नमिता गोखले की पुस्तक ‘राग पहाड़ी’ पर बातचीत
नई दिल्ली : उपन्यासकार एवं जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की सह-निदेशक नमिता गोखले के उपन्यास ‘राग पहाड़ी’ पर बातचीत का आयोजन राजकमल प्रकाशन द्वारा इंडिया हेबिटेट सेंटर में किया गया। इस मौके पर उपन्यासकार नमिता गोखले, अनुवादक पुष्पेश पन्त से आलोचक संजीव कुमार ने बातचीत की। रंगकर्मी नेहा राय एवं वाणी त्रिपाठी द्वारा मधुर स्वरों में पुस्तक से अंशपाठ भी किया गया। ‘राग पहाड़ी’ पुस्तक नमिता गोखले की अंग्रेजी किताब, ‘थिंग्स टू लीव बिहाइंड’ का हिंदी रूपांतर है, जिसका अनुवाद पुष्पेश पन्त ने किया और हाल ही में राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।
राग पहाड़ी का देशकाल, कथा–संसार उन्नीसवीं सदी के मध्य से लेकर बीसवीं सदी से पहले का कुमाऊं है| कहानी शुरू होती है लाल–काले कपड़े पहने ताल के चक्कर काटती छह रहस्यमय महिलाओं की छवि से जो किसी भयंकर दुर्भाग्य का पूर्वाभास कराती हैं| इन प्रेतात्माओं ने यह तय कर रखा है कि वह नैनीताल के पवित्र ताल को फिरंगी अंग्रेजों के प्रदूषण से मुक्त कराने की चेतवानी दे रही हैं|
“यह उपन्यास इतिहास की तरह धीरे-धीरे खुलता है। तिथियों, किवदंतियों, से गुज़रते हुए कब यह उपन्यास औपन्यासिक कृति में बदल जाता है इसका एहसास नहीं होता। यह नमिता जी के लेखन की ख़ासियत है।“कहना था आलोचक एवं बातचीत के सूत्रधार संजीव कुमार का।
कल की शाम श्रोताओं के भरे गुलमोहर हॉल में पहाड़ों के रंगीन किस्से बुरांश की फूलों की तरह महकने लगे थे।
उपन्यास का हिन्दी अनुवाद प्रोफ़ेसर पुष्पेश पन्त ने किया है। कल शाम अनुवाद की कठिनाइयों पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “इस उपन्यास में पहाड़ के सारे ताने-बाने हैं जो पहाड़ को पूरे देश से जोड़ती है, इसमें प्रकति के बदलते चित्र, संगीत, जीवन और पहाड़ की खुशबू निहित है| अनुवाद करते हुए मुझे कभी नही लगा की मै किसी पुस्तक का अनुवाद कर रहा हूँ,यह मेरे लिए गौरव के बात थी क्योंकि मैं इन्हीं पहाड़ों में पला –बड़ा हूँ और पहाड़ों की संस्कृति और रीति रिवाजों से परचित हूँ। इस उपन्यास में जिस तरह से पहाड़ की खूबसूरती एवं जीवन को दर्शाया गया है मुझे लगा कि काश यह पुस्तक मैंने लिखी होती।”
लेखिका नमिता गोखले ने कहा “इस उपन्यास को लिखने में मुझे 12-14 वर्ष लग गये, बाकी पुस्तकों के कारण इसके लिए कम समय निकाल पाती थी. यह कहानियां चित्रकारी के रंग और संगीत के स्वर एक अद्भुत संसार की रचना करते हैं, जहाँ मिथक–पुराण, एतिहासिक–वास्तविक और काल्पनिक तथा फतांसी में अंतर करना असंभव हो जाता है| यह कहानी है शाश्वत प्रेम की, मिलन और बिछोह की, अदम्य जिजीविषा की|”
संतोष कुमार
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