भारत के हम लोग पिछले 68 सालों में कैसी जाहिल-काहिल इतिहास रचना में जीए हैं इसका प्रमाण कथित इतिहासकार इरफान हबीब हैं! इरफान हबीब उन सब चेहरों की असलियत है जिन्होंने असहिष्णुता का हल्ला किया हुआ है। इरफान हबीब ने अपनी जुबा से जो नफरत उगली है उसके बाद भारत के उन सब लोगों को अपने नाक, कान, आंख उन लोगों के प्रति बंद कर देने चाहिए जो बेचारे लग रहे थे। जिन पर यह दया हो रही थी कि ये बेचारे जब इतने फड़फड़ा रहे हैं, पुरस्कार लौटा रहे हैं, रोना-धोना कर रहे हैं तो इनके दर्द को समझना चाहिए। इनके दर्द को सुनना चाहिए। नहीं, इरफान हबीब के कहे के बाद बातचीत की कोई गुंजाईश नहीं बचती है। नरेंद्र मोदी, केंद्र सरकार याकि भारत राष्ट्र-राज्य के मौजूदा कर्णधारों को अब इनके स्यापे पर कतई ध्यान नहीं देना चाहिए। उलटे इनकी निर्ममता से अनदेखी, अनसुनी करनी चाहिए। इनको एक्सपोज करना चाहिए कि ये सेकुलर नहीं बल्कि हिंदू विरोधी हैं! इसलिए कि इस कथित सेकुलर बौद्विक जमात में किसी ने भी इरफान हबीब के इस बयान का प्रतिवाद नहीं किया है कि आरएसएस इराक में खलीफाई इस्लामी राज बनवाने वाला बर्बर आईएस जैसा है। हां, यह इरफान हबीब ने कहा है।
विचार करें, इस कथित इतिहासकार की बुध्दि रचना पर! सोचने वाली बात यह भी है कि रोमिला थापर, अशोक वाजपेयी छाप कथित बुद्दीजीवियों के जमावड़े के बीच इरफान साहब ने यह ज्ञान बघारा था और इन सेकुलर बुद्वीजीवियों ने ताली बजाई! किसी ने उठ कर यह प्रतिवाद नहीं किया कि यह तर्कसंगतता है या फतवा? सुधींद्र कुलकर्णी पर शिवसैनिकों ने कालिख पोती तो आस्मां टूट पड़ा और इरफान हबीब ने पूरे एक संगठन आरएसएस पर आईएस जैसा होने की कालिख पोती और उसे मान लिया गया!
इसलिए कि ये कथित बुद्दीजीवि भी आरएसएस को लेकर, नरेंद्र मोदी को लेकर, भाजपा को लेकर इसी तरह सोचते हैं। इनका बस चले तो यह चुनी हुई सरकार को कल उखाड़ फेंके। नरेंद्र मोदी को हिंद महासागर में डुबो दे। तभी अरुण जेटली ने ठीक कहा कि ये असहिष्णु हैं न कि हम। सचमुच किसी भी कोण से इरफान हबीब की मानसिक बुनावट पर विचार करें तो उसमें नफरत का ऐसा घना जहर भरा हुआ पाएंगे जो संस्था या व्यक्ति के खिलाफ नहीं बल्कि उस जमात, उस कौम, उस विचार, उस धर्म के प्रति है जो हिंदू शब्द से अर्थ लिए हुए है। इरफान हबीब ने अपने इस बयान से बताया है कि जो हिंदू की चिंता करे, उसकी धर्म आस्थाओं के प्रति संवेदक हो, हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर भारत को गढ़ना चाहे तो वह किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है।
संदेह नहीं कि कोई ऐसा सोचे तो इसका लोकतंत्र में उसे अधिकार है। इरफान हबीब, अशोक वाजपेयी और रोमिला थापर और इन सबकी तरफ से झंडा उठा कर राष्ट्रपति भवन जाने वाली सोनिया गांधी को हक है कि वे चाहे जो सोचे और चाहे जो राजनीति करें। लेकिन यदि ये यह प्रचार करते हंै कि भारत का प्रधानमंत्री उस संगठन के एजेंडे पर काम कर रहा है जो बगदादी के आईएस जैसा है तो यह बात वैश्विक पैमाने पर भारत पर कालिख है। क्या लोकतांत्रिक आजादी में यह अधिकार दादागिरी नहीं है जो भारत के प्रधानमंत्री, उसकी मातृसंस्था को आईएसआईएस जैसा करार दे? ऐसी कालिख पोते! तभी सोचना चाहिए कि कौन असहिष्णु है?
