Monday, December 23, 2024
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सौर ऊर्जा से ही बदलेगी भारत की तस्वीर

नई दिल्ली में 1 मार्च को हुआ महत्त्वाकांक्षी अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (इंटरनैशनल सोलर अलायंस) भारत की ऊर्जा आवश्यकताएं पूरी करने की दिशा में एक बड़ी पहल है। जलवायु परिवर्तन से वैश्विक स्तर पर पैदा होने वाली चुनौतियों से निपटने में भी सौर ऊर्जा एक अहम जरिया साबित हो सकती है। पर्यावरण के अनुकूल सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि आर्थिक गतिविधियों में परंपरागत ऊर्जा की जगह अक्षय ऊ र्जा का इस्तेमाल किया जाए। अक्षय ऊर्जा स्रोतों में सौर ऊर्जा सबसे अधिक कारगर माध्यम प्रतीत होती है और भारत जैसा देश अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से सौर ऊर्जा को अपनी ऊर्जा नीति का अहम हिस्सा बना सकता है।

यह गठबंधन तो किया ही जाना चाहिए, लेकिन आगे पेश होने वाली चुनौतियों को लेकर भी सतर्क रहना चाहिए। सौर ऊर्जा केवल दिन में प्राप्त की जा सकती है और इसकी उपलब्धता विभिन्न कारकों जैसे मौसम, बादल की स्थिति आदि पर निर्भर करती है। सौर ऊर्जा को परंपरागत ऊर्जा का एक टिकाऊ विकल्प बनाने के लिए तकनीकी स्तर पर नवाचार का ध्यान सस्ती, विश्वसनीय एवं पर्यावरण के अनुकूल सौर ऊर्जा भंडारण पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए।

सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए सोलर पैनल आवश्यक है और इन्हें लगाने के लिए जगह की जरूरत होती है। भारत जैसी घनी आबादी वाले देश में जगह की उपलब्धता महंगी है। हालांकि इन चुनौतियों के बावजूद सौर ऊर्जा के कई इस्तेमाल हैं, जो आर्थिक दृष्टिïकोण से व्यावहारिक हैं, खासकर ये ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में खासे कारगर साबित हो सकते हैं। भारत में सौर ऊर्जा उद्योग विकसित करने के अपार अवसर मौजूद हैं क्योंकि चीन की तरह यहां भी वे सभी सुविधाएं मौजूद हैं, जो लागत घटाने और नवाचार को बढ़ावा देने में सहायक होती हैं। इंटरनैशनल सोलर अलायंस की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत अपने महत्त्वाकांक्षी राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन में कितना कामयाब होता है।

इस पहल को आगे ले जाने के लिए उन तथ्यों पर गौर करना जरूरी है, जिन्हें आधार बनाकर 2009 में तत्कालीन सरकार ने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) के तहत सौर ऊर्जा मिशन की शुरुआत की थी। जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री के विशेष दूत के तौर पर एनएपीसीसी का स्वरूप तैयार करने में मैं भी शामिल था और इसके आठ लक्ष्यों में सौर मिशन को केंद्र में रखा गया था। एनएपीसीसी के अस्तित्व में आने के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि भारत के लिए ऊर्जा जरूरतें और जलवायु परिवर्तन एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

उन्होंने कहा था कि ऊर्जा जरूरतों और पर्यावरण की रक्षा दोनों कारणों से भारत को अपनी आर्थिक प्रगति का आधार मौजूदा जीवाश्म ईंधन के बजाय अक्षय ऊर्जा के संसाधनों जैसे सौर ऊर्जा और नाभिकीय ऊर्जा को बनाना होगा। इस ऊर्जा के संदर्भ में उन्होंने कहा था, ‘इस रणनीति में सूर्य केंद्र बिंदु में है और यह सभी ऊर्जा का वास्तविक स्रोत होना चाहिए। अपनी अर्थव्यवस्था को गति देने और अपने लोगों का जीवन बदलने के लिए हम वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रबंधन से जुड़े कौशल साथ में वित्तीय संसाधन से एक प्रचुर ऊर्जा के स्रोत के तौर पर सौर ऊर्जा विकसित करेंगे। इस कार्य में हमारी सफलता भारत का रुतबा बदल देगी। इससे भारत दुनिया के देशों के लोगों की किस्मत बदलने में भी सक्षम होगा।’

