सुशान्त सिंह राजपूत की मृत्यु को लेकर देश के न्यूज चैनलों में समाचार को दिखाने की होड़ लगी हुई है | हर चैनल एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में कई अनुमानित समाचार भी दिखा रहे है | न्यूज चैनल ऐसे विषय की परत दर परत समीक्षा कर रहे हैं जिसे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई को जांच करने के लिए सौंप दिया है। सुशान्त सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या के मामले की जांच मुम्बई पुलिस पहले कर चुकी है और उसने इसे आत्महत्या ही माना था मगर सुशान्त के पिता व परिवारजनों द्वारा मुम्बई में विगत 14 जून को घटित इस घटना की एफआईआर पटना में दर्ज कराने के बाद जिस प्रकार महाराष्ट्र सरकार औऱ बिहार सरकार में रंजिश पैदा हुई उससे इसके राजनीतिक आयाम स्पष्ट होने लगे।
बिहार का जो प्रशासन यहां के प्रवासी मजदूरों के उल्टे पलायन की समस्या से जूझ रहा था और बाढ़ के प्रकोप ने पूरे तन्त्र को बेनकाब कर दिया था वह इस रंजिश के चलते नैपथ्य की ओर बढ़ने लगा और सुशान्त मामले को बिहारी अस्मिता से जोड़ने की नाकाम कोशिशें की जाने लगीं। तर्क कहता था कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बिहार सरकार की यह दलील मानने के बाद कि सुशान्त मामले में पटना में दायर एफआईआर के आधार पर मामले की जांच करने का अधिकार बिहार पुलिस के पास भी था और राज्य सरकार द्वारा सीबीआई जांच कराने की मांग में असंगति नहीं थी, पूरा प्रकरण वृहद कानूनी दायरे में आ गया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने अधिकारों के तहत सीबीआई जांच का आदेश दिया। अतः सीबीआई को मामले की तह तक जाने से अब कोई नहीं रोक सकता है और रिया चक्रवर्ती ने यदि कोई आपराधिक कार्य किया है तो उस पर पर्दा नहीं पड़ा रह सकता। इस मामले की जांच सीबीआई के साथ- साथ नारकोटिक्स अपराध नियन्त्रण ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय भी कर रहा है। ये तीनों जांच एजेंसियां अपने-अपने दायरे से जुड़े मामलों में अपने विवेक से जांच कार्यों में जुटी हुई हैं मगर न्यूज चैनलों ने पूरी जांच प्रक्रिया को अपने-अपने हिसाब से विवेचित करना शुरू कर दिया।
सवाल रिया को अपराधी या निरपराध मानने का नहीं है बल्कि हकीकत की तह तक पहुंचने का है, असलियत निकाल कर बाहर लाने का है मगर न्यूज चैनलों ने इस मामले को अपनी-अपनी नाक का सवाल बना लिया है और वे पक्ष व विपक्ष में धुआंधार विवेचना किये जा रहे हैं। इससे भारत की उस व्यवस्था की ही धज्जियां उड़ रही हैं जो कहती है कि केवल कानूनी प्रावधानों से ही किसी भी व्यक्ति को अपराधी घोषित किया जा सकता है। भारत की न्याय व्यवस्था पूरी दुनिया में अपनी पहचान रखती है। यह भारत की न्याय प्रणाली ही है जिसने पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब तक को न्याय देने के लिए सभी प्रावधानों का उपयोग किया था।
रिया चक्रवर्ती के पक्ष या विपक्ष में अभियान चला कर हम केवल कानून का ही मजाक बनाने की कोशिश कर रहे हैं । जांच एजेंसियों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे सुशान्त मामले के मीडिया प्रचार के मोह से दूर रहें और अपना कार्य पूरी निष्पक्षता के साथ करें और दुनिया को सच बतायें लेकिन दीगर सवाल यह भी है कि इस देश में रोजाना सैकड़ों आत्महत्याएं होती हैं। बिहार में ही प्रवासी मजदूरों ने लाकडाऊन के चलते आत्महत्याएं की, हजारों किसान आत्म हत्याएं करते हैं , उनकी जांच कौन करेगा? कौन से राज्य की पुलिस या सीबीआई उनकी मृत्यु का सच खोजेगी?
फिल्म अभिनेता तो लोगों का केवल मनोरंजन करता है जबकि मजदूर देश का निर्माण करता है और किसान लोगों के लिए अनाज उगा कर भूख का इन्तजाम बांधता है। इस ‘दास’ मानसिकता से भारत कब निकलेगा और एक नागरिक की जान की कीमत का सही लेखा-जोखा करेगा। मीडिया का कार्य लोगों को जागृत, सजग और जागरूक करने का होता है। सुशान्त मामले में शक-ओ-शुबहा से भरे हालात की तरफ ध्यान दिलाने का दायित्व निश्चित रूप से एक जिम्मेदार मीडिया का था मगर किसी को अपराधी या पाक- साफ करार देने का हक उसे कैसे मिल सकता है जबकि पूरा मामला जांच के दायरे में है और न्यायालय में अभी पेश होना बाकी है।
अशोक भाटिया, A /0 0 1 वेंचर अपार्टमेंट ,वसंत नगरी,वसई पूर्व ( जिला पालघर-401208) फोन/ wats app 9221232130