गर्मी के 53 से ज्यादा मौसम बीते होंगे जब भारत ने केरल में मछुआरों के एक अनजाने से गांव थुंबा से अमेरिका में बने दो चरणों वाले ‘नाइक-अपाचे’ साउंडिंग राकेट को छोड़ कर अंतरिक्ष में पहली बार अपनी उपस्थिति दर्ज की। यह भारत का पहला राकेट था।
उस समय तिरुअनंतपुरम के बाहरी इलाके में स्थित थुंबा के भूमध्यरेखीय रॉकेट प्रक्षेपण स्टेशन (टीईआरएलएस) में इमारत नाम की कोई चीज नहीं थी। वहां के सेंट मैरी मैगदालेने गिरजाघर के बिशप का घर ही परियोजना-निदेशक का कार्यालय बन गया था और चर्च की इमारत में नियंत्रण कक्ष खोल दिया गया था। 21 नवंबर, 1963 को यहीं से राकेट के प्रक्षेपण के बाद धुंए की लकीर के सहारे नंगी आंखों से रॉकेट की ट्रैकिंग की जा रही थी। रॉकेट के हिस्सों और प्लेलोड को बैलगाडि़यों और साइकिलों पर लाद कर लाउंच पैड तक पहुंचाया गया।
12 साल बाद 1975 में भारत ने पहली बार अपना परीक्षण उपग्रह आर्यभट्ट एक रूसी रॉकेट से आसमान में छोड़ा। बुनियादी ढांचे के न होने से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन बंगलुरू के वैज्ञानिकों ने उस समय एक शौचालय को आंकड़े प्राप्त करने के केन्द्र में तब्दील कर दिया था।
थुंबा में शिशु के पहले कदम की तरह शुरुआत करने के बाद भारत ने अपने अंतरिक्ष के सफर में कई मील के पत्थर पार कर लिये हैं। इसरो उपग्रहों का निर्माण और प्रक्षेपण करने वाले दुनिया के प्रमुख संगठन के रूप में उभर कर सामने आया है। दुनिया ने खोजी चंद्र यान प्रक्षेपित करने की भारत की क्षमता को मान्यता दी है। आज हमारा देश अपने लिए और दूसरे देशों के लिए उपग्रहों का निर्माण करने के साथ-साथ उनक प्रक्षेपण भी कर रहा है। इतना ही नहीं हमने मंगल ग्रह तक पहुंचने में भी कामयाबी हासिल की है।
बीते दशकों में भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम राष्ट्रीय अनिवार्यताओं पर केन्द्रित था जिसके अंतर्गत समाज के आर्थिक और सामाजिक कल्याण के कार्यों पर ही जोर दिया जाता था। अंतरिक्ष कार्यक्रम के अंतर्गत धरती के प्रेक्षण और कृषि,जल और मत्स्य जैसे संसाधनों के प्रबंधन तथा जलग्रहण क्षेत्रों के मानचित्रण व विकास पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाता था। आज अंतरिक्ष आधारित उपयोग जैसे टेली-एजुकेशन और टेली-मेडिसिन ने शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं को ग्रामीण लोगों के सुलभ बना दिया है।
पिछले तीन वर्षों में अंतरिक्ष में खोज के भारतीय अभियान आगे बढ़ते रहे हैं। भारत के नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-17 को 28 जून को फ्रेंच गियाना से एरियन-5 रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया। इससे इसरो का 17 कार्यशील दूरसंचार उपग्रहों का बेड़ा और मजबूत होगा। इससे मौसम संबंधी और उपग्रह आधारित खोज व बचाव सेवाओं में मदद मिलेगी जो अब तक भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इनसैट) के जरिए संचालित की जाती थीं।
