भारतीय रेल के अधिकारी उस अंग्रेजी शासन की याद दिला रहे हैं जहाँ किसी अंग्रेज का कुछ बोलना ही कानून होता था और आम भारतीयों को उनके शोषण का शिकार होना पड़ता था। भोपाल के रेल अधिकारियों ने नियम,कानून, मानवीयता और शालीनता की तमाम हदें पार करते हुए रेल यात्रा में लूटपाट का शिकार हुई युवती के खिलाफ ही मामला दर्ज कर अंग्रेजी राज के काले किस्सों की हकीकत बयान कर दी है। अगर यही हादसा किसी दो कौड़ी के नेता, मंत्री या सरकारी अधिकारी के साथ हुआ होता तो क्या रेल्वे के अधिकारी उसके साथ भी यही रवैया अपनाते? अगर ये हादसा किसी असरदार परिवार के किसी सदस्य के साथ होता तो भारतीय रेल्वे के यही अधिकारी उसे शौर्य पुरस्कार देकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करते।
देश भर के रेल्वे नेटवर्क में एक ऐसा गिरोह काम कर रहा है जो किसी भी गाड़ी के दुर्घटना ग्रस्त होने से लेकर किसी व्यक्ति के दुर्घटना ग्रस्त होने पर मुआवजे की राशि की बंदरबाँट करता है। कुछ वकीलों और दलालों का गिरोह दुर्घटना होते ही घटनास्थल पर पहुँच जाता है और पीडि़त से तमाम दावों और कागजों पर हस्ताक्षर करवा लेता है। फिर शुरु होता है रेल्वे अधिकारियों की मदद से मुआवजा हड़पने का खेल, पूरे मामले को अदालतों में 20 से 30 साल तक लटकाया जाता है जिसमें रेल्वे के अधिकारी और उनके बरसों से बंधे बंधाये वकीलों की अहम भूमिका होती है। रति के मामले में भी लगता है रेल्वे में ऐसा ही कोई गिरोह काम कर रहा है जो पीड़ित को न्याय देने की बजाय उसे ही अपराधी बनाने पर तुला है,मगर आश्चर्य है कि रेल्वे के आला अधिकारी ये खबर लगातार चर्चा में आने पर भी चुप क्यों हैं।
भारतीय रेल को एक नई पहचान देने में जुटे रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु को न्यायालयीन कार्रवाई के नाम पर बंदरबांट कर रहे रेल्वे अधिकारियों की पहचान कर इनके खिलाफ तत्काल कार्रवाई करना चाहिए। रेल्वे के दुर्घटना और मुआवजे से जुडे़ मुकदमों के रेल्वे के वकीलों और पीड़ितों के वकीलों को लेकर अगर व्यापक जाँच की जाए तो कई गिरोहों का पर्दाफाश हो सकता है।
जम्मू से इन्दौर जा रही मालवा एक्सप्रेस में लूटपाट का विरोध करने पर बदमाशों द्वारा चलती ट्रेन से फेंक दी गई रति त्रिपाठी 11 माह बाद भी अभी सदमे से बाहर नहीं निकली है। वह ठीक से चल भी नहीं पाती है। लेकिन डकैती की इस दुर्दांत घटना को रेल प्रशासन झूठी करार दे रहा है। रेलवे के जिम्मेदार अफसरों का दावा है कि रति त्रिपाठी द्वारा की गई शिकायत झूठी है। इससे रेलवे की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। अतः कमीशन इस मामले को रद्द करते हुए रति से 50 हजार रुपए का विशेष हर्जाना दिलवाए।
रति त्रिपाठी की ओर से मप्र.राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग में क्षतिपूर्ति के लिए रेल प्रशासन के खिलाफ 99 लाख रुपए का दावा प्रस्तुत किया है। रति त्रिपाठी की ओर से पैरवी कर रहे एडवोकेट प्रियनाथ पाठक ने बताया कि नोटिस मिलने के बाद आयोग में मंडल वाणिज्य प्रबंधक(पश्चिम-मध्य रेल)भोपाल नवदीप अग्रवाल,मंडल वाणिज्य प्रबंधक(उत्तर-मध्य रेल) गिरीश कंचन और घटना के समय ट्रेन के टीसी हरिसिंह चिढ़ार की तरफ पर शपथ पत्र के साथ लिखित जवाब पेश किया है। इसमें बताया गया है कि प्रकरण अनपेक्षित घटना से संबंधित है। अतः रेल अधिनियम 1989 की धारा-123 के तहत यह केस कमीशन के क्षेत्राधिकार का नहीं है। पाठक के मुताबिक रेल अफसरों द्वारा बताया गया कि रति ने असत्य तथ्यों के आधार पर झूठी शिकायत प्रस्तुत की है। इससे रेलवे की व्यावसायिक प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। परिवादी गण ने झूठी शिकायत प्रस्तुत की है। इसलिए यह शिकायत विशेष हर्जाना 50 हजार रुपए सहित निरस्त करने योग्य है।
