाल जो अब लाहौर दुर्ग से शासन करता था गजनी तक जाकर मुसलमानों को हराया था. पर १००१ ईसवी में पुष्कलावती (पेशावर) की लड़ाई में मोहम्मद गजनवी से हार के बाद मुसलमानों द्वारा नरसंहार और बलात्कार के घृणित कुकर्मों से आहत हो प्रजा पर अत्याचार केलिए खुद को कसूरवार मान अग्नि में प्रवेश कर आत्महत्या कर लिया. जयपाल की मृत्यु के बाद भारतवर्ष के वर्तमान अफगानिस्तान जिसपर बौद्धों और हिन्दुओं का शासन था उसका लगभग पूरा इस्लामीकरण हो गया. अफगानिस्तान भारतवर्ष का वह हिस्सा है जहाँ ५०००० वर्ष पहले के मानवीय बसावट (वैदिक आर्य संस्कृति) का एतिहासिक सबूत मिला है (विकिपीडिया).
लाहौर के राजा अनंगपाल की सहायता नहीं करनेवाले बौद्ध राज्यों का क्या हुआ
राजा जयपाल के बाद पुत्र अनंगपाल ने गजनी से भयानक संघर्ष किया. अनंगपाल की सहायता के लिए भारत के दूर दूर के राज्यों ने सैनिक सहायता भेजी थी पर पड़ोस के स्वात, बाजूर और काफिरिस्तान के बौद्ध राज्यों ने कोई सहायता नहीं किया था. अनंगपाल की हार के बाद गजनवी केलिए उन राज्यों पर हमला करना आसान हो गया. उसने उन तीनों बौद्ध राज्यों पर हमला किया और बिना किसी बड़े संघर्ष के उनपर अधिकार कर लिया. वहां के बौद्ध राजा या तो मारे गये या बौद्ध प्रजा सहित मुसलमान बन गये. शांतिप्रिय, अहिंसक बौद्ध स्त्रियाँ हिंसक, रक्तपिपाशु जिहादी पैदा करने को मजबूर हो गये.
इस्लामिक शासन में बौद्धों के साथ क्या हुआ
मुसलमानों ने जब वर्तमान भारत के हिस्सों पर आक्रमण कर अधिकार किया उस समय बिहार, बंगाल में पाल वंश का शासन था जो की बौद्ध धर्म का समर्थक और संरक्षक था. बौद्ध अहिंसक होते थे, अतः उन्हें खत्म करना आक्रमणकारी मुसलमानों केलिए बहुत ही आसान होता था. बौद्धों के इस कमजोरी का अनुभव उन्होंने अरब, इराक, तुर्की, समरकंद, अफगानिस्तान आदि देशों में ही कर लिया था. पुरे इतिहास में एक भी बौद्ध राजा नहीं हुआ जिसने इस्लामिक आक्रमणकारियों से अपने राज्य, जनता और बौद्ध धर्म को बचाने केलिए कठिन संघर्ष किया हो. इसलिए उन्होंने तेरहवीं शताब्दी में ही लगभग पुरे बिहार और बंगाल पर अधिकार कर लिया था. बौद्धों को खत्म करने के साथ ही उन्होंने नालंदा, बिक्रमशिला जैसे अनेक विश्विद्यालयों, पाठशालाओं, बौद्ध, जैन, हिन्दू मन्दिरों, मठों को भी नष्ट कर दिया. स्थिति ऐसी हो गयी थी कि इस्लामिक शासन में भगवान बुद्ध और बुद्धिष्टों का देश भारतवर्ष से ही बौद्ध धर्म और बुद्धिष्ट लगभग समाप्त हो गये थे.
कुछ अन्य इतिहासकारों का मत है की नरपिशाच कासिम ने गाँव के कई मुखिया और उनके स्त्री बच्चों को बंधक बना लिया. उन्हें स्त्रियों का बलात्कार कर बेच देने तथा बच्चों को कत्ल करने की धमकी दी जिससे गाँव के मुखिया और स्त्री पुरुष कासिम की बात मानने को तैयार हो गये. फिर गाँव के सभी पुरुषों को बंधक बनाकर उनके स्त्रियों को अपने सैनिकों से साथ बचाओ बचाओ चिल्लाते हुए राजा दाहिर के पास भेज दिया. राजा दाहिर की मृत्यु के बाद सभी को जबरन मुसलमान बना दिया गया और इनमे से कुछ मुखिया ने राजा दाहिर के पुत्रों के विरुद्ध लडाई भी लड़ी.
साभार-https://truehistoryofindia.in/h से