सुशांत सिंह प्रकरण पर अखबारों के पन्ने रंगे जा चुके हैं, चैनलों पर तरह-तरह की कहानियाँ 24×7 परोसी जा रही हैं। ऐसा लगने लगा था कि अब इस विषय में मीडिया के लिए बहुत कुछ कहने-सुनने लायक़ शेष नहीं बचा है| परंतु कल विभिन्न चैनलों को दिए गए रिया चक्रवर्ती के इंटरव्यू के बाद अब इस प्रकरण ने एक नया मोड़ ले लिया है| एक चैनल पर तो उनका लगभग पौने दो घंटे का साक्षात्कार चलाया गया। निःसंदेह देश में अभिव्यक्ति की आजादी है और लोकतंत्र में सभी को अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलना चाहिए|
लोकतंत्र में मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है। मीडिया की महती जिम्मेदारी होती है। जन-भावनाओं और जन सरोकारों को उठाने में उसका कोई सानी नहीं है। पर पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है की टीआरपी एवं तमाम तरह के व्यावसायिक दबाव में मीडिया समाचारों को भी सनसनीख़ेज़ एवं अतिरंजनापूर्ण तरीके के साथ प्रस्तुत करती है। परिणाम स्वरूप चीजें सुलझने की बजाय और उलझती चली जाती हैं। एक ओर यदि मीडिया ट्रायल अनुचित है तो दूसरी ओर जाने-अनजाने जाँच की दिशा को प्रभावित करने का उपक्रम भी ग़लत है| कल के इंटरव्यू में जिस ढंग से आरोपी को पीड़ित की तरह प्रस्तुत किया गया वह विस्मय से अधिक क्षोभ पैदा करता है|
आरोपी का इंटरव्यू लेने पर भला किसी को क्या आपत्ति हो सकती है? परंतु हत्या के एक आरोपी एवं मुख्य संदिग्ध से जिस प्रकार हल्के और सहानुभूति भरे सवाल पूछे गए इससे न केवल यह संकेत मिलता है कि यह इंटरव्यू पूर्व नियोजित एवं पूर्व निर्धारित था, बल्कि इसने मीडिया की भूमिका एवं निष्पक्षता को भी कठघरे में ला खड़ा किया है| ऐसा लगता है कि इसमें आरोपी को पूर्ण निर्दोष मानकर सवालों की सूची तैयार की गई| उन्हें एक नामचीन हस्ती या समाजसेवी की तरह ट्रीट किया गया| उनसे तीखे और सच उगलवाने वाले सवालों के बजाय सहानुभूति और संवेदना जगाने वाले सवाल पूछे गए| बल्कि कई बार तो इस इंटरव्यू में एंकर अपनी ओर से सहानुभूतिपूर्ण निष्कर्ष या नई स्थापना देकर आरोपी का बचाव करता नज़र आया|
इंटरव्यू का पहला वाक्य ही चिंताजनक है- ”आपने इंटरव्यू के लिए समय निकाला, शुक्रिया|” यह वाक्य संदिग्ध को महिमामंडित करता है| उन्हें एक विशिष्ट सेलिब्रिटी हैसियत प्रदान करता है।
एंकर के वक्तव्यों और सवालों की एक बानगी देखिए- ”आपको लगता है कि मीडिया ट्रायल चल रहा है? आप एक बॉलीवुड एक्टर हैं, आप एक बड़ा स्टार बनने का सपना लेकर मुंबई आई होंगीं? बड़ा स्टार आज एक मोस्ट वांटेड कहा जा रहा है? सुशांत से कब मिले, कैसे मिले? क्या आप उनसे शादी करने वाली थीं?
