” दंगे का समय था | मुल्क में हवा भी डर कर बह रही थी | पर मेरा दरवाजा सुबह ४ बजे खुलता है | किसी ने मुझसे कहा कि आजकल मुल्क का माहौल ठीक नहीं है | आप अपने घर का दरवाजा बंद रखा कीजिये | मैंने जबाब दिया “आप चिंता मत कीजिये जनाब | मैं 76 करोड़ हिन्दुओ की निगरानी में रहता हूँ |”
“बाबरी कोई मक्का मदीना नहीं है | इसकी वजह से मुल्क १० साल पीछे चला गया | ”
“ शिवाजी को हम कट्टर मुस्लिम विरोधी के तौर पर देखते हैं | जबकि वो इतने अच्छे और चरित्रवान थे की उन्होंने गौहरबानो को माँ का दर्जा दिया था जो कि उनके दुश्मन की पत्नी थी | आज इतिहास में हम ये नहीं पढ़ते | क्युकि जो इतिहास हम लोग पढ़ते हैं वो हमारा नहीं है | इस मामले में हम विदेशियों पर निर्भर हैं | हमें खुद अपना इतिहास लिखना होगा | ”
“मक्का मदीना आज इतने सक्षम हैं जो खुद अपना खर्चा चला पा रहे हैं | पहले इनकी इतनी औकात नहीं थी जो खुद का खर्चा भी उठा सकें | काबे की सुरक्षा का इन्तेजाम हैदराबाद का निजाम की जिम्मेदारी थी | निजाम वहां का सारा खर्चा उठाया करता था | ”
ये सारे बयान पढ़कर क्या लगता है आपको ? यही न कि किसी संघी ने ये बाते कहीं हैं | या ये किसी भाजपाई के बयान हैं | अगर वाकई आपको लगता है कि ये किसी संघी के उद्गार हैं तो माफ़ कीजियेगा आप बिलकुल गलत हैं | ये उद्गार व्यक्त किये हैं प्रसिद्ध शायर मुन्नवर राणा ने | दिनांक 23 सितम्बर 2014, स्थान कामराज ऑडिटोरियम वेल्लोर इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, वेल्लोर, तमिलनाडु | हिंदी लिटरेरी असोसिएशन के कार्यक्रम में राणा साहब आये हुए थे | विद्यार्थियों के बीच बोलते समय उन्होंने पाकिस्तान को भी जमकर ललकारा | मैं उस वक्त वहीँ श्रोताओं में उपस्थित था | ये सारे बयानात मैंने वही बैठकर कलमबद्ध किये थे |
उन्हीं आज राणा साहब को ABP न्यूज़ पर सुना | सहसा आखों पर विश्वास नहीं हुआ | क्या ये वही साहित्यकार हैं जिन्हें मैंने महज साल भर पहले सुना था | जो शख्स खुद को संघियों से बड़ा राष्ट्रवादी बताता रहा हो वो साहित्यकार आज कह रहा है कि “गर मुस्लमान पटाखा फोड़ दे तो आतंकवादी हो जाता है ?” जाहिर है ये उन्होंने मेनन के लिए कहा है | तो क्या मुंबई बम विस्फोट राणा साहब के लिए महज पटाखा भर है ? आप तो प्रखर राष्ट्रवादी थे सर | आपने तो सिन्धु पर लिखा कि “जहाँ से ये गुजरे समझो हिन्दुस्थान है |” आज उसी हिन्दुस्थान में बैठ कर आप हिन्दू मुसलमान करने लग गए ? क्यों सर क्यों ?
आज तक मैं समझता था कि एक शायर जिसने माँ पर लिखा हो, जिसने खुद मुस्लिम होकर शिवाजी को समझा हो कम से कम वो देश में सोचे समझे प्रायोजित बोद्धिक आतंकवाद की भर्त्सना करेगा | उन लेखकों का विरोध करेगा जो साहित्य की आड़ लेकर अपनी राजनैतिक रोटियां सेक रहे हैं | पर आप भी उसी गुट के हाथों की कठपुतली बन गए ? ऐसी कौन सी मजबूरी है जो आपको उन कथित साहित्यकारों का साथ देने को मजबूर कर रही है जिनकी रोटियां फोर्ड के चंदे से चलती है ? आप तो फकीर थे आप तो ऐसे न थे | या ये मान मान लिया जाये कि बाकियों की तरह आप की भी अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा है | क्या ये मान लिया जाये कि आज आप भी सत्ता की उस नाली में बहने को बेताब हैं जिस नाली में बहना आपको नापसंद था ?
दादरी की घटना पर पुरे हिन्दुस्थान का मत साफ़ है | हर कोई दु:खी है अखलाक के मरने पर | अपने दुःख को सभी व्यक्त कर रहे हैं | आप भी कीजिये | पर जायज तरीके से कीजिये | यूँ सुर्खियाँ बटोरने के लिए बिग बॉस वाले ड्रामे मत कीजिये | आप कलम के सिपाही हैं आप कलम उठाइए | देश में प्रशांत नाम का लड़का भी मरा है | कुछ उस पर भी विचार कीजिये | सत्य लिखने का साहस कीजिये | अन्यथा जो कलम सत्य नहीं लिख सकती फिर उस कलम का टूट जाना ही बेहतर है | आशा करता हूँ आप मेरा आशय समझ रहे होंगे |