Saturday, November 23, 2024
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जम्मू कश्मीर के प्रति केंद्र सरकार की सोच में सकारात्मकता

जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती जी ने २५ अगस्त के दिन कहा है कि कश्मीर घाटी में जो उत्पात ८ जुलाई के बाद 3 आत्तंक्वादी मारे जाने के वाद मचा है उस के पीछे सिर्फ ५ प्रतिशत ही घाटी के लोग हैं और बाकी ९५% लोग शांति से हल चाहते हैं , बे कश्मीर “इशू” के साथ हैं जिस का समाधान होना चाहिए, चर्चा होनी चाहिए , पर पथ्राब करने से- कैम्पों पर हमला करने से कोई मसला हल होने बाला नहीं है ! मुख्य मंत्री जी के साथ उस समय केंद्रीय ग्रेह्मंत्री राजनाथ सिंह बैठे थे जिन्हों अपूर्व संजम का परिचय दिया ! पर महबूबा जी को अब सिर्फ यह भी साफ़ कर देना होगा कि उन के अनुसार कश्मीर “इशू” क्या है और विना इस को देश के सामने रखे उन की शांति और स्थिरता यात्रा शायद आरम्भ ही न हो पाए! जम्मू कश्मीर के बारे में बात करते हुए अब शब्दों का खेल बंद करना होगा !

इसी दिशा में राजनाथ सिंह जी ने “इंसानियत – जम्हूरियत – कश्मीरियत” के नारे की पहली बार १० अगस्त को कुछ व्याख्या ( कश्मीरियत जम्हूरियत में इंसानियत से रह सकती है ) कर दी है जो एक अच्छा कदम है, कुछ तो कहा गया है ! लेकिन “इंसानियत – जम्हूरियत – कश्मीरियत” के नारे पर जो प्रश्न जम्मू कश्मीर विधान सभा सदस्य इंजिनियर रशीद ने उमर अब्दुल्लाह, उमर फारूक, गिलानी, जैसे नेताओं के साथ साथ भारत सरकार पर खड़े किए हैं उस के लिए भारत सरकार को राज नाथ सिंह जी द्वारा की गई व्याख्या पर कुछ और विस्तार से कहने कि जरूरत है!

८ जुलाई २०१६ के बाद के घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में यह कहा या सकता है कि कुछ हद तक केन्द्र सरकार की सोच और नीति में भारत के जम्मू कश्मीर के प्रति संवेदनशीलता के संकेत दिख रहे हैं ! पर इतनी जल्दी किसी सुखद निष्कर्ष पर पहुँच जाना उचित नहीं होगा क्यों कि अभी भी कुछ ऐसे प्रश्न है जिन का निवारण १० अगस्त २०१६ के वाद अब तक भारत सरकार ने कर देना चाहिए था पर २ सप्ताह वीत जाने के बाद भी अभी तक नहीं किया है ! कर्ण सिंह जी, जो दिल्ली से राज्यसभा के सदस्य हैं, ने अपने १० अगस्त के वक्तब्य में राज्य सभा में कहा है कि २७ अक्टूबर १९४७ को वे भी उस कमरे में ही थे यहाँ उन के पिता महाराजा हरी सिंह इंस्ट्रूमेंट आफ एक्सेश्न ( अधिमिलन पत्र) पर दस्तखत कर रहे थे जब के भारत सरकार के अनुसार महाराजा हरी सिंह ने इंस्ट्रूमेंट आफ एक्सेश्न ( अधिमिलन पत्र) पर दस्तखत २६ अक्टूबर १९४७ को किए थे ! इस वक्तव्य का लगता है न उस समय सदन में बैठे मंत्रियों ने कोई नोटिस लिया और न ही अब तक भारत सरकार ने कोई नोटिस लिया है!

इस पर भारत सरकार को विना समय खोए स्थिति सुधारनी होगी क्यों कि इस वक्तब्य का बुरा असर अन्तराष्ट्रीय स्थिति और इतिहास पर भी पड़ता है ! इसी प्रकार करण सिंह जी ने कहा है कि जम्मू कश्मीर रियासत का १९४७ की दूसरी रियासतों की तरह भारत में “मरज” होना अभी बाकी है क्यों महाराजा ने दूसरों की तरह कोई “मर्जर” पत्र दस्तखत नहीं किया था ! यह वक्तव्य क्यों कि कर्ण सिंह जी का है जो १९४७ में युवराज थे इस लिए महत्त्व रखता है और भारत सरकार को इस की वैध्यता पर स्थिति साफ़ करनी होगी और दूसरे राज्यों का भारत में अगर कोई मर्जर दस्तवेज भी है तो उस को सामने लाना होगा ! जम्मू कश्मीर की आम जनता के मन में भारत के प्रति आस्था वनाये रखने के लिए यह वहुत जरूरी है ! ऐसे ही कुछ और भी विषय ध्यान देने योग्य हैं ! कम से कम राजनाथ सिंह जी इस और ध्यान देंगे इस की आशा की जा सकती है!

