हिंदुस्तान संवादों में बात नहीं करता. डायलागबॉजी एक पूर्णत: विकसित कला नहीं होती. चार यार-दोस्तों या अजनबियों के सामने अपनी बात रखते वक्त हमारी आवाज भारी होकर बैरीटोन नहीं होती. सत्तर के दशक की फिल्मों की हालत नब्बे के दशक की कचरा फिल्मों सी होती. आलोचनाओं के परे भी जाया जा सकता है, यह सिखाने के लिए कोई नहीं होता. अगर अमिताभ बच्चन नहीं होते तो हमारे पास, हमारी फिल्मों के पास, हमारे देश के पास क्या-क्या नहीं होता, यह 540 पन्नों की किताब का मसौदा है. फिलहाल संक्षेप में ही जानने की कोशिश करते हैं, बच्चन साहब को दादासाहेब फाल्के सम्मान मिलने के अवसर पर, कि अगर वे न होते, तो कैसा होता?
सबसे पहले शायद यह होता कि किसी कवि या लेखक का लड़का हीरो बनने का सपना नहीं देखता. या उससे पहले यह होता कि कोई साधारण नैन-नक्श वाला हद से ज्यादा लंबा और पतला एक नौकरीपेशा नौजवान फिल्मों में हीरो बनने के बारे में सोचकर खुद पर हंसता और फिर इसे भूल जाता. बहुत बाद में यह होता कि उस कवि का पोता शायद अभिनेता नहीं होता. गर होता तो अच्छा अभिनय करने के लिए उस पर पचपन तरह के दबावों का भार नहीं होता. उसे कबड़्डी टीम खरीदने और प्रोड्यूसर बनने में एक्टिंग करने से ज्यादा खुशी मिलती है, खुलकर कहने में डर नहीं लगता.
हर शहर में अमिताभ बच्चन के बहरूपिये नहीं होते. उनको अपने-अपने शहर कस्बों में स्टार का दर्जा नहीं मिलता. उस दर्जी के यहां भीड़ कम रहती जो बच्चन-सा बनकर रहता है, 2015 में भी चौड़े बॉटम वाली पैंट पहनता है
बच्चन नहीं होते, तो रेडियो में आवाज का रिजेक्ट होना कूल नहीं होता. राजेश खन्ना के बाद अगला सुपरस्टार सीधे शाहरुख खान को होना होता. या फिर ओशो-मुग्ध न हो गए होते तो विनोद खन्ना को. बच्चन न होते, तो नसीरुद्दीन शाह कम नाराज होते. चालीस सालों तक कोई कमर्शियल एंटरटेनमेंट की विधा को रॉकस्टार अंदाज में इतना नहीं साध पाता. कौन बनेगा करोड़पति और क्या आप पांचवी पास से तेज हैं, में कोई अंतर नहीं होता.
हॉलीवुड के रॉबर्ट डि नीरो, अल पचीनो, मार्लन ब्रांडो, क्लिंट ईस्टवुड, शॉन कॉनरी, हैरीसन फोर्ड का जवाब देने के लिए हमारे पास कोई अभिनेता नहीं होता. अमिताभ बच्चन नहीं होते, तो हीरो की बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग से हमारी पहली मुलाकात गोविंदा ही कराते. और हम कभी भी आईने के सामने खड़े होकर शराबी की तरह नहीं बहक पाते. बच्चन नहीं होते, तो तमाम तरह के आरोप लगाने के बावजूद हर निर्देशक का सपना उनके साथ काम करना नहीं होता. अभिनय मेथड है या नेचुरल, हम इसी फेर में पड़े रहते. बच्चन नहीं होते, तो नाम की तरह लिखे जाने वाले हमारे कुछ गिने-चुने सरनेमों में से एक कम हो जाता.
हमारे पिता की पीढ़ी, सफेद फ्रैंच-कट दाढ़ी को नहीं अपनाती. सफेद शॉल फैशन नहीं बन पाती. तीन-चार पीढ़ियों को मिमिक्री का शौक नहीं लगता, अगर बच्चन नहीं होते. हांय! तो मुंबई के दर्शनीय स्थलों में बच्चन के मकान शामिल नहीं होते. ये सीधी हाथ की तरफ जलसा है, थोड़ी दूर पर प्रतीक्षा भी है, ले चलूं? पूछकर टैक्सी वाला सौ के तीन नोट नहीं लूट पाता. अगर बच्चन नहीं होते, तो हर बदलते वक्त में खुद को बदलने की अद्भुत क्षमता रखने वाले कलाकार से हमारा परिचय कभी नहीं हो पाता. री-इनवेंट कैसे किया जाता है अभिनय में, एक्टिंग क्लासों में नहीं सिखाया जा पाता, क्योंकि संदर्भ देने के लिए बच्चन नहीं होते.