भारत को दुनिया में कम लागत पर अंतरिक्ष संबंधी सेवा प्रदाता देश के रूप में प्रचारित-प्रसारित करने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परिकल्पना को बढ़ावा देते हुए इसरो ने 23 जून को पीएसएलवी सी-38 का प्रक्षेपण किया। इसके जरिए पृथ्वी के प्रेक्षण के लिए 712 कि.ग्रा. वजन के कार्टोसेट-2 के साथ-साथ छोटे-छोटे 30 अन्य उपग्रह भी आकाश में भेजे गये जिनमें से कई यूरोप के देशों के थे। पीएसएलवी का यह एक के बाद दूसरी लगातार सफलता प्राप्त करने वाला 39 वां मिशन था।
भारत ने इस साल 5 जून को अपने सबसे शक्तिशाली, स्वदेश निर्मित और अब तक के सबसे भारी संचार उपग्रह जीसैट-19 को भू स्थिर अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहन मार्क-III (जीएसएलवी एमके- III डी 1) के जरिए प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष टेक्नोलाजी के क्षेत्र में दुनिया के गिने-चुने अग्रणी देशों की जमात में अपनी जगह बनायी। 3,136 किग्रा वजन के इस उपग्रह ने चार टन तक के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की इसरो की क्षमता को साबित कर दिया। इससे स्वदेशी क्षमता से क्रायोजेनिक इंजन बनाने की हमारी क्षमता का भी परीक्षण हुआ और भविष्य में मनुष्य को धरती के वायुमंडल से दूर अंतरिक्ष में भेजने का मार्ग प्रशस्त हो गया। अब भारत अपने संचार उपग्रहों को खुद ही अंतरिक्ष में भेज सकता है। अब तक सिर्फ अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और
जापान ने 4 हजार किग्रा या इससे अधिक वजन के उपग्रहअंतरिक्ष में प्रक्षेपित किये थे।
इससे पहले 5 मई को भारत ने पहला दक्षिण एशिया उपग्रह (एसएएस) अंतरिक्ष में छोड़ कर अपने छह पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, बंगलादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका के बीच संचार को बढ़ावा देने और आपात संपर्क मजबूत करने में कामयाबी हासिल की थी। इसरो निर्मित और पूरी तरह भारत द्वारा वित्त पोषित 2,230 किग्रा वजन के जीसैट-9 उपग्रह के जीएसएलवी-एफ09 राकेट से प्रक्षेपण के बाद प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस ‘’अभूतपूर्व’’घटनाक्रम से दुनिया को यह संदेश गया है कि अगर क्षेत्रीय सहयोग का सवाल है तो ‘’आसमान भी इसकी सीमा नहीं बन सकता’’।
इस साल फरवरी में भारत ने ध्रुवीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी सी-37) के जरिए एक ही अभियान के अंतर्गत एकसाथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष अनुसंधान के इतिहास में नया अध्याय लिखा। इनमें कार्टोसैट श्रृंखला का कार्टोसैट-2 उपग्रह भी शामिल था। यह राकेट छह अलग-अलग देशों के प्लेलोड लेकर रवाना हुआ था। इस शानदार कामयाबी ने भारत को दुनिया में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की सुविधा प्रदान करने वाले देश के रूप में स्थापित कर दिया।
इन महान उपलब्धियों ने इसरो को अंतरिक्ष की दौड़ में बड़ी मजबूत स्थिति में ला दिया है। अंतरिक्ष अनुसंधान और इसरो को लेकर प्रधानमंत्री कितने संवेदनशील हैं इसका पता इस साल के बजट आबंटन में अंतरिक्ष विभाग के खर्च में 23 प्रतिशत की जोरदार बढ़ोतरी से स्पष्ट रूप से लगाया सकता है।
