कंडों की होली जलाकर इंदौरवासियों ने पिछले साल जिस सामाजिक सरोकार की शुरुआत की थी, उसका बड़ा असर हुआ था। होली के दौरान हुई कंडों की बिक्री से इंदौर के आसपास की 60 गोशालाओं की लगभग 6000 गायों का सालभर का खर्च निकल आया था। साथ ही मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के पांच बड़े शहरों इंदौर, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर और रायपुर में लगभग 411 टन लकड़ियां जलने से और लगभग 35 हजार किलो कार्बन भी हवा घुलने से बच गया था।
गोशालाओं से 14 लाख कंडे बिके, जिससे 2.75 करोड़ रुपए की आमदनी हुई थी। हम और आप चाहें तो यह अभियान इस वर्ष इन आंकड़ों को और भी बड़ा कर सकता है। पर्यावरण सुधार और पशुधन बचाने की दिशा में नईदुनिया के अभियान का मप्र सरकार के पशुपालन और गोसंवर्धन बोर्ड ने समर्थन दिया है।
एक दिन में दो करोड़
चार साल पहले इंदौर के पचास व्यापारियों और कारोबारियों ने एक फॉर्मूला तैयार किया था। इसके तहत एक कंडे का मूल्य 10 रुपए लगाया गया। दो रुपए कंडा बनाने वाले और 2 रुपए ट्रांसपोर्ट का निकाल दें तो गोशाला के हिस्से में आता है 6 रुपए। गोसेवा विभाग के प्रमुख मनोज तिवारी, राजेश गुप्ता, गोपाल अग्रवाल के मुताबिक शहर में 400-500 बड़ी होलिका दहन होता है। यदि कंडों की होली में 20 लाख कंडों की खपत हो सकती है। इस तरह सिर्फ इंदौर से एक दिन में गोशालाओं को 2 करोड़ रुपए की राशि मिल सकती है।
पूरे प्रदेश में कंडों की होली जलाकर एक दिन में ही गोशालाओं को काफी हद तक स्वाबलंबी बनाया जा सकता है। -महामंडलेश्वारानंद स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरी, अध्यक्ष कार्यपरिषद, मप्र गोपालन व पशुसंवर्धन बोर्ड
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