वैश्वीकरण के बाद देश के विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ी वैश्विक प्रतिस्पर्धा की अच्छाई और बुराई पर चाहे जितनी बहस हो लेकिन एक बात तो तय है कि यह हिंदी सिखाने वालों के लिए एक उत्कृष्ट अवसर लेकर आई है। बात चाहे विदेशी उद्यमियों की हो, फिल्मी कलाकारों की या बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर्ताधर्ताओं की, भारतीय बाजार को देखते हुए वे सभी हिंदी सीख रहे हैं। हिंदी शिक्षक जिन्हें एक जमाने में अत्यंत दयनीय माना जाता था वे नये जमाने में महत्त्वपूर्ण होकर उभरे हैं। देश में अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों के प्रति बढ़ते लगाव ने हिंदी भाषा और हिंदी अध्यापकों को हाशिये पर धकेल दिया था। परंतु अब वक्त बदल रहा है। उद्योगपतियों और राजनेताओं की कॉन्वेंट स्कूलों और विदेशों में पढ़ी संताने जब अपने पिता की कारोबारी या राजनैतिक विरासत संभालने वापस आती हैं तो उन्हें हिंदी सीखनी ही पड़ती है।
औद्योगिक घरानों के ऐसे ही बच्चों को हिंदी सिखाने वाले सत्यप्रकाश दुबे कहते हैं कि समय बदल चुका है आज हिंदी भारत ही नहीं बल्कि विश्व पटल पर विराट हो रही है। देश की मुख्य भाषा की अनदेखी करना अब मुश्किल है। वह कहते हैं कि वैश्विक बाजार में भारत की भूमिका जितनी बढ़ेगी, हिंदी और हिंदी सिखाने वालों की मांग भी उसी गति से बढऩे वाली है। इसके साथ ही यह तिलिस्म भी टूट गया है कि हिंदी शिक्षक बहुत सस्ते होते हैं। फिल्म जगत और हिंदी का रिश्ता अटूट है। एक समय हर फिल्म का पोस्टर हिंदी में देखने को मिलता था लेकिन यह सिलसिला कब बंद हो गया पता ही नहीं। विदेशी अभिनेता-अभिनेत्रियों की बात तो छोड़ ही दें अब तो स्वयं भारतीय अभिनेता-अभिनेत्रियों को भी हिंदी नहीं आती। अधिकांश अभिनेता-अभिनेत्री अपनी पटकथा तक अंग्रेजी या रोमन में पढ़ते हैं। उनको जो संवाद लिखकर दिये जाते हैं वे भी रोमन में होते हैं। परंतु नयी पीढ़ी के लोगों में हिंदी को लेकर नये सिरे से चाव दिख रहा है।
हिंदी और तमिल-तेलुगू फिल्मों की जानी पहचानी एक्ट्रेस तमन्ना, ‘टॉयलेट एक प्रेम कथा’ ‘शुभ मंगल सावधान’ और ‘जोर लगा के हईसा’ जैसी फिल्मों अपनी अदाकारी का लोहा मनवा चुकीं भूमि पेडणेकर, ‘माई नेम इज खान’ में शाहरुख खान के बेटे का किरदार निभाने वाले अर्जुन औजला, सुप्रसिद्ध पाश्र्व गायक कुमार सानू के बेटे जीको भट्टाचार्य और अभिनेता अनुपम खेर की भतीजी वृंदा खेर, जैसे दर्जनों फिल्मों सितारों को हिंदी सिखाने वाले हिंदी शिक्षक विनय शुक्ला कहते हैं कि हिंदी हिंदुस्तान की नब्ज है, यह बात अब नेता, अभिनेता, उद्योगपति और विदेशी निवेशक सभी समझ रहे हैं, इसीलिए हिंदी सबको प्यारी लगने लगी है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के दोनों बेटों आदित्य ठाकरे व तेजस ठाकरे को हिंदी पढ़ाने वाले विनय शुक्ला कहते हैं कि यह काम करके मैं हिंदी की सेवा नहीं कर रहा बल्कि हिंदी मेरी सेवा कर रही है। हिंदी मेरी पहचान बन गई है और मेरे घर का चूल्हा भी हिंदी से ही जलता है। हिंदी को बाजार ने बचा रखा है।
हिंदी नयी प्रौद्योगिकी, वैश्विक विपणन तंत्र और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की भाषा बन रही है। आर्थिक उदारीकरण के युग में बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने देशों के शासकों पर दबाव बना रही है कि वे हिंदी को अहमियत दें ताकि भारत में व्यापार करने में आसानी हो। मांग के साथ शिक्षकों में भी बदलाव देखने को मिला है। तकनीक के युग में हिंदी अध्यापक भी डिजिटल हो गए हैं। फिल्मों के सितारे हिंदी में सही उच्चारण के साथ-साथ हिंदी के शब्दों का सही मतलब भी समझना चाहते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का आभास है कि वे जो संवाद बोल रहे हैं, उसका अर्थ नहीं जानते तो स्वाभाविक अभिनय नहीं कर पाएंगे।
अंतरराष्ट्रीय हिंदी प्रतिष्ठान के अध्यक्ष रामनारायण दुबे कहते हैं कि सबको हिंदुस्तान का बाजार दिख रहा है। विदेशों में हिंदी के प्रति रुझान इसीलिए बढ़ रहा है। वह खेद जताते हैं कि अपने ही देश में अपनी भाषा को लेकर जो गर्व और उत्साह होना चाहिए वह नदारद नजर आता है। दुबे कहते हैं कि हिंदी और हिंदी शिक्षकों का मान विदेशों में बढ़ा है, निजी संस्थाओं में भी उन्हें प्राथमिकता मिल रही है लेकिन सरकारी तंत्र में हिंदी आज भी उपेक्षित है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा समय में 40 से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थानों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। भारत से बाहर जिन देशों में हिंदी का बोलने, लिखने-पढऩे तथा अध्ययन और अध्यापक की दृष्टि से प्रयोग होता है, उनमें पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, चीन, मंगोलिया, कोरिया, जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, कनाडा और यूरोप के देशों के अलावा संयुक्त अरब अमीरात (दुबई) अफगानिस्तान, कतर, मिस्र, उजबेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि प्रमुख हैं।