कहते हैं कि जब आपके हौसले बुलंद हों तो आपको कामयाबी पाने से कोई ताकत नहीं रोक सकती है। कुछ ऐसी ही कहानी है झारखंड के सरायकेला खरसावां के उपायुक्त रमेश घोलप की जिनका बचपन कभी एक-दो रुपये के लिए तरसता था लेकिन आज वो देश की सबसे प्रतिष्ठित संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के तौर पर कार्यरत हैं। रमेश घोलप साल 2012 के आईएएस अधिकारी हैं और सरायकेला खरसावां जिले के उपायुक्त हैं। इससे पहले वो खूंटी के एसडीएम थे। रमेश ने जहां कहीं भी अपनी सेवा दी है, वहां उन्होंने अमिट छाप छोड़ी है। लोग कहते हैं कि रमेश घोलप न केवल मिलनसार अधिकारी हैं बल्कि लोगों का दु:ख दर्द बखूबी समझते हैं और उसे दूर करने की कोशिश करते हैं। तभी तो आज वो लोगों के बीच पेंशन दिलाने वाले साहब के रूप में चर्चित हैं।
दरअसल, रमेश का बचपन अभाव में गुजरा है। उनके पिता गोरख घोलप साइकिल की दुकान चलाते थे लेकिन शराब ने उन्हें जकड़ रखा था। सारी कमाई शराब की भेंट चढ़ जाती थी। उनकी मां विमल घोलप ही काम कर चार लोगों के परिवार का भरण-पोषण करती थीं। कुछ दिनों बाद गरीबी और इलाज के अभाव में पिता की मौत हो गई। फिर मां ने ही दोनों बच्चों को पाला-पोसा और पढ़ाया लिखाया। रमेश लकवाग्रस्त होने के बावजूद मां के काम में हाथ बंटाया करते थे। उनकी मां खेतों में काम करने के बाद चूड़ियां भी बेचा करती थीं।
साल 2005 में जब पिता की मौत हुई तब उसके तीन दिन बाद ही मां ने समझा-बुझाकर रमेश को 12वीं की परीक्षा देने भेज दिया था, यह कहते हुए कि तुम्हें पढ़ना होगा और परिवार के हालात बदलने होंगे। तब शिक्षकों ने भी रमेश को खूब समझाया था। कड़ी मेहनत से रमेश ने 12वीं की परीक्षा में 88.5 फीसदी अंक हासिल किए थे। उसके बाद एडुकेशन में डिप्लोमा कर लिया ताकि नौकरी पकड़कर घर-परिवार की जिम्मेदारी संभाल सकें। साल 2009 में रमेश एक टीचर बन चुके थे लेकिन उनकी मंजिल कहीं और थी। उन्होंने नौकरी से 6 महीने की छुट्टी ले ली और प्रशासनिक अधिकारी बनने के लिए यूपीएससी की परीक्षा दी लेकिन साल 2010 में उन्हें सफलता नहीं मिली। मां ने गांववालों से कुछ पैसा इकट्ठा कर रमेश को फिर से पढ़ने को कहा। इसके बाद उन्होंने पुणे में रहकर कड़ी मेहनत की और साल 2012 में यूपीएससी की परीक्षा में 287वां रैंक हासिल किया।
आज वो झारखंड सरकार में सरायकेला खरसावां के उपायुक्त हैं। लोग कहते हैं कि डीसी साहब लोगों को वृद्धा पेंशन दिलाने में बहुत मदद करते हैं। दरअसल इसके पीछे भी रमेश घोलप की कहानी जुड़ी है। जब उनकी मां वृद्धा पेंशन लेने जाती थी तो उन्हें बहुत तकलीफ होती थी, रिश्वत भी देनी पड़ती थी। रमेश इसी पीड़ा को समझते हैं इसीलिए वो लालफीताशाही के खिलाफ खुद जरूरतमंदों को इंदिरा आवास या अन्य लाभ पहुंचाने में जुटे रहते हैं।
साभार-http://www.jansatta.com/ से