क्या इसमें आप एक लॉन्ग टर्म रिलेशनशिप देख रही थीं?किस तरह से आप देख रही थीं, ये रिलेशनशिप? आप 8 तारीख़ को सुशांत के घर से निकलती हैं और उसी दिन का महेश भट्ट के साथ आपका व्हाट्सएप चैट है| आपने उनसे कहा कि आई हैव फाइनली सीन द लाइट, आख़िर में मुझे रोशनी आ गई है, यानि इससे लगता है कि आपने निर्णय लिया कि आपको वह घर छोड़ना है, सुशांत ने आपसे यह नहीं कहा?” ग़ौरतलब है कि यहाँ एंकर ने बड़ी कुशलता से ‘सपने, रिलेशनशिप’ आदि शब्दावलियों का प्रयोग कर एक ओर संदिग्ध आरोपी के प्रति भावनात्मक लहर पैदा करने की कोशिश की तो दूसरी ओर रिया चक्रवर्ती और महेश भट्ट के रिश्ते को बिलकुल पाक-साफ बता संशय के घेरे से बाहर ला दिया?
क्या उन दोनों के मध्य हुए चैट और जो तस्वीरें बाहर आईं, वे ऐसे ही मासूम और आसान सवालों की अपेक्षा रखते थे? संपूर्ण साक्षात्कार के पीछे के निहितार्थों को समझने के लिए अभी कुछ और सवालों की सूची और उनसे उपजे प्रतिप्रश्नों को जानना दिलचस्प होगा:- ”यानि आप ये कहना चाहती हैं कि जिस 15 करोड़ रुपए की हेर-फेर की जो बात की जा रही है, वह उनके एकाउंट में कभी जमा ही नहीं कराई गई| मतलब प्रोड्यूसर और सुशांत के बीच केवल एग्रीमेंट हुआ, पैसों की कोई लेन-देन नहीं हुई? यूरोप ट्रिप में ऐसा क्या हुआ या कब आपको पता चला कि सुशांत डिप्रेसन में है?” यानि एंकर ने 15 करोड़ रुपए की हेरा-फेरी और सुशांत सिंह के डिप्रेसन से जुड़े मामलों पर छान-बीन और जाँच से पूर्व ही फ़ैसला सुना दिया|
सवाल- ”यानि कि आप और सुशांत की फ़ैमिली के रिश्ते शुरू से ही बिगड़ गए थे? पर उनके परिवार के साथ के वो वीडियोज़ देखकर तो लगता है कि उनके आपस में बहुत नॉर्मल रिलेशंस थे| पर आप ये कहना चाह रही हैं कि उनके रिलेशंस नॉर्मल नहीं थे? क्या रिया का ड्रग डीलर्स से कोई संबंध है? एक व्यक्ति जो तनाव का शिकार है, जो ड्रग्स लेता है, उसके साथ आप बनी रहती हैं क्योंकि आप उससे बहुत ज़्यादा प्यार करती हैं?” ग़ौरतलब है कि ”बहुत प्यार करने वाला उत्तर” एंकर अपनी ओर से देता है| आगे और देखें- ” नो टर्निंग बैक, ऐसा लगता है कि 8 तारीख़ के बाद आपने सुशांत के घर फिर कभी नहीं लौटने का निर्णय ले लिया था? क्योंकि उन्होंने आपको निकाला था?” यहाँ भी प्रश्नकर्ता ही उत्तर दे देता है| ”आपने 16 जुलाई को एक ट्वीट किया है कि अमित शाह जी, मैं चाहती हूँ कि सीबीआई इंक्वायरी हो, आप ऐसा क्यों चाहती थीं?” यह प्रश्न है या एंकर की ओर से स्पष्टीकरण, इसे पाठक समझें| ”आप दिशा सान्याल के बारे में कितना जानती हैं?
