Saturday, November 23, 2024
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जगन्नाथ संस्कृति में चार का महत्त्व

ओडिशा प्रदेश एक आध्यात्मिक प्रदेश है जिसे पौराणिक काल से कुल चार क्षेत्रों-शंख क्षेत्र,चक्र क्षेत्र,गदा क्षेत्र और पद्म क्षेत्र के रुप में विभाजित किया गया है।भुवनेश्वर को चक्र क्षेत्र,जाजपुर को गदा क्षेत्र,कोणार्क को पद्म क्षेत्र तथा पुरी क्षेत्र को शंख क्षेत्र माना गया है।सबसे अनोखी बात तो पुरी धाम के अवलोकन से स्पष्ट होती है कि पुरी धाम का आकार पूरी तरह से शंख की आकृति का है।जगन्नाथ संस्कृति के सात्विक और तात्विक अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि यह संस्कृति भारतीय संस्कृति की पर्याय है।

ओडिशा जगन्नाथ संस्कृति के शोधकर्ता तथा विद्वान तो जगन्नाथ संस्कृति को वास्तविक रुप में जगन्नाथ संस्कृति ही मानते हैं।ओडिशा के इष्टदेव,कुलदेव,ग्रामदेव और राज्यदेव तो जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ ही हैं।जगन्नाथ संस्कृति में चार का महत्त्व स्पष्ट नजर आता है क्योंकि यह संस्कृति चार प्रकार के ऐश्वर्यःअर्थ,धर्म,काम तथा मोक्ष को प्रदान करती है।जगन्नाथ संस्कृति शुभकारी है,मंगलकारी है,शाश्वत जीवन-मूल्यों पर आधारित तथा सभी प्रकार से फलदायी है।वैसे तो दिशाएं चार हैं-उत्तर,दक्षिण,पूर्व और पश्चिम और इनका आध्यात्मिक महत्त्व अगर जानना हो तो जगन्नाथ संस्कृति को जानें। युग चार हैं-सत्युग,त्रेता,द्वापर तथा कलियुग।

मनुष्य के चार पुरुषार्थ हैं-धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष। धर्म के आधार भी चार हैं-सत्य,तप,दया और दान।हमारे वेद भी चार हैं-ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद तथा अथर्वेद। हमारी सनातनी सामाजिक व्यवस्था में भी चार वर्ण हैं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। सनातनी चार आश्रम हैं-ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वाणप्रस्थ और संन्यास।हमारे16 संस्कारों में विवाह-संस्कार सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है जिसमें भी चार फेरों का सफल गृहस्थ जीवन के लिए सबसे अधिक महत्त्व है। हमारे परम पूज्य भी चार हैं-मां,बाप,सद्गुरु और अतिथि।जगन्नाथ संस्कृति का मूल संदेश है- अतिथिदेवोभव। हमारे पूज्य ग्रंथ भी चार हैं-रामायण,गीता,श्रीमद्भागवत और महाभारत।ओडिया रामायण,महाभारत आदि के अध्ययन से पता चलता है कि यहां के धर्मग्रंथों में भी चार के महत्त्व (जो जगन्नाथ संस्कृति के महत्त्व हैं) हैं।मानव-जीवन में सत्य के साक्षात्कार के भी चार मार्ग हैं-ज्ञान,कर्म,भक्ति और योग।जगन्नाथ संस्कृति में भी ज्ञान,कर्म,भक्ति और योग की शक्ति को जाना जा सकता है। हमारे चार धाम हैं-श्री जगन्नाथ पुरी,द्वारका,रामेश्वरम् और बदरीनाथ धाम। भगवान विष्णु भी अपने चतुर्भुज रुप में चार आयुध धारण किये हैं- शंख,चक्र,गदा और पद्म।सबसे बडी अनोखी बात राजनीति से संबेधित है जिसमें भी चार ही मूल सूत्र हैं-साम,दाम,दण्ड और भेद।

