आज ये सब इसलिए लिखना पड़ रहा है कि अभी तीन दिन पहले ही अहोबिलम मठ मंदिर को लेकर आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि इसे धार्मिक लोगों को संभालने दें। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा था कि आंध्र प्रदेश राज्य के पास अहोबिलम मठ मंदिर के लिए एक कार्यकारी अधिकारी नियुक्त करने के वास्ते कानून के तहत कोई अधिकार नहीं है। आंध्र प्रदेश में अभी जगनमोहन रेड्डी मुख्यमंत्री हैं जो घोषित इसाई है। उन्हें अहोबिलम मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में हर हाल में चाहिए? हाईकोर्ट से हार गए तो सुप्रीम कोर्ट चले गए।
सुप्रीम कोर्ट में राज्य ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धार्मिक लोगों को इससे निपटने दें। दरअसल आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार को कानून के तहत इस बात की कोई अथॉरिटी नहीं है कि वह अहोबिलम मठ मंदिर के लिए कोई एग्जीक्यूटिव ऑफिसर नियुक्त करे।
मंदिर अब सभ्यता के केंद्र नहीं रह गए जैसा कि वे 1925 से पहले थे। चूंकि सरकार ने उन्हें केवल पूजा स्थल के रूप में सीमित कर दिया, इसलिए हिंदू सभ्यता का विकास रुक गया। हमारे पूर्वजों ने इन मंदिरों में बहुत सारा खजाना रखा हुआ था, उन्होंने सोचा कि यह पैसा संकट में हमारी मदद करेगा लेकिन अब तक उसकी लूट ही होती रही है। पुरी मंदिर के रत्न भंडार का क्या हुआ ? हमारे मंदिरों से प्राचीन मूर्तियों की तस्करी की गई और उनकी जगह दूसरी प्रति लगाई गई। शायद यही कारण था कि कांग्रेस ने मंदिरों पर ही अधिकार कर लिया।
इस धर्मनिरपेक्ष लूट में चारों स्तम्भ एक साथ हैं। विधायिका ने बनाया असंवैधानिक कानून और लूटा मंदिर, न्यायपालिका जो संविधान की रक्षक है उसे मूर्खतापूर्ण तर्क देकर इसे होने दिया गया, मीडिया ने आंखें मूंद लीं और हमें इस मंदिर की लूट के बारे में कभी नहीं बताया और कार्यपालिका ने इस लूट को अंजाम दिया। हमारा संविधान धर्मनिरपेक्ष है इसलिए सरकार के स्वामित्व वाली कोई भी चीज अपने आप धर्मनिरपेक्ष हो जाती है, इसलिए सरकार मंदिर पर अधिकार कर लेती है। यह अब कोई धार्मिक स्थान नहीं है और यह धर्मनिरपेक्ष स्थान बन जाता है और सर्वोच्च न्यायालय इसमें हस्तक्षेप कर सकता है, सबरीमाला इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।
भारत में चर्च और मस्जिद स्वतंत्र हैं। वे सरकार को कोई पैसा नहीं देते हैं बल्कि उन्हें सरकार से पैसा मिलता है। कई सरकारें मौलवी को वेतन देती हैं वहीं दूसरी तरफ मंदिर के पुजारी को वेतन देना तो दूर वे हिंदू मंदिर से हर साल 1 लाख करोड़ रुपये लेते हैं और उन्हें कुछ भी नहीं देते हैं।
1947 के बाद भारत में जिन अत्याचारों का सामना हिंदू कर रहे हैं, उन्हें औरंगजेब के समय भी इसका सामना नहीं करना पड़ा और उन्हें इसकी जानकारी भी नहीं है। जल्द ही वे सभी मंदिरों को नष्ट कर देंगे जैसा कि तमिलनाडु एवं आंध्र प्रदेश में हो रहा है। वे मुस्लिम को पुजारी के रूप में नियुक्त करेंगे, वे परंपरा को बदल देंगे।
आज देश में जब राष्ट्रवादी सरकार है तो इस मामले में अब तक कोई संज्ञान क्यों नहीं लिया जा रहा ? देश की जनता ने इन्हीं कारनामों से दुखी होकर आपको भर भर कर वोट दिया है। आगे आपकी मर्जी आप भी नहीं कर पाए तो फिर कौन करेगा ?
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