मालवा एक्सप्रेस ट्रेन से 19 नवंबर 2014 को नई दिल्ली से उज्जैन के लिए यात्रा कर रही रति त्रिपाठी (29) कर रही थी। 19 नवंबर की सुबह 5 बजे बीना के पास करोंदा और आगासौद के बीच बदमाशों ने लूट के बाद उसे मालवा ट्रेन से फेंक दिया था। बाद में पुलिस ने इस गिरोह को गिरफ्तार भी किया। यह गिरोह मुख्यतया बीना, भोपाल और सागर तक के बीच वारदातों को अंजाम देता था। बदमाशों के पास से रति का एक मोबाइल बरामद हुआ था। रति त्रिपाठी जब मालवा के एस-7 में बर्थ नंबर 7 सवारी कर रही थी। 19 नवंबर को सवेरे करीब सवा 5 बजे बदमाश उसके समीप की सीट पर आकर बैठ गए। उनके अलावा चार बदमाश कोच के चारों दरवाजों पर खड़े हो गये। बदमाशों ने एस-7 के चारों गेट खाले दिए थे, संभवतया उन्हें पहले से मालूम था कि करोंदा और आगासौद पर ट्रेन धीमी होगी, जैसी ही टे्रन धीमी हुई सोती हुई तो रति के पास बैठे बदमाशों ने उसका पर्स छीनने की कोशिश की, लेकिन वह जाग गई और पर्स लेकर भाग रहे चंदन सिंह लोधी के बाल कसकर पकड़ लिए। जब चंदन के बालों को रति ने नहीं छोड़ा तो देव सिंह ने उसके हाथ पर काट लिया। रति चंदन के बाल पकड़े हुए दरवाजे की ओर बढती गई। चंदन ने कोच के गेट से नीचे छलांग लगा दी और उसके साथी देवी ने रति को पीछे से धक्का दे दिया। जिससे उसके सर में गहरी चोट लग गई। ट्रेन से गिरने के कारण रति के सिर में पीछे की तरफ गंभीर चोट लगी थी। उसके लिए सिर में 22 टांके लगाना पड़े थे। इसी तरह चेहरे पर नाक के पास 7 टांके लगे थे। । रति के सीधे हाथ में कुहनी के नीचे और बांह पर दो जगह दांतों के जख्म बदमाशों ने खुद को रति की पकड़ से बचाने के लिए किए थे।
रेलवे के विशेष पुलिस महानिदेशक मैथिलीशरण गुप्त ने तब शान से पत्रकारों को बताया था कि कि सभी बदमाश ललितपुर जिले के रहने वाले हैं। गिरफत में आए आरोपियों में उनका सरगना विरोरा गांव निवासी चंदन सिंह लोधी (50) निवासी ग्राम विरोरा, छोटेलाल गडरिया (45), गुलाब सिंह (65), जाहर सिंह (32), ओंकार उर्फ भज्जू (20) और देव सिंह लोधी (37) शामिल हैं। इसके अलावा आरोपियों से 14 अन्य वारदातों का माल बरामद भी हुआ है।
उन्होंने बताया था कि इन छह मुख्य आरोपियों में चंदन सिंह लोधी ललितपुर रेलवे का पूर्व गैंगमेन और गुलाब सिंह होमगार्ड में पदस्थ था। गिरोह में शामिल ललितपुर निवासी रूपकिशोर कक्का (58) लूट के माल को बेचने का काम करता था और माल में बाकायदा हिस्सेदारी रखता था। रूपकिशोर का साला सौरभ ही लूट का माल खरीदता था। वहीं रेलवे क्वार्टर खुरई में रहने वाला जगत सिंह (58) भी इनका सहयोग करता था।
गुप्ता ने बताया था कि सभी आरोपी रात्रि आठ बजे घरों से वारदात को अंजाम देने के लिए निकल जाते थे। बदमाश रेलकर्मियों के निरंतर संपर्क में रहते थे ताकि पता लगाया जा सके कि किस-किस जगह ट्रेन की रफ्तार धीमी होगी। जिस दिन इन्होंने वारदात को अंजाम दिया, उस दिन भी करोंदा के पास रेलवे का काम चल रहा था, इसके चलते रेल की रफ्तार धीमी हुई। इन बदमाशों के टारगेट पर अक्सर अकेली महिला यात्री होती थी। सोती हुईं महिलाओं का सामान लूटकर आरोपी अपने एक बुजुर्ग साथी गुलाब सिंह के थैले में डाल देते थे, गुलाब उनके साथ एक बड़ा झोला लेकर चलता था ताकि उस पर कोई शक न कर सके। अलसुबह घटना को अंजाम देने के बाद सुबह 9 बजे ललितपुर वापस लौट आते थे।
गिरोह का ऑपरेशन गुलाब सिंह पाल (65) करता था। बुजुर्ग होने के कारण यात्री इस पर शक नहीं कर पाते थे तो गैंग के बाकी के सदस्य लूट-चोरी का माल उसे दे दिया करते थे और वह मौका पाकर नजदीकी स्टेशन पर उतर जाता था। गैंग का एक सदस्य जगत सिंह अभी रेलवे में चाबीमैन है। पूरी गैंग के सदस्य रेलवे यूनियन कार्ड या रेल परिचय पत्र को जेब में रखते थे जिससे न तो टीटीई उनसे पूछताछ करता था और न ही वे टिकट लेते थे।
जब यह घटना हुई थी तब विशेष पुलिस महानिदेशक रेल मैथिलीशरण गुप्त ने रेलवे प्रशासन की खामियां भी मानी थी। उनका कहना है कि वे टीटीई पर प्रशासनिक कार्रवाई के लिए डीआरएम को पत्र लिख चुके हैं। घटना के तत्काल बाद टीटीई चेन पुलिंग करके टे्रन को रोककर पुलिस को सूचित भी कर सकते थे। उन्होंने बताया था कि आरोपी रेलवे यूनियन के पास को रखकर यात्रा कर रहे थे, जिसको देखकर टीटीई ने उनसे रेल पास और टिकिट नहीं मांगा।
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