आज से 73 वर्ष पूर्व 25 नवंबर 1947 को जम्मू कश्मीर के मीरपुर जिले पर पाकिस्तान ने आक्रमण किया था और वहां रहने वाले 20,000 निहत्थे हिंदू और सिखों का नरसंहार कर दिया
सन 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हो रहा था तब मीरपुर भी तत्कालीन कश्मीर रियासत का एक हिस्सा था। इस दौरान पाकिस्तान वाले पंजाब से हजारों की संख्या में हिंदु मीरपुर पहुंचे रहे थे। वहीं मीरपुर के मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे। प्रतिवर्ष 25 नवंबर का दिन बंटवारे के दर्द को हरा कर देता है।
वहां से बचकर केवल 2500 मीरपुर के निवासी किसी तरह से भूखे प्यासे कई दिनों तक पैदल चलकर जम्मू पहुंच सके थे। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि पाकिस्तान ने मीरपुर के रहने वाले हिंदुओं व सिखों को चेतावनी दी थी कि यदि बचना चाहते हो तो अपने घर पर सफेद झंडा आत्मसमर्पण के चिन्ह के रूप में लगा देना परंतु मीरपुर के निवासी हिंदुओं व् सिखों ने अपने घरों पर लाल झंडा फहरा कर यह संदेश दिया कि हम आत्मसमर्पण नहीं अपितु लड़कर अपनी मातृभूमि की रक्षा करेंगे।
जम्मू-कश्मीर सरकार के रिटायर्ड डिप्टी सेक्रेटरी सीपी गुप्ता बताते हैं कि वर्ष 1947 को हुई घटना में मीरपुर निवासियों का केवल इतना ही दोष था कि उन्होंने एक दृढ़ संकल्प कर रखा था कि जब तक उनके पास बंदूक की आखिरी गोली है, तब तक वे पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को मीरपुर शहर के अंदर प्रवेश नहीं करने देंगे, इसी प्रतीज्ञा के वशीभूत मीरपुर निवासियों ने अंतिम सांस तक आक्रमणकारियों का डट कर मुकाबला किया।
दुर्भाग्यवश युद्ध खत्म होते ही आक्रमणकारियों ने 25 नवंबर 1947 के हत्याकांड में 20 हजार से भी ज्यादा बूढ़े, युवक-युवतियां तथा अल्प आयु वाले बच्चों को भी क्रूरता से मृत्यु के घाट उतार कर हमेशा की नींद सुला दिया।
मीरपुर पर आक्रमण के लिए पाकिस्तान सरकार ने कबायलियों और पठानों के साथ एक समझौता किया था जिसका नाम था ज़ेन और जार” समझौता, जिसका अर्थ था मीरपुर पर कब्जा करने के बाद वहां रहने वाले हिंदुओं व् सिखों की सारी संपत्ति जमीन और धन दौलत पाकिस्तान सरकार की होगी और वहां रहने वाली सभी हिंदू व सिख महिलाएं पठानों की सम्पत्ति होंगीं,
मीरपुर निवासी हिंदुओं व् सिखों के मुस्लिम पड़ोसियों ने जो उसी वर्ष अगस्त में बंटवारे के बाद मीरपुर छोड़कर पाकिस्तान चले गए और पाकिस्तान आर्मी को मीरपुर की भूगौलिक स्थिति स्थानीय आबादी की पूरी जानकारी उपलब्ध करवाई, जिससे पाक आर्मी सफलतापूर्वक मीरपुर पर कब्जा कर उसे पाकिस्तान में मिला सके।
क्या आप जानते हैं कि उस आक्रमण के समय हमारे देश के महान स्टेट्समैन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी कांग्रेस सरकार ने क्या किया ? जिस कांग्रेस नीति भारत सरकार और प्रधानमंत्री पर देश के नागरिकों और शहरों की रक्षा शत्रु देशों से करने का दायित्व होता है भारत की तत्कालीन सरकार और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मीरपुर के निवासियों की सहायता करने से मना कर दिया