सुशांत को कोई एवॉर्ड नहीं मिलता है, बड़े बैनरों की फ़िल्म नहीं मिलती है, उन्हें कॉफी विद करण में नहीं बुलाया जाता है, क्या सुशांत ने इन सबको लेकर किसी स्ट्रेस का आपसे ज़िक्र किया था, क्या उन्हें इन बातों की कमी खलती थी? क्यों बॉलीवुड आपके साथ नहीं आ रहा, क्यों आपके प्रोड्यूसर-डाइरेक्टर्स-को स्टार्स आपके सपोर्ट में खड़े नहीं होते, क्यों जस्टिस फ़ॉर सुशांत की जगह जस्टिस फॉर रिया की माँग नहीं करते?” पाठक सोचें कि यहाँ एंकर फ़िल्म इंडस्ट्री को क्लीन-चिट देने, उन्हें कुछ कूट संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं या नैपोटिज्म और इंडस्ट्री के कामकाज के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है? ”क्या आपको लगता है कि सुशांत सिंह प्रकरण में मुंबई पुलिस ने सही इंवेस्टिगेशन नहीं की? क्या आपको लगता है कि मुंबई पुलिस किसी प्रकार के दबाव में है?” सोचिए, यह ‘चुभता’ हुआ सवाल उससे किया जा रहा है जिसने मुंबई पुलिस से ही जाँच करवाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगाई थी|
”सुसाइड जो हुआ उसे मर्डर कहा जा रहा है? आपके क्या पॉलिटिकल कनेक्शन हैं रिया? सुशांत के कोई दुश्मन थे या नहीं? ये जो कैंपेन चलाया जा रहा है सोशल मीडिया पर…बिहार के नेता बहुत उस पर जोर दे रहे हैं? आपको लगता है कि वाकई इस पर जस्टिस मिलेगा?” अब ये सवाल हैं या सीबीआई पर दबाव बनाने की रणनीति इसे भी पाठक ही तय करें?
”आप मुझे ये कहना चाह रही हैं कि जो चल रहा है उसमें आप भी आत्महत्या कर सकती हैं? आपके मन में भी ऐसे ख़्याल चलने लगे हैं? इन ए वे जस्टिस फॉर सुशांत की अब तक बात हो रही है, आज आप जस्टिस फ़ॉर रिया की बात कर रही हैं? क्या आप सुशांत स्टाइल में चलाए जा जस्टिस कैंपेन की तरह अपने लिए भी कैंपेन चलाना चाहती हैं?” इन सवालों की रोशनी में पाठक यह तय करें कि प्रश्नकर्ता की वास्तविक मंशा क्या है? आरोपी की आत्महत्या की बात सामान्य है या उसके पीछे दबाव बनाने या सहानुभूति बटोरने की निहित नीति? कैंपेन चलाने की पैरवी निष्पक्ष पत्रकारिता तो नहीं कही जा सकती?
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि जिस प्रकरण में कई-कई संस्थाएँ गहन छान-बीन में जुटी हों और जब नारकोटिक्स ब्यूरो ड्रग्स के सेवन, चोरी-छुपे ड्रग्स देने, फ़िल्म इंडस्ट्री में ड्रग्स के कथित रैकेट पर गहन जाँच आदि की दिशा में आगे बढ़ रहा हो, ठीक उसी वक्त रिया का इंटरव्यू आना सामान्य घटनाक्रम नहीं| बल्कि इस मामले की छानबीन कर रही एजेंसियों को इसे भी स्वतंत्र जाँच का विषय बनाना चाहिए| सच तो यह है कि इस साक्षात्कार ने तेज़ी से घट रही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की साख़ को और बट्टा लगाया है| मीडिया चैनल्स कोई स्वतंत्र-सर्वशक्तिमान सत्ता नहीं हैं| उन पर भी नियमों एव मर्यादाओं के पालन का उतना ही उत्तरदायित्व है, जितना कि किसी अन्य पर……| उन्हें आरोपियों-संदिग्धों को मंच प्रदान कर महिमामंडित करने या पीड़ित बताने की प्रवृत्तियों से बचना चाहिए| अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि उनकी बची-खुची विश्वसनीयता भी समाप्त हो जाएगी|
प्रणय कुमार
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