भारतीय संविधान की प्रस्तावना में देश के एक गणराज्य होने की बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि देश के सभी नागरिकों को न्याय, आजादी और समानता मिलना सुनिश्चित की जाएगी। ये सारी चीजें कानून और नीतिगत कदमों की मदद से हासिल की जा सकती हैं। परंतु संविधान की प्रस्तावना में देश के नागरिकों के बीच भाईचारा बढ़ाने की बात भी कही गई है। भाईचारा समाज बनाता है, सरकार यह काम नहीं कर सकती। अक्सर भाईचारे की अनदेखी की जाती है। जब तक भारतीय समाज में भाईचारा पहले के मुकाबले बढ़ेगा नहीं तब तक अधिनायकवादी और सांप्रदायिक आवाजें सामने आएंगी और स्वतंत्रता तथा समानता को सीमित किए जाने को उचित ठहराएंगी। जिन समाजों में भाईचारा कम होता है, वहां आपसी विश्वास भी कम होता है और यह बात व्यक्तिगत और सामूहिक पहलों में नजर आती है। ऐसे में राज्य को वे कदम उठाने पड़ते हैं जो उसे तब नहीं उठाने होते जब समाज में भाईचारा होता।
दिल्ली पुलिस ने गत वर्ष हेलमेट न पहनने के जुर्म में करीब 10 लाख दोपहिया चालकों को पकड़ा। यह आंकड़ा बहुत व्यापक है। बहरहाल, बिना हेलमेट पहने सफर करना दिल्ली में आम है। एक सुरक्षा प्रदान करने वाले कानून की ऐसी अवहेलना दिखाता है कि समाज में बंधुत्व की भावना का किस कदर अभाव है। समाज इतने बड़े पैमाने पर इस कानून की अवहेलना करता है कि कानून प्रवर्तन करना लगभग असंभव है। यह बात असंख्य अन्य कानूनों पर भी लागू होती है। यही वजह है कि हमारे देश में मुकदमे इतने ज्यादा हैं। इनके चलते न्याय मिलने में देरी होती है और न्याय नहीं हो पाता।
इससे कारोबार की लागत बढ़ती है क्योंकि राज्य को सूक्ष्म स्तर पर हस्तक्षेप में व्यय करना होता है जबकि वह कानून का पालन होने की स्थिति में आवश्यक नहीं होता। बंधुत्व का अभाव अपवाद को बढ़ावा देता है। इससे समाज के एकजुट होकर काम करने की लागत बढ़ती है। इसका अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर होता है। युवावस्था में जब मैं दिल्ली में था तब वहां कचरा बटोरने वालों, वेंडरों आदि के लिए अलग सर्विस लेन होती थी। मौजूदा दौर की ऊंची इमारतों के वक्त में इसका अनुकरण किया जाता है।
इसे हाल ही में एक कार्टून में व्यंग्यात्मक अंदाज में पेश किया गया। कार्टून में एक परिवार मिस्र में छुट्टिïयां मना रहा है क्योंकि उनके फ्लैट के नवीनीकरण का काम चल रहा है। वह परिवार मिस्र में पिरामिड निर्माण के लिए भारी पत्थर ढो रहे दासों की अमानवीय हालत की बात करता है जबकि ठीक उसी वक्त उनके फ्लैट में काम कर रहे श्रमिकों को लिफ्ट का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होती और वे 50 किलो का सीमेंट का बैग पीठ पर लेकर सीढिय़ों से ऊपर चढ़ते हैं। ऐसे में सुधार कार्य जो कुछ दिन में हो जाना चाहिए वह हफ्तों चलता है। निर्माण की जगह पर काम करने वाले श्रमिकों को खुले में शौच के लिए मजबूर किया जाता है। वे एसयूवी के लिए सड़कें बनाते हैं जबकि उनको अपने बच्चों के साथ सड़क किनारे अस्थायी ठिकानों में रहना पड़ता है। समाज में इन बंधुओं को लेकर कोई भातृ भाव नहीं है। यही वजह है कि विनिर्माण की उत्पादकता में कमी है और पर्यावरण को भी बेतरह नुकसान पहुंच रहा है।
