Tuesday, December 24, 2024
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ऐसे ‘नीरज’ को कोई कैसे भुलाए

१९ जुलाई की शाम जैसे ही खबर मिली नीरज जी नहीं रहे एकाएक विशवास ही नहीं हुआ। खबर की सच्च्चाई जानने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया । लगभग सभी ग्रुप में यह सन्देश मिला और नियति के क्रूर सत्य को मानना ही पड़ा। कब आँखों से आँसू बह चले पता ही नहीं चला। नीरज जी को मंचों से तो कई बार सुना था पर व्यक्तिगत रूप से मिलने का और बतियाने का सौभाग्य दो बार (सन 2007 तथा 2016) मुंबई में मिला। और वे क्षण ही मेरे जीवन की अनमोल थाती बन गए। 2007 की बात है -मुंबई भवन्स कल्चरल सेंटर में श्रद्धेय नीरज जी और आदरणीय कुंअर बेचैन जी की गीत संध्या के कार्यक्रम का कार्ड मिला । आप दोनों विभूतियाँ उस कार्यक्रम में स्वयं उपस्थित रहेंगी ऐसी कोई सूचना नहीं थी। मुझे लगा कोई गायक नीरज जी और बेचैन जी की कविताओं और गीतों का प्रस्तुतिकरण करेंगे। मैंने सोचा मुंबई के सीमेंट के जंगलों में नीरज जी के गीतों की बसंती बयार का झोंका ही महसूस हो जाए तो मुझ जैसे साहित्य और गीत प्रेमी के लिए संजीवनी सामान होंगे ।

मै करीब दो घंटों के सफ़र के बाद अपनी छोटी बहन के साथ हॉल में पहुँची । कार्यक्रम शुरु होने की घोषणा हुई। मंच पर अतिथियों का आगमन हुआ । अरे वाह ! नीsssssरज,जोर की आवाज मेरे मुँह से निकली। अगल-बगल के लोग ऐसे देखे मुझे जैसे मैंने कोई अनोखी बात कह दी हो क्योंकि वे लोग मेरी भावनाओं की तीव्रता को समझ ही नहीं पाए और न ही मेरी उनसे कोई अपेक्षा थी ।नीरज जी हमारे परिवार के अदृश्य सदस्य थे । हमारे पापा नीरज जी के बहुत बड़े प्रशंसक हैं ,उम्र में उनसे 5 वर्ष छोटे पापा ने उन्हें कई बार सुना ,कई बार उनसे मिले और उनके गीतों के दीवाने हो गए । हम भाई-बहनों ने जब से होश सँभाला यानि 8-10 वर्ष की उम्र से जिन गीतों को लगातार सुना था वे 4-5 गीत आज भी मुझे याद हैं -कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे , जो बीत गई वो बात गई , देखती रहो आज दर्पण न तुम , दुःख की दिवाली तम में ही सदा मनती है , समय की शिला पर मधुर चित्र कितने ,छुप-छुप अश्रु बहानेवालों -मोती व्यर्थ लुटानेवालों ।

