नाम :राजाबाबू सिंह
पद:अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक
पदस्थापना:ग्वालियर संभाग
वैशिष्ट्य:गीता और गांधी के प्रति दीवानापन इस हद तक की छः जिलों में लोग इन्हें व्याख्यान के लिये बुलाने को आतुर रहते हैं।
जी हां यूपी के बांदा जिले में जन्में भारतीय पुलिस सेवा के इस अधिकारी की चर्चा इन दिनों मप्र भर में न केवल सोशल पुलीसिंग के लिये हो रही है बल्कि गीता और गांधी के वैचारिक अधिष्ठान को समाज मे मैदानी स्तर पर स्थापित करने के लिये भी हो रही है।
अब तक लगभग 11 हजार भगवद्गीता की प्रतियां वे अपने हाथों से बांट चुके है कोशिश करते है अंचल के युवाओं के बीच वे गीता को एक जीवन ग्रन्थ के रूप में न केवल प्रतीकात्मक रूप से वितरित करें बल्कि इसके मूल मन्तव्य को भी नई पीढ़ी तक हस्तांतरित कर सके इसके लिये वे अपने हर सरकारी दौरे में बच्चों से मिलने का कार्यक्रम जोड़कर चलते है जो किसी सरकारी या निजी स्कूल में एक ऐसे सँवाद के रूप में होता है जो रोचक कक्षा की तरह लगे।एक बड़े पुलिस अफसर के हेडमास्टर की तरह इस रूप को वह खुद समझाने का प्रयास करते है कि ‘गीता कोई धर्म या उपासना पद्धति से जुड़ा ग्रन्थ नही है बल्कि यह मानवीय सभ्यता का दिग्दर्शक है यह हमें अधिकारों के साथ कर्त्तव्य पथ और उसकी अपरिहार्यता का भान कराता है” वह जोड़ते है कि आज की सामाजिक समस्याओं का मूल गीता के संदेशों में छिपा है हम अगर अपानी क्षमता और वैशिष्ट्य के मुताबिक कार्य को करें तो सामाजिक दरकन कहां से पैदा होगा?
राजाबाबू सिंह इस बात से चिंतित है कि समाज की मौजूदा पीढ़ी का रिश्ता हमारी परंपरा और ज्ञान से पूरी तरह कट रहा है सोशल मीडिया के एक पक्षीय और उथली सूचनाओं ने मानसिक रूप से नई पीढ़ी में एक अलग तरह की दिव्यांगता को जन्म दे दिया है अगर समय रहते इसका शमन नही किया गया तो भविष्य बहुत खतरनाक होगा।
वह स्पष्ट रूप से कहते है कि गीता औऱ गांधी ही भारत का भविष्य है।इसलिये वह दोनों के आग्रह को लेकर चल रहे हैं।
कभी अपनी सख्त पुलिसिया छवि के लिये मशहूर रहे राजाबाबू सिंह आजकल बेहद ही सहज और सरल इंसान की तरह 6 जिलों में पुलिस का चेहरा बदलने में भी लगे है।वे लगातार मैदानी दौरे पर रहते है व्यापारियों,विद्यार्थियों, किसानों,जेल में निरुद्ध कैदियों,जुबेनाइल केंद्रों,हॉस्टल्स,में सम्पर्क और सँवाद करने का मौका नही छोड़ते है ताकि आमोखास में पुलिस की डरावनी छवि को बदला जा सके।अंचल की हर बड़ी घटना पर वे खुद मौके पर जाते है पुलिस अक्सर पीड़ित से इसलिये दूरी बनाकर चलती है क्योंकि उसे लगता है पीड़ित के मन में पुलिस के प्रति गुस्सा होता है लेकिन राजाबाबू इस धारणा को भी बदलने में जुटे है उनकी सख्त पुलीसिंग से वे अपराधियों पर वज्र की तरह टूटने की रणनीति पर तो काम कराते ही है वही खुद पीड़ितों तक पहुँचकर उनके बीच हीलिंग टच का प्रयास भी करते है।पिछले दिनों ग्वालियर में हुई विभिन्न वारदातों के बाद वे अस्पताल और घर जाकर पीड़ितों से मिले जैसा कि वह स्वयं बताते है कि ‘पुलिस अपराधियों को पकड़ने या ढेर करने के लिये ही नही वह संवेदनशील तंत्र भी है इसे हमें अमल में लाना होगा।’
पुलिस की सामाजिक छवि को तराशने के लिये वह लगातार ऐसे प्रकल्पों को अंजाम दे रहे है ताकि खाकी आवरण में समाज के दूसरे रंग भी समाहित नजर आएं।ग्वालियर विश्वविद्यालय परिसर में उनके द्वारा चलाया गया सफाई अभियान इसी का हिस्सा है।केंद्रीय कारागार में पुस्तकालय की स्थापना हो या हर जिले में पुलिस और सामाजिक भागीदारी के जरिये पौधरोपण राजाबाबू सिंह इस प्रयास में जुटे है कि आमधारणा में पुलिस भी दीगर विभागों की तरह आमजन के मध्य रागात्मकता का अहसास कराए।
वीरता पदक से सम्मानित राजाबाबू सिंह पुलिस के जरिये परिवार प्रबोधन के बुनियादी काम मे भी जुटे हुए है शिवपुरी जिले में उन्होंने एक समाजसेवी आलोक इन्दोरिया के माध्यम से 31 लब्ध प्रतिष्ठित लोगों का समूह बनाया है जो पारिवारिक झगड़ो,महिला हिंसा के मामलों को पुलिस के सरंक्षण में सामाजिक भागीदारी से ही निपटाने के लिये एक तंत्र के रूप में काम कर रहा है।इस प्रकल्प को वे शेष जिलों में भी लागू कर रहे हैं।
कारागारों में वे इसलिए लगातार सम्पर्क और सँवाद करते है ताकि यहां आने वाले अधिकतर परिस्थितिजन्य अपराधी समाज में अपनी मूल जगह पर जाकर योगदान दे सकें उन्हें गीता और गांधी के दर्शन से जोड़ने के पीछे भी उनका यही तर्क है.