स्कूलों के मध्याह्नï भोजन आदि में होने वाले घोटालों और चोरियों आदि पर एक नजर डालिए, ये कितने आम हो चले हैं। जिस समाज में भातृ भाव कम होता है वहां ऐसी चोरियों को लेकर कोई अपराध बोध भी नहीं होता। वे अपने घर-परिवार से परे नहीं सोचते। ऐसी चोरियों को सामाजिक प्रतिबंधों की मदद से ही रोका जा सकता है। कानून प्रवर्तन या कानून निर्माण इसमें मदद नहीं कर सकता। मैंने जानबूझकर कम भातृत्व के कमजोर उदाहरण चुने हैं। मेरा मानना है कि सरकार के भीतर विश्वास की कमी के कारण निर्णय प्रक्रिया प्रभावित हो रही है, जाति और धर्म सरकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन की राह रोकते हैं, बच्चियों को लेकर लोगों में जो भावना है उनके चलते उनके लिए अवसर कम होते हैं। इन सबके चलते उत्पादकता कम होती है, कारोबार की लागत बढ़ती है और महंगी कानूनी प्रक्रियाओं में इजाफा होता है।
लोग अक्सर भारतीय अर्थव्यवस्था की जटिलता की बात करते हैं। मैं इससे सहमत नहीं। हमारी अर्थव्यवस्था में कुछ भी जटिल नहीं है। यह हमारे समाज की जटिलता है जो आर्थिक जटिलताएं पैदा करती है। भाईचारे की कमी के कारण जब किसी काम को प्रारंभिक स्तर से व्यापक स्तर पर लागू किया जाता है तो इस पर बुरा असर होता है। इसके चलते हम यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि विनिर्माण केवल औद्योगिक इलाकों और विशेष आर्थिक क्षेत्रों में ही संभव है। इन इलाकों में लागत को सीमित किया जा सकता है। अमीरों को प्लंबर, वेटर, कारपेंटर आदि की सेवा की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हैं, बिना यह सोचे कि ऐसे लोग खुद इनमें से किसी सेवा का इस्तेमाल नहीं करते। ऐसे में उनसे कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वे उनकी व्यापक समझ रखते होंगे और अच्छा प्रदर्शन करेंगे?
भाईचारे से जुड़े सवाल से सबसे बेहतर तरीके से सामाजिक सुधार आंदोलनों की मदद से ही निपटा जा सकता है। स्वास्थ्य, शिक्षा, सफाई और महिलाओं को समानता जैसे कुछ मुद्दे हैं जिनको लेकर ऐतिहासिक रूप से सरकार अग्रणी नहीं रही है। बल्कि सामाजिक आंदोलनों ने इनके विकास में अहम भूमिका निभाई है। केरल के मानव विकास का आधार एक सामाजिक आंदोलन था। बॉम्बे और बंगाल प्रेसिडेंसी तथा पंजाब में शिक्षा के विकास पर भी यही बात लागू होती है। आदिवासी समुदाय के साथ बंधुत्व की भावना की कमी ने उन्हें अधिकारविहीन किया है और देश के अधिकांश आदिवासी इलाकों में हिंसात्मक प्रतिरोध देखने को मिल रहा है। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ने भाईचारे की कमी को भड़काया है लेकिन यह समस्या की मूल वजह नहीं है। एक अर्थशास्त्री के रूप में मैं यह दावा नहीं कर सकता कि मैं भाईचारे की इस कमी की मूल वजह समझता हूं परंतु एक समाज विज्ञानी और सचेत नागरिक के रूप में मुझे लगता है कि देश के विकास के मार्ग में भाईचारे की यह कमी एक बड़ी बाधा है।
साभार- http://hindi.business-standard.com/ से