यदि यह कहा जाए कि मौजूदा दौर पत्रकारों के लिए सबसे बुरे दौर में से एक है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मीडिया काफी हद तक दो भागों में विभाजित है और इस विभाजन का दंश उन खबरनवीसों को सबसे ज्यादा झेलना पड़ रहा है जो केवल निष्पक्षता के साथ पत्रकारिता करना चाहते हैं। इसके अलावा सरकारी स्तर पर उठे कई क़दमों ने भी पत्रकारों के मन में असंतोष और भय को जन्म दिया है। मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम इसका उदाहरण हैं। कई बार नौकरी की खातिर तो कई बार अन्य कारणों से पत्रकारों को अपनी लेखनी की धार को कुंद करना पड़ता है और इसका सीधा असर उनके दिलोदिमाग पर होता है।
‘आईटीवी नेटवर्क’ के चैनल ‘इंडिया न्यूज़’ की सीनियर एडिटर मीशा बाजवा चौधरी ने ऐसे पत्रकारों की पीड़ा को एक अलग अंदाज़ में बयां किया है। उन्होंने कवि अहमद फरहाद की एक कविता के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि आखिर एक पत्रकार कैसा महसूस कर रहा है।
मीशा ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर फरहाद की कविता को विडियो के रूप में पेश किया है। इसके साथ ही उन्होंने लिखा है, ‘देश और मेरे दिमाग में क्या चल रहा है, इसे व्यक्त करने के लिए मैं अपने पसंदीदा कवि अहमद फरहाद की शायरी का सहारा ले रही हूं। दरअसल यह सिर्फ मैं नहीं, मेरे कई साथी पत्रकार और साथी भारतीय भी महसूस कर रहे हैं। हम देखते हैं, हम महसूस करते हैं, हम गवाह हैं, हम समझते हैं, लेकिन हम खामोश रहते हैं और यही ख़ामोशी हमें और हमारे लोकतंत्र की आत्मा को ख़त्म कर रही है। मैं बस इतना ही कहना चाहती हूं कि आवाज़ उठाएं, कदम बढ़ाएं, वोट के जरिए अपनी राय दें, इसके पहले कि बहुत देर हो जाए और तानाशाही द्वारा लोकतंत्र पर कब्जा कर लिया जाए। धन्यवाद।’ इसके साथ ही मीशा ने लिखा है कि यदि आप उनकी बातों से सहमत हैं और जागरूकता फैलाना चाहते हैं तो इस विडियो को शेयर करना न भूलें।
‘इंडिया न्यूज़’ की एडिटर ने जिस कविता के जरिये पत्रकारों की दशा पर प्रकाश डाला है, वो आप यहां पढ़ सकते हैं-
काफ़िर हूं सर-फिरा हूँ मुझे मार दीजिए
मैं सोचने लगा हूँ मुझे मार दीजिए
है एहतिराम-ए-हज़रत-ए-इंसान मेरा दीन
बे-दीन हो गया हूँ मुझे मार दीजिए
मैं पूछने लगा हूँ सबब अपने क़त्ल का
मैं हद से बढ़ गया हूँ मुझे मार दीजिए
करता हूं अहल-ए-जुब्बा-ओ-दस्तार से सवाल
गुस्ताख़ हो गया हूं मुझे मार दीजिए
ख़ुशबू से मेरा रब्त है जुगनू से मेरा काम
कितना भटक गया हूँ मुझे मार दीजिए
मा’लूम है मुझे कि बड़ा जुर्म है ये काम
मैं ख़्वाब देखता हूं मुझे मार दीजिए
ज़ाहिद ये ज़ोहद-ओ-तक़्वा-ओ-परहेज़ की रविश
मैं ख़ूब जानता हूँ मुझे मार दीजिए
बे-दीन हूं मगर हैं ज़माने में जितने दीन
मैं सब को मानता हूँ मुझे मार दीजिए
फिर उस के बाद शहर में नाचेगा हू का शोर
मैं आख़िरी सदा हूं मुझे मार दीजिए
मैं ठीक सोचता हूं कोई हद मेरे लिए
मैं साफ़ देखता हूँ मुझे मार दीजिए
ये ज़ुल्म है कि ज़ुल्म को कहता हूं साफ़ ज़ुल्म
क्या ज़ुल्म कर रहा हूं मुझे मार दीजिए
ज़िंदा रहा तो करता रहूँगा हमेशा प्यार
मैं साफ़ कह रहा हूं मुझे मार दीजिए!!!
मीशा कई बड़े मीडिया संस्थानों जैसे ‘ज़ी न्यूज़’, ‘न्यूज़18’, ‘लाइव इंडिया’, ‘पीटीसी नेटवर्क’ से होते हुए ‘इंडिया न्यूज़’ पहुंची हैं। इसके अलावा उन्होंने ‘बिग एफएम’ के साथ भी कुछ वक़्त तक काम किया है। मीशा की हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी और पंजाबी भाषा पर भी अच्छी पकड़ है। मीशा के ये विडियो संदेश को आप नीचे लिंक पर क्लिक कर देख भी सकते हैं-
https://www.linkedin.com/in/misha-bajwa-chaudhary-8b040714/
साभार –https://www.samachar4media.com/ से