हमारे पापा इन गीतों को लगातार गाया करते और हम लोगों को भी याद करवाते थे । हम भी मंत्रमुग्ध हो कर दोहराया करते थे। हम इन गीतों के अर्थ नहीं जानते थे न समझते थे पर पापा के पास हर गीत से जुड़ी कोई न कोई याद थी उनके संस्मरण हम सब डूब कर सुना करते थे । नीरज जी का प्रसिद्ध गीत ‘कारवाँ गुजर गया …..’मानो पापा की रूह में रच-बस गया था । पापा ने इस गीत से जुड़ा संस्मरण हमसे साझा करते हुए बताया था कि किस तरह कवि सम्मेलनों में नीरज जी उन दिनों सुपर स्टार हुआ करते थे और उनके प्रभावी ,मधुर मनमोहक स्वर पर तो फ़िदा थे सभी । 1958 -59 की बात है मुंबई के एक कवि सम्मलेन में नीरज जी आए थे स्वाभाविक था पापा उसमे शरीक हुए । नीरज ज को लोगों ने खूब सुना , किसी का मन नहीं भरा था पर हॉल के समय की भी कुछ सीमा थी । कवि सम्मेलन समाप्त हुआ । लोग अपने-अपने घरों को निकले । पापा भी स्टेशन आए रात के करीब दो बज रहे थे,लोकल गाड़ियाँ बंद हो चुकीं थीं । अब तो सबेरे चार बजे ही गाड़ियाँ चलनेवाले थीं सो वहीं प्लेटफ़ॉर्म पर बैठे । पर वहाँ बैठना मानो पापा के लिए वरदान बन गया । नीरज जी भी कुछ समय के बाद वहाँ पहुँचे । पापा की सीट पर ही बैठे और पापा तो मानो सातवें आसमान पर झूम रहे थे । आज तो उनके पसंदीदा स्टार कवि उनके साथ बैठे थे । थोड़ी देर में और भी लोग आ गए और महफिल एक बार फिर जम गई । सभी की माँग पर नीरज जी ने ‘कारवाँ गुजर गया ‘ फिर उसी धुन में सुनाया । लोगों की प्यास बढ़ती गई और नीरज जी का मधुकलश भी छलकता ही जा रहा था । न लोगों की चाहत खत्म हो रही थी न नीरज जी का गायन रुक रहा था । पापा को तो मुँहमाँगी मुराद मिल गई थी ,भावविभोर हो गए थे । पापा बताते हैं कि नीरज जी की आवाज मोहम्मद रफ़ी की आवाज पर भारी पड़ती थी । हम सोचते थे कि मोह.रफी से अच्छी आवाज भला और किसकी हो सकती थी और पापा बताते थे कि तुमने कभी नीरज को सुना नहीं है , एक बार उनको सुनोगी तो किसी को सुनना ही नहीं चाहोगी । पापा की उस समय की ख़ुशी को मैं आज भी उसी शिद्दत से महसूस कर लेती हूँ ।

और आज वही क्षण मेरे जीवन में आया था । हाँ बस,आज नीरज जी 84वर्ष के थे । मै ख़ुशी से झूम रही थी । आज गीतों के चक्रवर्ती सम्राट नीरज जी मेरे सामने थे । वैसे तो मैं सैकड़ों कवि सम्मलेन सुन चुकी थी पर इसमें कुछ विशेष था । एक तो नीरज और कुँअर बेचैन के गीत दूसरे अगले चार घंटों के लिए केवल दो ही गीतकार,एक घंटा बेचैन जी और दो घंटे सिर्फ नीरज जी को सुनना ,अहा हा!क्या रोमांच था ।आज नीरज जी भी मानो अपनी उम्र भूल चुके थे और मेरी दीवानगी भी अपने चरम तक पहुँच गई थी । क्या आलम था शब्दों में बयाँ करना मुश्किल है । सब कुछ शब्दातीत है ।नीरज जी का सुदर्शन व्यक्तित्त्व ,मधुर मोहक प्रभावी आवाज पापा के वर्णनों से हमारे कानो में रची बसी थी । उस दिन भी 83-84 की उम्र में मै युवा नीरज को ही देख रही थी ,सुन रही थी । मेरे लिए तो वक्त 1958-60 में ही ठहर गया था । एक घंटे के बाद 15 मिनट का विराम दिया गया था । मैं तुरंत अपना स्थान छोड़कर उठी,मंच की तरफ लगभग दौड़ते हुए गई क्योंकि चाहनेवालों का कारवाँ नीरज जी की तरफ बढ़ने लगा था । और मैं भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी । पर मंच तक पहुँचते -पहुँचते लोगों ने नीरज जी को घेर लिया था । हर व्यक्ति उनके साथ के क्षणों को मानो कैद करना चाहता था ।

