Wednesday, December 25, 2024
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शब्दकोश में बैचेन हैं कड़ी कार्रवाई, कड़ी निंदा और जाँच

रात को सोने के पहले शब्दकोश में कुछ शब्दों का अर्थ खोजने के ले शब्दकोश क्या खोल लिया जैसे मुसीबत मोल ले ली। जैसे ही नींद लगती तो ऐसा लगता कि शब्दकोश में कुछ खुसुर-पुसुर हो रही है। समझ में ही नहीं आ रहा था कि शब्दकोश में से ये आवाज़ कैसी आ रही है। अभी तक तो मेरे घर में फ्रिज, टीवी, वाशिंग मशीन, से लेकर जितने भी बिजली के उपकरण हैं वो काम से ज्यादा आवाज़ ही करते हैं, लेकिन किसी शब्दकोश में से आवाज़ आने की बात से दिमाग चक्करघिन्नी हुआ जा रहा था। मैं जैसे ही आवाज़ सुनने की कोशिश करता, आवाज़ कम होने लगती और जब सोने का नाटक करता तो कुछ कुछ शब्द सुनाई पड़ने लगते थे। पहले तो मुझे लगा कि इस शब्दकोश में किसी भूत की कोई आत्मा आ गई होगी, तो मारे डर के मैं पसीना पसीना हो गया। लेकिन आवाज़ें लगातार आती रही। आखिरकार मैने सोने का नाटक करते हुए उन आवाज़ों को सुना तो हैरान रह गया।

सबसे पहले कड़ी कार्रवाई शब्द मिमियाता हुआ चीख रहा था, वह अन्य शब्दों को कह रहा था देखो मेरा क्या हाल हो गया। देश के नेताओँ और मंत्रियों ने ‘कड़ी कार्रवाई करेंगे’ की ऐसी फज़ीहत की है कि अब जब भी कोई नेता या मंत्री कहता है कि इस मामले में हम कड़ी कार्रवाई करेंगे तो मेरी तो शर्म से डूब मरने की इच्छा होती है। इस शब्दकोश में कड़ी कार्रवाई का मतलब लिखा है, किसी भी घटना, लापरवाही, बेईमानी और भ्रष्टाचार पर तत्काल कार्रवाई कर दोषी को दंडित किया जाए। लेकिन यहाँ तो हाल ये है कि जिस पर कड़ी कार्रवाई करना है वही चिल्ला चिल्लाकर कहता है कि कड़ी कार्रवाई करेंगे। मगर किसी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होना तो दूर सड़ी कार्रवाई तक नहीं होती और ऊपर से उसे प्रमोशन से लेकर तमाम लाभ देकर उसको सम्मानित कर दिया जाता है। फिर वह अपने मातहत अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी ऐसी ही कड़ी कार्रवाई करते हुए उनको भी हर तरह से फायदा पहुँचाता है। अफसर, नेता और मंत्री की घरवालियों से लेकर घरवाले तक कड़ी कार्रवाई की आड़ में इनसे सब्जी मंगवाने से लेकर, गाँव से देसी घी, सिनेमा के टिकट तक सब काम करवाते हैं और यहाँ शब्दकोश में दूसरे शब्द अखबारों की कटिंगों और टीवी की खबरें दिखा दिखाकर मेरी मजाक उड़ाते हैं कि देखो आज फिर किसी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो रही है।

इस पर कड़ी निंदा शब्द भी उछलकर आया और कहने लगा मेरी भी यही हालत है। कुछ भी हो जाए, कोई भी दो कौड़ी का नेता, मंत्री, ऐरा-गैरा तत्काल कड़ी निंदा कर देता है। मेरा तो जीना हराम कर रखा है इन हरामखोरों ने। घर में आराम से बैठे हैं, दारु पी रहे हैं, कहीं कुछ हो गया, टीवी वाले अखबार वाले आ गए, बस बगैर मुँह धोए कैमरे के सामने आकर कड़ी निंदा कर देते हैं। कई बार तो इन बेवकूफों को ये भी पता नहीं होता है कि किस बात की, किस मुद्दे पर कड़ी निंदा कर रहे हैं। अब तो लोग पहले से ही अंदाज लगा लेते हैं कि फलाँ घटना पर फलाँ फलाँ लोग कड़ी निंदा करेंगे। एक जमाना था जब कोई किसी की निंदा करता था तो गाँव भर में खुसुर-पुसुर होती थी, अब तो खुले आम कड़ी निंदा करते हैं और किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। कबीर दास ने ‘निंदक नियरे राखिये’ लिखते वक्त सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ऐसा जमाना भी आएगा कि जहाँ देखो वहाँ कड़ी निंदा करने वाले थोक के भाव में मिलने लगेंगे।

इसी बीच जाँच शब्द चिल्लाया, तुम अपनी ही हाँके जा रहे हो, इधर मेरी क्या हालत है मैं ही जानता हूँ। इस देश में हर बात की जाँच की जाती है। खुलेआम कुछ भी हो जाए तो भी जाँच की जाती है। सड़क पर आदमी को फिल्मी कलाकार खुलेआम कुचल दे तो भी जाँच चलती है और जाँच ऐसी होती है कि कुचलने वाले को बेगुनाह बता दिया जाता है। मगर इस बात की जाँच कोई नहीं करता कि फिर वो आदमी फुटपाथ पर उसी गाड़ी से कुचलकर कैसे मर गया। कोई भ्रष्टाचार करे, लूट करे, चोरी करे, सरकार और निकम्मे मंत्री जाँच कराते रहते हैं। लेकिन ये जाँच क्या होती है और इसका क्या नतीजा होता है किसी को पता ही नहीं चलता। अभी वाराणसी में पुल गिर गया तो अज्ञात आदमी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया और सब कह रहे हैं कि जाँच करेंगे। अरे इतनी बड़ा पिल्लर गिरा, लोग मर गए और तुम ये भी पता नहीं कर सके कि किसकी वजह से गिरा। मगर नहीं इसके लिए जाँच का कर्मकांड करेंगे और जाँच चलती रहेगी। जाँच शब्द ने कहा कि पहले तो मेरा ऐसा रौब होता था कि जिसके खिलाफ जाँच चलती थी वो अपने को बचाने के लिए मारा-मारा फिरता था। अब तो ये हालत है कि हर धूर्त, बेईमान, भ्रष्ट, चोर उचक्का इस कोशिश में लगा रहता है कि उसके खिलाफ जाँच चले ताकि वो जाँच में बरी हो जाए और तब तक उसे घर बैठे तनख्वाह मिलती रहे।

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