राष्ट्रीय सौर मिशन में न केवल सौर ऊर्जा का इस्तेमाल बढ़ाने पर जोर दिया गया, बल्कि चुनौतियों से निपटने के तकनीकी रास्ते तलाशने पर भी जोर दिया गया। इस पर सहमति बनी थी कि सौर ऊर्जा को परंपरागत ग्रिड ऊर्जा के समकक्ष खड़ा करने के वास्ते 6 से 8 घंटे के ऊर्जा भंडारण की व्यवस्था करने के लिए बड़े स्तर पर शोध एवं विकास शुरू किया जाना चाहिए।

यह प्रस्ताव दिया गया कि विशेषज्ञों द्वारा तय प्रारूप के अनुसार भंडारण प्रणाली विकसित करने के लिए आईआईटी जैसे संस्थानों के समूह को बोली देने के लिए आमंत्रित किया जाना चाहिए। इसी तरह, सौर ऊर्जा के प्रति मेगावॉट के लिए जगह की जरूरत कम करने के लिए सूक्ष्म तकनीक पर भी विचार हुआ। अंत में इस बात पर भी सहमति बनी कि सौर ऊर्जा में अस्थिरता और विभिन्न कारकों पर इसकी निर्भरता से निपटने के लिए हाइब्रिड सॉल्यूशंस जैसे सौर ऊर्जा के साथ गैस, बायोमास और ताप ऊर्जा के मिश्रण का विकल्पों पर भी विचार होना चाहिए। यह कार्य करने के लिए मिशन ने तकनीकी और आर्थिक व्यवहार्यता साबित करने के लिए कुछ प्रायोगिक परियोजनाओं पर भी विचार किया था।

मेरा मानना है कि यह पहल आगे ले जाने के लिए सरकार को वास्तविक मिशन में दिखाए गए उन तकनीकी रास्तों पर दोबारा विचार करना चाहिए, जिन पर कभी गंभीरता से काम नहीं हुआ। सौर ऊर्जा क्षेत्र में भारत को नेतृत्व करने की स्थिति में आना चाहिए। चीन पहले ही इसके लिए दावा कर रहा है और शोध एवं विकास पर बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है।

मिशन ने इसे लेकर भी सहमति दिखाई कि सौर ऊर्जा ग्रामीण एवं सुदूर क्षेत्रों में बिजली उपलब्ध कराने का सर्वाधिक उपयुक्त विकल्प है। अध्ययनों में यह बात सामने आई कि सुदूर क्षेत्रों में ग्रिड से बिजली पहुंचाने के मुकाबले सौर ऊर्जा उपलब्ध कराना अधिक सस्ता है। इनमें डीजल पंपों की जगह सोलर पंपों का इस्तेमाल सबसे अधिक कारगर लगा। एक अन्य अध्ययन में पता चला कि घरों एवं औद्योगिक स्थानों दोनों जगहों बिजली कटने की स्थिति में लंबे समय तक चलने वाले मौजूदा इन्वर्टर की जगह आधुनिक सोलर इन्वर्टर इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं। इससे बिजली और खर्च दोनों बचाने में मदद मिलेगी।

इलेक्ट्रिक इन्वर्टर बेकार होते हैं क्योंकि बैटरी चार्ज करने में वे कुल खपत का 30 प्रतिशत बिजली का उपभोग कर लेते हैं। भारत जैसे देश में इन विकल्पों पर प्राथमिकता से विचार करना चाहिए। इंटरनैशनल सोलर अलायंस का स्वागत किया जाना चाहिए। भारत में सौर ऊर्जा क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी होने की क्षमता है। इसने अपने लिए खासा महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। भारत 2022 तक 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा का उत्पादन करना चाहता है। यह लक्ष्य पूरा करने के लिए तकनीक की अहम भूमिका होगी। एक तरह से भारत फिलहाल अच्छी स्थिति में है क्योंकि उम्मीद से पहले ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौर ऊर्जा की कीमतें ग्रिड के बराबर हो गई हैं।

सौर ऊर्जा उत्पादन की दिशा में तेजी से काम करने के लिए घरेलू स्तर पर एक टिकाऊ सौर ऊर्जा उद्योग का ढांचा तैयार करते और नवाचार की तरफ बढ़ते हुए बाहर से सस्ते पैनल आयात किए जा सकते हैं। ऐसी उम्मीद की जाती है कि कुछ उपयोगी तथ्य एकत्र करने के लिए सरकार वास्तविक मिशन पर दोबारा विचार करेगी। ये तथ्य काफी मेहनत और तननीकी परामर्श के नतीजों के बाद सामने आए थे।

साभार- http://hindi.business-standard.com/ से

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