मैं भीड़ के छँटने का इंतजार करने लगी थी तभी आयोजक ने माइक पर सभी से अपना स्थान लेकर मंच खाली करने का आग्रह किया । अरे! ये कैसे हो सकता है? आज तो मुझे नीरज जी से बात करनी ही थी । और लोग थे कि नीरज जो से अलग होना ही नहीं चाहते थे ।मैं आयोजक के निवेदन को अनसुना करते हुए मंच पर चढ़ गई और नीरज जी के पास पहुँची ।उनके चरण स्पर्श किए । आज मेरे बचपन का सपना साकार हो उठा था । नीरज जी ने मेरे सिर पर हाथ रखकर आशीर्वचन कहे । मैंने उनसे अपने पापा की उनके प्रति दीवानगी का जिक्र करते हुए कारवाँ गुजर गया गीत की फरमाइश कर डाली । उन्होंने पापा को स्नेह अभिवादन प्रेषित करते हुए हँसते हुए मुझसे कहा , “अब 84 साल की उम्र में 35 सालवाली वो आवाज कैसे सुनाऊँ हाँ वो गीत तुम्हारी फरमाइश पर जितना याद होगा उतना जरूर सुनाऊँगा ।”मेरी ख़ुशी का तो पारावार ही नहीं था । मैंने कहा उसकी आप फिक्र मत कीजिए जहाँ आप भूल जाएँगे मै आपको याद दिला दूँगी । अपने ऊत्साह में मैं यह भूल गई थी कि रचयिता भला अपनी रचना को बिसरा सकता है ? आयोजक ने लगभग डाँटते हुए कहा कि मैडम सभी लोग नीरज जी को सुनने के लिए ही आएँ हैं उनका भी ख्याल रखिये । इसी बीच मैंने नोकिया 3310 मॉडल का फोन जो मेरे पास था उसी पर नीरज जी के साथ एक फोटो भी खिंचवा ली थी । अब उस समय आज की तरह स्मार्ट फ़ोन तो था नहीं कि बढ़िया सी सेल्फी खीँच लेती ।

खैर अपनी सीट पर आकर बैठी ।उधर नीरज जी ने फिर प्रवाह पकड़ा,एक गीत और अपने दार्शनिक,आध्यात्मिक मुक्तकों के बाद मेरी फरमाइश पर अपना सदाबहार गीत गाना शुरु किया ।यह गीत,गीत मात्र नहीं हर उस व्यक्ति के जीवन की पीड़ा है,दर्द है ,आँसू है जिसने जीवन में कभी भी संघर्षों की उफनती नदी को पार किया है । मजहब , जात-पात,अमीर-गरीब,स्त्री-पुरुष से परे मुझ समेत लाखों लोगों के जीवन की सच्चाई है और इसीलिए यह गीत लोगों की जबान पर चढ़ गया था ।मुझ समेत हॉल में अनेक लोगों ने नीरज जी का यह गीत खड़े होकर सुना । तालियों की वो गड़गड़ाहट आज भी मेरे कानों में गूँज रही है और हमेशा मेरी स्मृतियों में गूँजती रहेगी । और फिर एक मौका मेरे जीवन में आया जब मई २०१६ में नीरज जी से फिर मुलाक़ात हुई ।मुंबई यूनिवर्सिटी के कन्वोकेशन हॉल में पासबाने-अदब की तरफ से एक इंडो-पाक मुशायरे का आयोजन किया गया था । जिसमे भारत-पाकिस्तान के कई सम्मानित अदबी लोग शामिल थे।इत्तफाक देखिये कि यहाँ भी मुझे पता नहीं था कि नीरज साहब इस मुशायरे में शिरकत कर रहे हैं ।पर ईश्वर शायद मुझे उनसे दुबारा मिलवाना चाहता था और एक बार फिर मैं नीरज जी के पास पहुँच गई थी ।बड़ी श्रद्धा से उनके चरण स्पर्श किए और बड़े स्नेह से उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज में मेरे सर पर हाथ रखा । अब उनकी उम्र ९० पार कर चुकी थी, थोड़े अस्वस्थ थे,पर उनकी जिंदादिली और दरियादिली में कोई कमी नहीं आई थी । हरेक से बड़ी गर्मजोशी से मिल रहे थे। अस्वस्थता के कारण हालाँकि धीरे-धीरे बोल रहे थे ,उन्होंने बताया कि अब साँस ज्यादा फूलती है ज्यादा देर तक बोलने में तकलीफ होती है ।मुझे आशीर्वचन देते हुए बोले, “ खूब पढ़ो, अच्छा पढ़ाओ”मैं भावविभोर हो गई । इस बार मेरे पास स्मार्ट फ़ोन था और इन अनमोल पलों को अपनी स्मृतियों में कैद करने में ज़रा सी भी देर नहीं की ।