आईटीबीपी में प्रतिनियुक्ति के दौरान गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिये गंगा की यात्रा निकाली जिसमें जवानों के साथ तटवर्ती निवासियों को लेकर जनजागरण का बेहतरीन काम किया।
ग्वालियर अंचल के हर थाने को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मंशा के मुताबिक साफ सुथरा औऱ हराभरा करने के उद्देश्य से ठोस काम हुआ।सभी थानों की खाली भूमि पर पीपल जैसे ऑक्सीजन बहुल 108 पौधे लगाने का अभियान चलाया ।
देशी नस्ल की गायों के सरंक्षण के लिये जमीनी अभियान शुरू किया गया।
महीने के हर पहले रविवार को किसी एक सार्वजनिक स्थल की जनभागीदारी आधारित सफाई और इस आशय का संकल्प फिर इसकी नियमित निगरानी।
पौधरोपण के लिये ‘मटका’ड्रिप का देशी ईजाद जिसके तहत पौधों के साथ एक अनुपयोगी मटका सयुंक्त करने का आग्रह जिसे 15 दिन में भरकर पौधों को पोषण प्रदान किया जाये।
पुस्तकों के प्रभाव को पुनः स्थापित करने के लिये कारागृह और विधालयों में जनभागीदारी से किताबों की उपलब्धता*
गीता की प्रतियां भेंट कर नई पीढी को प्रतिदिन इसके स्वाध्याय के लिये प्रेरित करना।
गांधी जी के 150 वे जन्मदिन से लगातार गांधी दर्शन पर लोगों खासकर युवाओं से सँवाद
अपराध या दुर्घटना के बाद सिर्फ अपराधियों को पकड़ने की पुलीसिंग के साथ पीड़ितों के घर तक जाकर आँशुओ को पोछने उनसे सह्रदयता के साथ एक विश्वसनीय सँवाद कायम करना*परिवार प्रबोधन पर जोर।
खाकी छोड़ खादी पहनने का ऑफर
राजाबाबू सिंह के सामाजिक प्रकल्पों की न केवल समाज के मैदानी हलकों में स्वीकार्यता है बल्कि प्रदेश के शीर्ष राजनीतिक हलकों में भी हलचल है अंचल में उनकी जनभागीदारी केंद्रित गतिविधियों पर नेताओं के कान भी खड़े हो गए हैं। पिछले दिनों खादी एक्सपो के शुभारंभ समारोह में तो प्रदेश के सामान्य प्रशासन और सहकारिता मंत्री डॉ गोविंद सिंह ने उन्हें मंच से ही राजनीति में आने का ऑफर यह कहकर दे दिया कि राजाबाबू सिंह गांधी के रास्ते पर चल रहे है वे चाहें तो खाकी छोड़कर खादी पहन सकते है हम उन्हें मदद करेंगे। मंत्री के इस बयान को राजाबाबू सिंह की लोकप्रियता पर कटाक्ष के रूप में देखा जा रहा है। गोविंद सिंह प्रदेश के ताकतवर मंत्रियो में गिने जाते है वह 6 बार के विधायक है।वैसे मप्र में पुलिस अफसरों को सियासत का मैदान खूब रास आता है इसी अंचल की मुरैना सीट से डीआईजी रहे रुस्तम सिंह उमा भारती से लेकर शिवराज सिंह की कैबिनेट में लगातार मंत्री रह चुके हैं। हालांकि राजाबाबू सिंह सियासत में किसी भी तरह की अपनी संभावनाओ को खारिज करते है।
डॉ. अजय खेमरिया
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