तमाम आरोप लगाने के बावजूद हर निर्देशक का सपना उनके साथ काम करना नहीं होता. अभिनय मेथड है या नेचुरल, हम इसी फेर में पड़े रहते और नाम की तरह लिखे जाने वाले कुछ गिने-चुने सरनेमों में से एक कम हो जाता
हर शहर में अमिताभ बच्चन के बहरूपिये नहीं होते. उनको अपने-अपने शहर कस्बों में स्टार का दर्जा नहीं मिलता. उस दर्जी के यहां भीड़ कम रहती जो बच्चन-सा बनकर रहता है, 2015 में भी चौड़े बॉटम वाली पैंट पहनता है. मधुशाला महान ग्रंथ होता, लेकिन जन के मानस में ऐसे अंकित नहीं होता, जैसे अब है. एक कवि और उसकी कविताओं को नई टेक नहीं मिलती. नया आयाम. अगर बच्चन उन कविताओं के साथ नहीं होते. ऐसा कम ही होता है कि दुनिया ने पिता को जाना हो बेटे से, और जब बेटा पिता हुआ, उसका बेटा भी जाना गया हो पिता ही से.***
अगर बच्चन नहीं होते, तो हमें शाहरुख खान का इंतजार करना पड़ता यह समझने के लिए कि हर अभिनेता हर वक्त अभिनय करता है. वो सिर्फ फिल्म में अभिनय नहीं करता, जहां कहीं भी जीवित मनुष्य पाया जाता है, अभिनेता का अभिनय सतत चालू पाया जाता है.
अगर बच्चन नहीं होते, हमें यह भी कम समझ आता कि राजनीति क्यूं हर किसी के बस की नहीं है. गांधी परिवार और बच्चन परिवार के बीच क्या बचा है और कितना टूट गया है, हमें कभी पूरा पता नहीं चलेगा, यह भी समझ नहीं आता. उत्तर प्रदेश में अपराध होते रहते, लेकिन वे विज्ञापन नहीं होते जो मुस्कुराते हुए बच्चन को अपराध कम हैं, कहने को मजबूर करते. ‘आज रपट जाएं तो हमें न उठाइयो’ दोस्तों के साथ बारिश में गाने में मजा नहीं आता. ‘जुम्मा चुम्मा दे दे’ अश्लील हो जाता. रंग बरसे के बाद होली को कुछ और ज्यादा बनाने के लिए होली खेले रघुबीरा नहीं होता. कुछ लोग इस कदर निराले हो जाते हैं अपने काम से, कि फिर वे भले ही खराब फिल्में करें और दर्जनों घटिया विज्ञापन, हमें फर्क नहीं पड़ता, ये भी हम नहीं सीख पाते अगर बच्चन नहीं होते.
बच्चन नहीं होते, तो हम यह भी नहीं सोचते कि सत्तर का हो जाने पर कौन-सा खान उनके स्तर को छू पाएगा. कोई भी नहीं, हम यह भी नहीं कह पाते
अगर अमिताभ बच्चन नहीं होते, हमारा सिनेमा अभिनय के उस अनोखे मिजाज से महरूम रह जाता, जो किसी भी देश के सिनेमा की पहचान बनता है. वह घटना हिंदुस्तान के इतिहास में नहीं होती, जिसमें किसी अभिनेता की सेट पर हुई दुर्घटना के बाद पूरा देश मिलकर उसके लिए प्रार्थना कर रहा था. बच्चन नहीं होते, तो गरिमा से बोली जाने वाली हिंदी अपने अस्तित्व को खोने के डर में जीती और फिल्मों में अंग्रेजी भाषा के रिक्त स्थानों को भरने वाली भाषा बनकर रह जाती.
वे अफवाहें और गॉसिप नहीं होतीं, जिसमें बच्चन होते. अमिताभ बच्चन रिटायर कब होंगे? क्या बच्चन विग पहनते हैं? सलमान खान को वे पसंद करते हैं या नहीं? रेखा से अभी भी बात-मुलाकात होती होगी क्या? बच्चन नहीं होते, तो हम यह भी नहीं सोचते कि सत्तर का हो जाने पर कौन-सा खान उनके स्तर को छू पाएगा. कोई भी नहीं, हम यह भी नहीं कह पाते. लिविंग लेजेंड़ जैसे शब्द को तमगा बनकर टंगने के लिए आदमी नहीं मिलता. देश को इकलौता एंग्री यंग मैन नहीं मिलता. बच्चन नहीं होते, तो फिल्में थोड़ी कम अपनी लगतीं. हमें यह लिखने के लिए विशालतम-महानतम इंसान नहीं मिलता. सच ये है, अगर अमिताभ बच्चन नहीं होते, हम फिल्मी नहीं होते. देश हमारा, जितना है उतना, फिल्मी नहीं होता.
***(ऐसा कहना कई लोगों को आपत्तिजनक लगेगा कि अमिताभ की वजह से हरिवंश राय बच्चन जाने गए, लेकिन हिंदुस्तान में ऐसे अनेकों लोग हैं – बाहर तो हैं ही – जिनके जीवन में मधुशाला और हरिवंश राय बच्चन का आना अमिताभ बच्चन के आ जाने के बाद ही शुरू हुआ.)
साभार- https://satyagrah.scroll.in/ से