सोनिया गांधी, राहुल गांधी महामूर्खता कर रहे हैं जो इरफान हबीब जैसे जाहिल-काहिल लोगों की नेतागिरी करने लगे हैे। यों ये कथित इतिहासकार नेहरू के दरबार, इंदिरा गांधी के 1971 में नुरूल हसन के शिक्षा मंत्री बनने जैसो के दरबारीपने की बदौलत हैे। सो इनकी आवाज पर सोनिया गांधी का उठ खड़ा होना स्वभाविक है। लेकिन लोग जान रहे हैं, देख रहे हैं कि जो इरफान हबीब वर्तमान की ऐसी समझ रखता है उसने इतिहास कैसा लिखा होगा? इसने और इसकी रोमिला थापर एंड पार्टी ने एकतरफा मुस्लिम परस्त इतिहास ही लिखा होगा। इरफान हबीब ने जो कालिख पोती है और हिंदू विरोधी कथित सेकुलर जो बेसुरा राग बना रहे हैं वह फिर हिंदू खदबदाहट को पैदा करेगी। बिहार में भाजपा यदि हार भी जाए तब भी हिंदू विरोधी सेकलुर नगाड़े से ऐसा माहौल बनेगा जिसमें अपने आप फिर नरेंद्र मोदी, अमित शाह के लिए मौका बनेगा। सोनिया गांधी, राहुल गांधी को इरफान हबीब के कहे की भर्त्सना करनी चाहिए। उन्हंे इस जमात से दूरी बनानी चाहिए। अन्यथा 2019 आते-आते नरेंद्र मोदी और अमित शाह, आरएसएस सब हिंदुओं को फिर ऐसा गोलबंद बनवा देंगे कि कांग्रेस 2014 से अधिक बुरी गति पाएगी।
इरफान हबीब के कहे से मैसेज बना है कि कश्मीर घाटी में गिलानी, हैदराबाद में ओवैसी, मुंबई में शाहरुख खान, दिल्ली में अमजद खान और बिहार के मुसलमान वोट सब एक सी सोच, एक ही एजेंडा लिए हुए हैं। इस एजेंडे का नाम है नरेंद्र मोदी से नफरत। क्या बिहार और देश में जनता यह नहीं जान रही है कि बिहार में एक भी मुसलमान भाजपा को वोट नहीं दे रहा है? इनकी पूरी राजनीति नरेंद्र मोदी से नफरत पर केंद्रित है। ये कुछ भी कह दे रहे हैं? कुछ भी कर दे रहे हैं। इरफान हबीब का बयान न तो सेकुलर का बयान है और न एक राष्ट्रवादी का। यह वह तालिबानी जुबां है जिसका एकमेव मकसद हिंदू राष्ट्रवादी नरेंद्र मोदी को दुनिया में बगदादी की तरह प्रचारित करवाना है ताकि वह फेल हो और हिंदू आंकाक्षाएं भस्म हो।
(और ये भी जान लीजिये कि जिस मूडि रेटिंग एजेंसी के नाम से देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कामकाज पर अंगुली उठाई गई है उसके कर्ता धर्ता फराज़ सैयद इरफान हबीब के दामाद हैं। )
लेखक http://www.nayaindia.com/ के संपादक हैं
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