2016 की प्रमुख उपलब्धियों में दिसंबर में दूर संवेदी उपग्रह रिसोर्ससैट-2 का प्रक्षेपण, जून में एक ही प्लेलोड में रिकार्ड संख्या में 20 उपग्रहों के प्रक्षेपण के अलावातीन नौसंचालन उपग्रहों और जीसैट-18 संचार उपग्रह का छोड़ा जाना शामिल है।
इसरो ने 2015 में जीसैट-15 संचार उपग्रह और विभिन्न तरंग लंबाई वाले अंतरिक प्रेक्षण उपग्रह एस्ट्रोसैट को आकाश में छोड़ा। उसने स्वदेशी क्षमता से विकसित उच्च शक्ति क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन का जमीनी परीक्षण किया। इसके अलावा जुलाई में पीएसएलवी के जरिए पांच उपग्रह छोड़े गये और इंडियन रीजनल रेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) प्रणाली का चौथा उपग्रह प्रक्षेपित किया।
दिसंबर 2014 में संचार उपग्रह जीसैट-16 का प्रक्षेपण किया गया। पीएसएलवी ने अक्तूबर में देश के तीसरे नौसंचालन उपग्रह आईआरएनएसएस-1सी के अलावा पूरी तरह नौवहन को समर्पित दूसरे उपग्रह आईआरएनएसएस-1बी का अप्रैल में प्रक्षेपण किया।
आने वाले वर्षों में इसरो के वैज्ञानिकों का बड़ा व्यस्त कार्यक्रम है। कई उपग्रहों का काम चल रहा है। 2018 के प्रारंभ में भारतीय अंतरिक्षएजेंसी दो चंद्र अभियान शुरू करेगी। चंद्रयान-2 इससे पहले के चंद्रयान-1 का परिष्कृत संस्करण होगा। इसके अंतर्गत स्वदेशी क्षमता से निर्मित आर्बिटर, लैंडर और रोवर का निर्माण किया जाएगा। इस अभियान के जरिए चंद्रमा की सतह पर खनिज विज्ञान और तत्व संबंधी अध्ययन किये जाएंगे। दूसरा अभियान टीम इंडस नाम के अंतरिक्ष में दिलचस्पी रखने वाले ग्रुप के सहयोग से चलाया जाएगा।
अगली बड़ी परियोजना सूर्य से संबंधित वैज्ञानिक मिशन की है जिसमें कोरोनाग्राफ नाम की एक दूरबीन से सूर्य की तीन प्रमुख बाहरी पर्तों कोरोना, फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर के साथ ही सौर पवन का अध्ययन किया जाएगा। इसके अंतर्गत पीएसएलवी XL के जरिए 2020 में आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण किया जाएगा। यह उपग्रह इस बात का पता लगाएगा कि सौर ज्वालाओं और सौर पवन से धरती के संचार नेटवर्क और इलेक्ट्रानिक्स प्रणालियों में व्यवधान क्यों आता है।
इसके बाद इसरो संभवत: 2021-22 में एक बार फिर से मंगल का भी रुख करेगा और मंगलयान-2 नाम का दूसरा मंगल आर्बिटर मिशन (एमओएम) अंतरिक्ष में भेजेगा। इसके बाद सितंबर 2024 के आते-आते किसी दूसरे ग्रह की पड़ताल पर निकले भारत के रोबोटयुक्त अंतरिक्ष यान मंगलयान-1 का अभियान पूरे जोरों पर होगा और यह रक्तिम आभा वाले मंगल ग्रह पर अपने उतरने की तीसरी जयंती मनाएगा। भारत दुनिया का पहला राष्ट्र है जिसने किसी ग्रह के लिए अपने पहले ही मिशन में मंगल की कक्षा में पहुंच कर इतिहास रचा है। इतना ही नहीं हमारा यह मिशन खर्च के लिहाज से अब तक का सबसे सस्ता मिशन साबित हुआ है।
2020 के बाद भारत पहली बार शुक्र का अभिसार करेगा। शुक्र का आर्बिटर मिशन इस ग्रह के वातावरण का अध्ययन करेगा।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और स्तंभकार हैं और उन्हें प्रिंट, ऑनलाइन, रेडियो तथा टेलीविजन माध्यमों में काम करने का चार दशक का अनुभव प्राप्त है। वह विकास संबंधी विषयों पर लिखते हैं। इस लेख में वयक्त विचार उनके निजी विचार हैं।