डाॅ. निशा शर्मा
भारत देश आर्यों का देश माना जाता है आर्य अर्थात श्रेष्ठतम प्राणी आर्य संस्कृति का मूल है सदाचार का पालन आर्य नर और नारी इसी गुण के कारण सूर और सति कहलाते हैं सूर का अर्थ है अजेय योद्धा और ईश्वर ने आर्य नारी को ऐसे अप्रतिम गुणों के साथ कर उत्पन्न किया है जो अपने इन महान गुणों से इस स्रष्टि पर उपकार करती आई है | सम्पूर्ण धरातल के मानस पटल पर नारी को सदैव देवतुल्य माना गया है और नारी भी इस तथ्य को सिद्ध करती आई है |
गार्गी- याज्ञवल्क्य संवाद इसका अनुपम उदाहरण है | आदिशंकराचार्य ने भी अपने गीतकाव्य सौन्दर्य लहरी में नारी के नेतृत्व शैली एवं शक्ति की महत्ता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि यदि शिव शक्ति के साथ हों तो शिव में भी स्फुरण की क्षमता विधमान रहती है अन्यथा शिव भी शव ही रह जाते हैं | किसी भी समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए नारी शक्ति का विशेष महत्व है नारी स्वयं एक शक्ति ही नहीं अपितु एक पथ प्रदर्शक भी है जिसमें नेतृत्व की अपार क्षमता देखने को मिलती है वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीय नारी ने अपनी बुद्धि और शक्ति का परिचय दिया है | जहाँ लोपामुद्रा ऋग्वेद की मंत्रद्रष्टा थीं , वहीँ गार्गी ने अपनी प्रतिभा, बौद्धिकता और ज्ञान का परिचय दिया |
मध्य काल में जहाँ एक ओर मीराबाई ने अपनी अस्मिता और स्वत्व को महत्व देकर रूढ़िवादी समाज को चुनौती दी तो वहीँ आधुनिक समाज में नारी शक्ति की अनुभूति नेता जी सुभाषचंद्रबोस की स्त्री सेना में हुई | स्त्री की इसी नेतृत्व क्षमता का परिचय जयशंकर प्रसाद की कामायनी में मिलता है – मनु का पथ अवलोकित करती / इड़ा अग्नि ज्वाला सी | यह इड़ा का चरित्र आज की नारी का प्रतिनिधत्व करता है जिसमें सामंती मानसिकता को चुनौती देने की क्षमता है | इसी प्रकार महादेवी वर्मा की लेखनी में भी नारी की प्रतिबद्धता देखने को मिलती है |
वर्तमान समय की बात करें तो गुंजन सक्सेना , पी.वी.सिन्धु , गीता फोगाट, सायना नेहवाल , साक्षी मालिक, मैरीकाम, मीराबाई चानू आदि अनेक नाम हमारे समक्ष हैं जिन्होंने रूढ़िवादी भारतीय समाज की समस्त चुनौतियाँ स्वीकार की और सम्पूर्ण विश्व में अपने प्रदर्शन से भारत को गौरान्वित किया परन्तु वर्तमान भारतीय परिवेश में महिलाओं की स्थिति घुमावदार चक्रव्यहू की तरह नजर आती है कभी उसे शिखर पर वैठाकर देवी बना दिया जाता है तो कभी उसे दासी समझा जाता है |
अवसरानुसार एवं सुविधानुसार महिलाओं की स्थिति पेंडुलम की भांति इधर उधर डोलती रहती है पर सच्चाई तो यह है कि महिलायें समाज की आधारशिला होती हैं | महिलाओं की इसी स्थिति में सुधार का प्रयास ही महिला सशक्तिकरण की दिशा में बढ़ाया गया कदम है परन्तु विडम्बना यह है कि जहाँ हम सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हैं वहीँ तुरंत ही विकृत, कुंठित मानसिकता के धनी कुछ लोग अपने नैतिक मूल्यों की तिलांजलि देते हुए दिख जाते हैं |
भारतीय सविधान के अनुच्छेद 15 (3) में विशेष उपबंध के तहत लैंगिक निष्पक्षता , समानता तथा सशक्तीकरण की व्यवस्था भले ही की गयी हो किन्तु इसका उल्लंघन निरंतर ज़ारी है | अभी हाल ही में महामहिम राष्ट्रपति पर अनर्गल टिप्पणी कर एक राष्ट्रीय पार्टी के कद्दावर नेता अचानक सुर्खियों में आ गए या यूँ कहें कि वे ये विचार कर रहे थे कि किस प्रकार सुर्खिया बटोरी जाएँ |
सस्ती लोकप्रियता के चक्क्कर में नेता जी इतिहास को भूल बैठे क्योकि इतिहास गवाह है कि जब जब भारतीय नारी पर कुपित द्रष्टि पड़ी है तब तब भारतीय नारी ने ही उसका संहार किया किया है | वह रामायण की सीता हों, महाभारत की द्रौपदी , सयोगिता हों, या फिर चित्तोढ़ की रानी पद्मावती | सभी ने अपने स्वाभिमान की सदैव ही रक्षा की है | नारी के सम्मान , उसके स्वाभिमान की रक्षा के लिए राष्ट्र के प्रति समर्पित समाज ने सदैव ही अग्रणी भूमिका निभाई है | यही कारण है कि वर्तमान में देश के सर्वोच्च पद पर आसीन एक महिला के प्रति विवादित बोल बोले जाने पर समाज के प्रत्येक वर्ग ने इसका विरोध किया |
आज समाज को ऐसी मानसिकता वाले व्यक्तियों को पहचानने की अत्यंत आवश्यकता है और साथ ही इनके चरित्र की भी पहचान आवश्यक है | चीनी दार्शनिक कनफ़्यूसियस के अनुसार यदि आपका चरित्र अच्छा है तो आपके परिवार में शान्ति होगी और यदि आपके परिवार में शांति है तो आपके समाज में शांति रहेगी | राजनीतिक क्षेत्र में सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष में दायित्ववान होने का तात्पर्य यह नहीं कि हम अपने नैतिक मूल्यों, संस्कारों, कर्तव्यों , निष्ठा जैसे नैसर्गिक गुणों को ही भुला दें | यही गुण तो हमें पशुता की श्रेणी से अलग करते हैं | इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि आज जिस प्रकार समाज विकास की अंधी दौड़ और पाश्चात्य संस्कृति का दुष्प्रभाव भारतीय युवा मन को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है और वैश्विक तंत्र भी सोशल मीडिया के माध्यम से मात्र एक क्लिक से अच्छी बुरी सभी चीज़ों को समाज के सामने प्रस्तुत कर रहा है वहीँ संस्कार संरक्षण किस प्रकार किया जाए , इस यक्ष प्रश्न के उत्तर में भी हम सभी नारी को ही पाते हैं |
अत: हमें इसका ध्यान रखकर ही समाज के लिए कार्य करना होगा साथ ही इस सत्य को भी स्वीकारना होगा कि नारी अपनी सोच, मनोबल,ज्ञान, बलिदान , नेतृत्व , ममत्व , क्रतत्व, सहयोग और क्षमा की प्रतीक है | इस राष्ट्र की जाग्रत चेतना है और इस जाग्रत चेतना का अपमान समाज किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगा |
डॉ. निशा शर्मा
(विभाग कार्यवाहिका) राष्ट्र सेविका समिति
हरिगढ़ विभाग ( ब्रज प्रान्त )