कहते हैं अपने विपक्षी से निपटने के लिए , यहाँ तक के किसी को अपना सहयोगी वनाने के लिए भी , पहले उस की सोच, लक्ष और सामर्थ को जानने की पूरी कोशिश करनी चाहिए ! मैं, इस के साथ यह भी जोड़ना चाहूँगा कि उतना ही जरूरी है कि अपनी सोच, अपने उदेश्य, अपनी स्थिति एवं अपने लक्ष को भी अच्छी तरह से स्थापित कर लेना ! आज की स्थिति को देखते हुए जम्मू कश्मीर राज्य संवन्धित कुछ ऐसे विषय हैं जिन को भारत के आज के नेतृत्व को ठीक डंग से पहले अपने स्तर पर नीतिगत करना होगा, फिर आम जन के पास ले जाना होगा और समय के अनुसार आवश्यकता पड़ने पर विदेशनीति में भी ढलना होगा ! आंतरिक स्तर पर कोई समाधान निकालना और उस को प्रभाव में लाना राज्य या केंद्र सरकार के पूर्ण निजंत्रण में कहा जा सकता है पर यहाँ कोई दूसरा देश रास्ते में आता हो वहां आप निर्णय तो ले सकते हैं पर विरोधी पर अपने कानून के अनुसार थोप नहीं सकते इस लिए जम्मू कश्मीर से सम्बन्ध रखने बाले विषयों को भी इसी प्रकार देखा जा सकता और देखा भी जाना चाहिए!

सुरक्षाबल उप्पद्र्वियों और अत्तन्कवादियों को तो शांत कर सकते हैं पर मानसिक उन्माद और विश्वास वन चुकी मिथ्थयाओं का उपचार तो सामाजिक संस्थाएँ और राजनीतिक दल आम जन के बीच जा कर ही कर सकते हैं ! इस वात का ध्यान रखना और इस को समझना भी जरूरी है कि किसी विषय पर वनी सोच और नजरिया ‘एक’ व्यक्ति के उस समय के सामाजिक और राजनीतिक वातावरण पर भी निर्भर करता है इस लिए उस को समझना जरूरी है !

१९ जुलाई २०१६ के दिन कांग्रेस के एक शीर्ष युवा नेता जो “नेहरु-गाँधी” परिवार के अति करीब माने जाते हैं ने लोक सभा में कहा है ::: “ आज कश्मीर की जरूरत है, उपाध्यक्ष महोदय, कि रायेशुमारी होनी चाहिए” ::: . भारत के नेताओं के इस प्रकार समझ और आचरण से जम्मू कश्मीर के एक साधारण निबासी के लिए अधिमिलन १९४७ ( एक्सेशन १९४७) की पूर्णतः पर विचार करने की स्थिति पैदा होना अस्बभाविक नहीं कहा जा सकता ! इस बात को नहीं भूलना होगा कि १९४७ में जम्मू कश्मीर के भारत के साथ हुए अधिमिलन की पृष्ठभूमि में धर्म के नाम पर ब्रिटिश इंडिया का बटवारा और उपजी स्थिति में ब्रिटिश साम्राज्य के इंडियन प्रिंसेज भी थे! ऐसे ही २१ जुलाई और १० अगस्त के दिन भारत की लोकसभा और राज्य सभा में भारत के भिन्न भिन्न दलों के शीर्ष नेताओं ने जम्मू कश्मीर की आज की स्थिति, जम्मू कश्मीर की संवेधानिक स्थिति और जम्मू कश्मीर से संबधित १९४७ में ‘भारत’ के बंटबारे के संधर्व में जो अपनी समझ, अपना ज्ञान और सुझाब सदन के सामने रखे से बिगड़े हालात को सुधारने की दिशा में कदम उठने के लिए केन्द्र सरकार दिशा निर्देश ले सकती है !

यह भी चिंतन करना होगा कि क्या राष्ट्र स्तर पर भारत के नेता अपने घर में पूर्ण तरह विश्वस्त हैं कि जम्मू कश्मीर राज्य के वारे में ऐसा कोई तनिक भी विवाद नहीं है जिस का सम्बन्ध १९४७ के अधिमिलन से है क्यों कि अगर ऐसा नहीं है तो फिर भारत के संबिधान की सीमाओं में रह कर “स्टेक होल्डर्स” को नामंकित करना कठिन होगा और स्थिर शान्ति की दिशा में आगे बढना आसान नहीं होगा!

