राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के हिंदी विभाग के राष्ट्रपति सम्मानित प्राध्यापक और प्रखर वक्ता डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने राष्ट्र संत तुकडो जी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग द्वारा सोशल मीडिया के साहित्य सरोकार पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में अत्यंत प्रभावशाली विचार व्यक्त किए । देश-विदेश के विद्वानों ने डॉ. जैन के सुझावों का कई बार करतल ध्वनि और हर्षध्वनि से स्वागत किया। भारत के 25 राज्यों और अमरीका, फ़्रांस, चीन, कनाडा के विशेषज्ञों की भागीदारी वाले इस ऐतिहासिक आयोजन में डॉ. चन्द्रकुमार जैन को प्रस्तुति को दोहरा सम्मान मिला।
डॉ. जैन ने नए ज़माने और नए दौर के सोशल मीडिया जैसे अहम मुद्दे पर धाराप्रवाह वक्तव्य देने के साथ-साथ विशेष आमंत्रण पर श्रोताओं से खचाखच भरे विश्वविद्यालय के मुख्य सभागार में लगभग 30 मिनट तक तरन्नुम के साथ काव्य पाठ कर सब को भावविभोर कर दिया। इस दौरान प्रतिभागियों के साथ बड़ी संख्या में उपस्थित युवाओं ने डॉ. जैन की अभिव्यक्ति शैली का जमकर स्वागत किया। गौरतलब है कि डॉ. जैन ने शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय और संस्कारधानी की साहित्य विभूति का सम्मानजनक उल्लेख कर अपनी माटी तथा संस्था का गौरव बढ़ाया। इस भव्य प्रसंग पर भारतीय हिंदी परिषद् के 43 वें अधिवेशन ने विवि के इतिहास में एक नयी कड़ी जोड़ दी। विवि के कुलगुरु डॉ. सिद्धार्थ विनायक काणें, प्रख्यात पत्रकार श्री राहुल देव, परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो नंदकिशोर पांडेय, सहित सभी प्रमुख पदाधिकारी,धुरंधर साहित्यकार, सम्पादक, पत्रकार, प्राध्यापक, शोधार्थी और विद्यार्थी गरिमामय आयोजन के सहभागी और साक्षी बने।
डॉ. चंद्रकुमार जैन ने तकनीकी सत्र में कहा कि सोशल मीडिया में साहित्य का लोकतंत्र साकार हो रहा है। सृजन पर आधिपत्य या मठाधीशी की मानसिकता को इस नए मीडिया ने एकबारगी झकझोर कर रख दिया है। आभासी दुनिया का लेखन प्रिंट और पारम्परिक मीडिया के वास्तविक धरातल पर भी अपना वास्तविक असर दिखाने लगा है। डॉ. जैन ने कहा कि सोशल मीडिया का साहित्य शतदल और लप्रेक जैसे संग्रहों के रूप में भी सामने आ रहा है। बड़े प्रकाशकों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखायी है। इस नए दौर के लेखक घर पर या अध्ययन कक्ष में ही नहीं, सफर में, लोकल ट्रेन में, मैट्रो में, चौराहों पर, कार्य स्थल पर,व्यवसाय परिसर में या कभी किसी गाड़ी या व्यक्ति के इंतज़ार में मिले खाली वक्त पर भी लिख रहे हैं। लिहाज़ा, डॉ. जैन ने कहा कि नयी तकनीक का साहित्य हर व्यक्ति की अभिव्यक्ति को तुरंता पहचान दे रहा है।
डॉ. जैन ने स्पष्ट किया कि लिखने की मनमानी के आरोप के आधार पर ही सोशल मीडिया की कलमगोई को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए। इतिहास गवाह है कि हर युग में मुद्रित माध्यम ने भी श्रेष्ठ साहित्य के अलावा लुगदी साहित्य परोसने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखी है। इसलिए, हम समझें कि कोई भी माध्यम अच्छा या बुरा नहीं होता। अच्छाई या बुराई का सम्बन्ध हमारे नज़रिये और प्रस्तुति के अंदाज़ से जुड़ा है। वैसे भी अब तकनीक से पीछे हटना या मुड़कर देखना मुमकिन नहीं है। इसलिए, जो नया है उसका स्वागत करें। लेकिन, डॉ. जैन ने कहा कि इस एहतिहात का भी ख़्याल रहे कि हम नए मीडिया का इस्तेमाल अधिक से अधिक सकारात्मक ढंग से करें। इसके लिए लोगों को उसी मीडिया के सदुपयोग पर समय-समय पर जागरूक भी करते रहें। इससे नयी पीढ़ी के कई अनजाने चेहरों को नयी पहचान मिलेगी। उनके लेखन की शान बढ़ेगी।