नेहरू ने 20,000 हिंदुओं सिखों को पाकिस्तानी सेना और कबायलियों द्वारा मारे लुटे जाने के लिए छोड़ दिया, कबायलियों और पठानों द्वारा हजारों हिंदू और सिख बच्चियों, लड़कियों औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाने के बाद उन्हें उठा उठाकर पाकिस्तान ले जाने दिया, पाकिस्तानियों और कबायली पठानों से बचने के लिए मीरपुर में कई हिन्दू व सिख महिलाओं ने आत्महत्या तक कर ली थी।
तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस सरकार यदि चाहते तो मीरपुर को पाकिस्तानीयों और कबायलियों से बचाने के लिए और वहां के नागरिकों की रक्षा के लिए इंडियन आर्मी को भेज सकते थे, किंतु नेहरू की कांग्रेस सरकार ने जानबूझकर ऐसा कुछ नहीं किया, जबकि उस समय मीरपुर से कुछ ही मील दूर झांगर में भारतीय सेना तैनात थी, परंतु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मीरपुर के हिंदू व सिखों को उनके हाल पर पाकिस्तानियों के हाथों मरने के लिए छोड़ दिया,
उस शहर की सभी महिलाओं को अगवा कर लिया गया उनके संग यौन अपराध हुए उन हजारों महिलाओं को उठाकर ले जाया गया, परंतु भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस सरकार चटखारे लेकर मीरपुर के 20,000 हिंदू सिख पुरुषों के जनसंहार और हजारों हिन्दू व् सिख महिलाओं के बलात्कार और अपहरण का दृश्य मजे ले लेकर देखकर आनंदित होते रहे, मौन साध कर बैठे रहे, किन्तु उनकी सहायता हेतु सेना नहीं भेजी।
एक दिन के अंदर ही पूरा मीरपुर कब्रिस्तान में बदल गया
सभी हिंदू व सिख पुरुषों को मार दिया गया, पुरुषों के सामने उनकी बेटियों बहुओं बहनों माताओ पत्नियों का बलात्कार किया गया । फिर उन महिलाओं के सामने ही उनके पुरुषों को मार दिया गया, इसके बाद सभी बच्चियों लड़कियों औरतों को उठाकर पाकिस्तान ले जाया गया केवल कुछ वृद्ध महिलाओं को जीवित छोड़ा गया।
यह सब इसलिए हुआ क्योंकि नेहरू के नेतृत्व वाली तत्कालीन भारत सरकार ने जानबूझकर हिंदुओं व सिखों को मरने दिया, जबकी वहां के निवासी यह सोचकर बैठे थे की भारत सरकार उनकी सुरक्षा हेतू सेना अवश्य भेजेगी और वे भारतीय सेना के संग कंधे से कन्धा मिलाकर लड़ते हुए अपनी मातृभूमि की रक्षा करेंगे, इसीलिए मीरपुर के हिंदूओं व सिखों ने आत्मसमर्पण के बदले अपनी मातृभूमि के लिए लड़ने का निर्णय किया,
पाकिस्तान द्वारा मीरपुर में अंजाम दिए गए 20,000 निर्दोष हिंदुओं व् सिखों के उस नरसंहार का आज तक कहीं कोई उल्लेख नहीं होता, ना तो आज तक पाकिस्तान सरकार पाकिस्तानी सेना के मानवाधिकार उल्लंघनों और अपराधों की बात होती है, ना ही तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन कांग्रेस सरकार की भूमिका पर प्रश्न उठाए जाते हैं।
मीरपुर आज भी पाकिस्तान के अवैध कब्जे में है और कभी वहां रहने वाले बहुसंख्यक हिंदुओं और सिखों का अब वहां 100% जातीय सफाया पाकिस्तान द्वारा किया जा चुका है।