यह यहाँ इस लिए भी कहा जा रहा है कि जिस प्रकार के सन्देश अजित दुल्लत सिंह जैसे शीर्ष पर रहे अधिकारियो और “कश्मीर’ संबंधित भारत सरकार के पूर्व सलाहकारों के निकट में आए वक्तव्यों से मिले हैं उन से लगता है कि अभी तक की सरकारें “कश्मीर” को कुछ हद तक १९४७ के भारत विभाजन से जुड़ा एक विवाद समझती रहीं हैं और जम्मू कश्मीर के प्रति कश्मीर घाटी केन्द्रित राजनिति अपनाए रहीं हैं!

अब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने १२ अगस्त को ‘कश्मीर’ में हो रहे उत्पात से जुड़े मसलों पर बात करने की जो बात की है वे संबिधान की सीमाओं तक सीमित है और इस लिए वे लोग और दल जो किसी प्रकार से भी जम्मू कश्मीर के भारत के अक्टूबर १९४७ में अधिमिलन की पूर्णता पर प्रश्न लगाते हैं जकीनन ऐसी वातचीत में सामान्यता शामिल नहीं किए जा सकेगे !

अगर राज्य सभा में दिए आश्वासन पर विश्वास किया जाए, जो करना भी चाहिए जव कहने बाला व्यक्ति राज नाथ सिंह जी हों, तो राजनाथ ग्रहमंत्री जी का १० अगस्त को यह कहना कि अगर कोई केन्द्र से सर्वदलीए प्रतिनिथि मंडल कश्मीर घाटी जाएगा तो अच्छा होगा सभी पहले अपने में भी कुछ विचार विमर्श कर के जाएं !

राजनाथ सिंह जी किसी समाधान के लिए कितने प्रतिबद्ध हैं यह इस से लगा जव उन्हों ने कुछ ऐसा भी कहा कि जम्मू कश्मीर ( कश्मीर घाटी) में किन लोगों से बात करनी है इस बारे बे मुख्यमंत्री जी की सलाह लेंगे और इस के साथ साथ यह भी चाहें गे कि महबूबा मुफ़्ती जी अपने स्तर पर भी सब पहले बात करलें ताकि दिल्ली से ‘कश्मीर’ जाने बाले किसी प्रतिनिधि मंडल का काम और आसान हो जाए!

अपने 2 दिन के कश्मीर घाटी के दोरे के वाद राजनाथ सिंह जी ने दिल्ली से आने बाले किसी प्रतिनिधि मंडल के संकेत अपनी २५ अगस्त की प्रेस कांफ्रेंस में दे दिए हैं और उम्मीद करनी चाहिए कि आगे भी भारत सरकार ऐसी निति पर चलेगी जो जकिनन जुलाई से पहले तक से कुछ हट के दिख रही है!

हाँ यह भी जरूरी है कि यहाँ तक हो सके १९४७ के बाद के समय के शीर्ष नेतायों की गलतियों का व्याख्यान करना आज के शीर्ष नेताओं को बंद करना होगा !

ऐसे ही अपनी शब्दाबली.को साफ़ करना होगा जैसे कि… “कश्मीर समस्या का समाधान राजनीतिक परिवेष में हो” हर दूसरा नेता कहता है दिकता है ! पर महबूबाजी या उमर जी या शरद यादव जी ने आज तक सीधे शव्दों में इस राजनीतिक हल की कोई व्याख्या नहीं की है! ऐसे ही ” प्रिथिक्ताबादी एवम मुख्य धारा” के बीच में रेखा खींचना जो आज के दिन ऐसा लग रहा है कि केन्द्र के लिए इस राज्य में भारत के संबिधान को दृष्टि में रख कर आसान नहीं है.!

हाँ केंद्रीय नेताओं को यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान अधिकृत भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर के इलाके में मीरपुर, मुज़फ्फराबाद,कोटली , गिलगित ,बल्तिस्तान सब आते हैं ! जिस को पाकिस्तान आजाद कश्मीर कहता है, उस को भारत के अधिकांश नेता आज तक ‘पीओके’ कहते रहे हैं ! यही नहीं एक तरह से पाकिस्तान के कब्जे बाले जम्मू कश्मीर के पूरे इलाके को नेता लोग ‘पीओके’ नाम से संबोधित करते रहे हैं ! जब कि पाकिस्तान द्वारा कहे जाने बाले ‘आजाद कश्मीर’ में मीरपुर कोटली मुज़फ्राबाद जैसे इलाके ही आते हैं जिन का क्षेत्रफल सिर्फ करीब १३००० बर्ग किलोमीटर ही है और उस में भी ज्यादा इलाका उस समय के जम्मू क्षेत्र ( प्रांत) का है न के कश्मीर घाटी का ! इसके अलावा भी करीव ७२००० वर्ग किलोमीटर कब्ज़ा किए इलाके जो जम्मू कश्मीर रियासत के गिलगित बाल्तीस्तान क्षेत्र से है को पाकिस्तान ‘नोर्दर्न एरिआज’ कहता रहा है !