जगन्नाथ संस्कृति की इसी महत्ता को आत्मसात करने के लिए भारत के राजनेता,धर्मगुरु तथा न्यायवेत्ता पुरी आते हैं और चार से मिलते हैं,चार के दर्शन करते हैं जिनमें स्वयं मानवता के स्वामी जगमन्नाथ भगवान हैं,जगतगुरु शंकराचार्य गोवर्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर परमपाद स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाभाग,पुरी के गजपति महाराजा तथा जगन्नाथ जी के प्रथमसेवक श्री श्री दिव्य सिंहदेव जी महाराजा तथा जगन्नाथ मुक्तिमण्डप के जगन्नाथ संस्कृति के विद्वानगण हैं। मानव-जीनव की सार्थकता बल,बुद्धि,विद्या तथा चरित्र में विनम्र होकर सुख,शांति तथा समृद्धि के साथ इस मृत्युलोक में पूरे आनन्द के साथ रहने में है जिसके साक्षात प्रमाण पुरी का यह धर्मकानन और यहां के सभी मठों के मठाधीशगण हैं।

स्वस्थ जीवन के लिए भी चार की आवश्यकता अनिवार्य हैःशरीर,मन,सकारात्मक सोच तथा शारीरिक-मानसिक दोनों रुपों में तनावमुक्त होकर अपने कर्तव्य पथ पर सतत अग्रसर होना तथा जगन्नाथ की सेवा तथा भक्ति में अपने आपको लगाये रखना।इसी प्रकार सभी प्रकार की साफ-सफाई,समयनियोजन,कार्यसंस्कृति तथा दूरदर्शिता भी आवश्यक है।गौरतलब है कि ओडिशा की वर्तमान लोककल्याणकारी सरकार ने जगन्नाथ संस्कृति के महत्त्व को समझकर जगन्नाथ मंदिर पुरी कोरिडोर को नया कलेवर प्रदान कर दिया है जिसके तैयार हो जाने से देश-विदेश के लाखों जगन्नाथ भक्तों को जगन्नाथ संस्कृति के प्रत्यक्ष अवलोकन का अवसर सुगमतापूर्वक मिल रहा है।

श्रीमंदिर के रत्नवेदी पर साक्षात ऋग्वेद के रुप में विराजमान हैं जगन्नाथ जी,बलभद्र जी साक्षात सामवेद हैं,देवी सुभद्रा माता साक्षात यजुर्वेद हैं तथा सुदर्शनजी साक्षात अथर्वेद के रुप में विराजमान होकर प्रतिदिन पूजे जाते हैं।जगन्नाथ रथयात्रा से जुडे भगवान अलारनाथ जी की काली प्रस्तर की प्रतिमा चतुर्भुज नारायण की है। रथयात्रा से तंबंधित गुण्डीचा मंदिर को भी गुण्डीचा घर,ब्रह्मलोक,सुंदराचल तथा जनकपुरी कहा जाता है। हमारे चार धाम हैं-सत्युग का धाम बदरीनाथ।त्रेता युग का धाम रामेश्वरम्,द्वापर का धाम द्वारका तथा कलियुग का धाम पुरुषोत्तम धाम।श्रीमंदिर के चार महाद्वारःपूर्व का प्रवेशद्वार सिंहद्वार कहलाता है जो धर्म का प्रतीक है।

श्रीमंदिर का पश्चिम का द्वार व्याघ्रद्वार है जो वैराग्य का प्रतीक है। श्रीमंदिर के उत्तर दिशा के द्वार का नाम हस्ती द्वार है जो ऐश्वर्य का प्रतीक है और श्रीमंदिर के दक्षिण दिशा के द्वार का नाम अश्व द्वार है जो ज्ञान का प्रतीक स्वरुप है।जगन्नाथ संस्कित के आधार पर यह भी सच है कि भगवान जगन्नाथ पुरी धाम में सगुण-निर्गुण,साकार-निराकार,व्यक्त-अव्यक्त और लौकिक-अलौकिक के समाहार स्वरुप हैं जिसके विषय में स्कन्द पुराण,ब्रह्मपुराण,पद्मपुराण तथा नारद पुराण में है।भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा धर्म,ज्ञान,भक्ति और दर्शन की आधारभूमि है।जगन्नाथ संस्कृति की सबसे बडी बात यह है कि जिस बडदाण्ड(चौडी सडक) पर भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा आगामी 20जून,2023 को अनुष्ठित होगी उस दौरान रथारुढ भगवान जगन्नाथ के दर्शन के समय उस बडदाण्ड का कण-कण भी हमारे चारं ऐश्वर्य को प्रदान करता हैं।

(लेखक भुवनेश्वर में रहते हैं व ओड़िशा के सांस्कृतिक, धार्मिक, साहित्यिक व ऐतिहासिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)

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