नीरज जी की कविताओं और गीतों ने मेरे जीवन के अनेक मुश्किल पलों में मुझे हाथ देकर उबारा है । कभी मेरी सिसकियों की भाषा नीरज जी के गीतों में मिली तो कभी मेरी चाहत की आहों के शब्द उनकी कविताओं में मिले ।पीड़ाओं और संघर्षों के सागर में जब-जब खुद को अकेला पाया ,जब कभी स्वार्थी दुनिया के खंजरों से लहूलुहान हुई ,नौकरीपेशा जीवन की कठिनाइयों के कंटक चुभने लगे और जब-जब सपनों को ठोकर लगी इन तमाम तकलीफों में नीरज जी के गीत मेरे संबल बने हैं ।

कविता तब मीरा होगी जब हँसकर जहर पिया जाएगा
आँसू जब सम्मानित होंगे मुझको याद किया जाएगा ।

बंद कूलों में समंदर का शरीर कितु सागर कूल का बंधन नहीं है

एक दिन मैंने कहा यूँ दीप से ‘ तू धरा पर सूर्य का अवतार है’
मैं अकम्पित दीप प्राणों का लिए ,यह तिमिर तूफान मेरा क्या करेगा

पंथ की कठिनाइयों से मान लूँ मैं हार -यह संभव नहीं है
उस समय भी मुस्कुराकर गीत मै गाता रहा था
जबकि मेरे सामने ही लाश खुद मेरी पड़ी थी

काल बादलों से धुल जाए ,वह मेरा इतिहास नहीं है
गायक जग में कौन गीत जो मुझ सा गाए
मैंने तो केवल ऐसे गीत बनाए कंठ नहीं ,
गाती हैं जिनको पलकें गीली
स्वर – सम जिनका अश्रु मोतिया ,हास नहीं है
काल बादलों से धुल जाए वह मेरा इतिहास नहीं है …

जब सूना-सूना लगे तुम्हे जीवन अपना ,तुम मुझे बुलाना मैं गुंजन बन जाऊँगा
जिस दिन पथ पर सपनों की धूल उड़े ,तुम मुझे बुलाना मै चन्दन बन जाऊँगा

और हमेशा मुझे प्रेरणा देनेवाली यह कविता :–
छुप-छुप अश्रु बहानेवालों ,मोती व्यर्थ लुटानेवालों !
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है ।
चंद खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है ।

सचमुच रूमानियत , दर्द और हौसले का परचम अपने गीतों में लहरानेवाले नीरज जी एक ऐसा प्रबल प्रवाह थे जिसमें लाखों का जन सैलाब बहता रहा ।अहसासों के सौदागर , अनुभूतियों के जबर्दस्त गायक,मोहिनी आवाज के जादूगर नीरज जी कहीं जा ही नहीं सकते । जब-जब शोखियों में फूलों का शबाब घोला जाएगा, जब-जब आँसू को सम्मानित किया जाएगा और जब-जब किसी गुजरते कारवाँ का गुबार उठेगा गीतों का चक्रवर्ती सम्राट बादलों की ओट से झाँकता दिखाई देगा ।

गीतों की अनवरत गंगा बहानेवाले नीरज जी एक युग थे । शब्द शिल्पी नीरज गीत गाते -गाते भागीरथी प्रवाह में बहते-बहते अनंत असीम सागर में समाहित होकर महाप्रयाण कर चुके हैं । पर मेरी स्मृतियों में आज भी नीरज जी जीवंत हैं ।उन्हीं के शब्दों को उधार लेकर मेरा मन पुकार-पुकार कर कह रहा है –

गोपालदास सक्सेना के मर जाने से नीरज नहीं मरा करता है

पूर्णिमा पांडेय
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