ऐसा लगता है जैसे भारत का नेतृत्व भी पाकिस्तान के शव्द-जाल में फंस गया है क्यों कि पिछले कुछ दिनों में ‘पीओके’ और गिलगित –बल्तिस्तान को जिस तरह से संबोधित किया गया उस से आम जन के बीच ऐसे सन्देश जाते दिखे हैं जैसे की गिलगित बल्तिस्तान भारत की जम्मू कश्मीर रियासत का हिस्सा नहीं है ! इस लिए ‘पीओके’ के स्थान पर ‘पीओजेके’ प्रयोग करना चाहिए और इलाकों की बात करते हुए मीरपुर कोटली मुज़फ्फराबाद गिलगित बल्तिस्तान की बात साथ साथ करनी चाहिए ! आज तक भारत के जम्मू कश्मीर राज्य की ओर इस परिपेक्ष में संवेदनशीलता कुछ कम ही दिखाई गई है !
आज तक जो शब्दावली प्रयोग होती रही है उस का लाभ भारत सरकार विरोधी, भारत राष्ट्र विरोधी एवं प्रितिक्ताब्दियों को मिलता भी रहा है जैसे कि वहुत कम लोग ( साधारण जन ) आज तक गिलगित बल्तिस्तान को भारत की जम्मू कश्मीर रियासत के पाकिस्तान अधिकृत इलाके का हिस्सा समझते रहे हैं, इतना ही नहीं बहुत से भारतीय तो यह भी नहीं जानते थे के गिलगित बल्तिस्तान जम्मूकश्मीर रियासत का हिस्सा है!

इसी प्रकार जम्मू कश्मीर के लिए किसी ‘विशेष’ दर्जे के होने की बात है ! वे नेता जो कहते थे और कहते हैं कि अनुच्छेद ३७० को हटाने जा सुधारने जी जरूरत है, साथ में यह भी कहते थे/ कहते हैं कि यह अनुच्छेद जम्मू कश्मीर राज्य को भारत में एक विशेष दर्जा देता है ! जरा सोचिये , एक तरफ वे कहते हैं कि अनुच्छेद -३७० जम्मू कश्मीर के लोगों को विशेष दर्जा देता है दूसरी ओर जव आप इस विशेष दर्जे को छीनने की बात अनुच्छेद ३७० को हटाने के रूप में करेंगे तो जम्मू कश्मीर का आम निबासी आप का विरोध तो करेगा ही ! जब के सचाई यह कि अनुच्छेद ३७० जम्मू कश्मीर राज्य को कोई विशेष दर्जा नहीं देता है !

कहाँ तक कुछ शब्द समय के साथ आप के दिमाग में घर कर लेते हैं या कहाँ तक भारत के राष्ट्रिय नेतृत्व में कुछ विषयों के प्रति असम्बेधान्शीलता है इस का अंदाजा इस बात से लग जाता है कि राज्य सभा तारांकित प्रश्न संख्या 138 {(क) क्या यह सच है कि संविधान में अनुच्छेद 370 के माध्यम से जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया गया है; } के लिखित उत्तर में भारत सरकार के ११ मार्च २०१५ के दिन यह कहने के बाद भी कि “ (क)ː

भारत के संविधान में, “जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा” का कहीं उल्लेख नहीं है। अनुच्छेद 370 में “जम्मू और कश्मीर राज्य के संबंध में अस्थायी उपबंधों” के लिए प्रावधान हैं” ! पर सरकार के राज्य सभा में ऐसा साफ़ कर देने के बाद भी आज कई शीर्ष नेता यह कहते मिल सकते हैं कि जम्मू कश्मीर एक विशेष दर्जे बाला राज्य है और लगता नहीं है कि इन लोगों को अपनी समझ को सुधारने की कोई सलाह दि जाती है ! बीजेपी के इलाबा जो दूसरे दल हैं उन की हालत और अच्छी नहीं है ! ऐसे ही और भी विषय हैं जिन के बारे में ‘अपनी’ समझ को भी सुधारना होगा !
अपने को समझना और जानना किसी के लिए भी बहुत जरूरी है अन्यथा अपना संग्रक्षण करना कठिन होता है !
( दया सागर एक बरिष्ठ पत्रकार और जम्मू कश्मीर विषयों के अध्येता हैं 9419796096 )

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