Saturday, November 23, 2024
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इस्लाम का लूट और बर्बरता का इतिहास और इसके ख़तरनाक खेल

पहली बार इस्लामिक आतंकी हमला
भारत में जब मुहम्मद बिन कासिम ने भारतीय सीमा रक्षक महाराजा ”दाहिरसेन” पर हमला किया तो वह एक लुटरे के रूप में आया था कई बार पराजित होकर धोखे से राजा को पराजित कर दिया लेकिन वह टिक नहीं सका उसने 24 हज़ार महिलाओं को बलात ले गया उन्हें अरब की बाजारों में बेचा, इतना ही नहीं हज़ारो हिन्दुओं का मतांतरण करा अपना और इस्लाम का असली परिचय दिया यह भारत पर प्रथम आतंकी हमला था यह बात ठीक है कि तुरन्त बाद जहाँ ऋषी देवल ने देवल स्मृति लिखकर सभी मतांतरित बंधुओं की घरवापसी कर ली वहीं ”ऋषी हरितमुनि” ने ”बप्पारावल” जैसे पराक्रमी राजवंश का निर्माण कर मुहतोड़ जबाब दिया जिससे तीन सौ वर्षो तक इन आतंकवादियों की हिम्मत नहीं पड़ी कि वे भारत की तरफ आँख दिखा सकें, इस वंश ने महाराणा कुम्भा, राणा सांगा, महाराणा प्रताप और महाराणा राजसिंह जैसे महापराक्रमी राजाओं को जन्म दिया जो हमेशा इस्लामी आतंकवाद से लड़ते रहे हैं, ध्यान में आया कि ये और इनका उद्देश्य केवल लूट पाट करना, राज्य विस्तार करना ही नहीं तो कुरान के उद्देश्यों की पूर्ति करने हेतु हिँसा हत्या और बलत्कार है, हिंदू समाज की संस्कृति मानवीय संवेदना भारी संस्कृति है जहाँ सांपों को भी दूध पिलाने की परंपरा है केवल जीव मात्र ही नहीं तो पत्थर-पत्थर में ईश्वर और नदियों में गंगामाँ देखने की श्रद्धा है लेकिन जो परकीय धर्म थे वे इससे उलट जिसका धर्म ही आतंकवाद है यह हिंदू समाज को बहुत देर में समझ में आया जब तक समझा बहुत कुछ बिगड़ चुका था, हमले पर हमले यह आतंकवाद की शुरुआत थी जिसे हमनें समझने में भूल की लेकिन जब हमने आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठायी तो विश्व को समझ में नहीं आया पश्चिम के लोग तब समझे जब ‘ह्वाईट हाउस’,इंग्लैंड की मैट्रो पर अटैक हुआ चलो देर आये दुरुस्त आये।

वैश्विक आतंकवाद
आज सम्पूर्ण विश्व इस्लामिक आतंकवाद से ग्रस्त है अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, रशिया, ब्रह्मदेश, तथा यूरोप के तमाम देश इस्लामिक आतंकवाद से त्रस्त है लेकिन सभी देशों ने अपने अपने उपाय किये हैं जहाँ चीन ने किसी भी मुसलमान को दाढ़ी रखने से मना किया है कोई भी मुसलमान घर में कुरान नहीं रख सकता और मदरसा, मस्जिद तो हो ही नहीं सकता, अमेरिका में इस्लाम मतावलंबियों की बड़ी ही निगरानी की जाती है यहाँ तक कि हवाई अड्डे पर कभी -कभी नंगा करके जांच की जाती है, फ्रांस में मस्जिदों से मीनारों को हटा दिया गया सरकार ने बताया कि यह मिसाइल जैसे दिखता है, जर्मनी में कोई बुरका नहीं पहिन सकता मदरसों का तो नाम ही मत लीजिए, रुश के राष्ट्रपति ने कहा जिसे सरिया चाहिए वे देश छोड़कर वहाँ जा सकते हैं जहाँ सरिया कानून हो क्योंकि रुश में तो यहाँ की संस्कृति, भाषा और कानून मनना पड़ेगा किसी मस्जिद का निर्माण नहीं कोई भी इस्लामिक मदरसा नहीं, ब्रम्हदेश के एक बौद्ध भिक्षु ने कहा “आप कितने ही उदारवादी क्यों न हो लेकिन पागल कुत्ते के साथ सो नहीं सकते” आतंकवादी रोहंगियो को वहाँ की जनता ने मार- मार कर भगा दिया आज वे रोहंगिया भारत के सिर दर्द बने हुए हैं, श्रीलंका ने भी इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की है, जापान दुनिया का अलग प्रकार का देश है जहाँ के प्रधानमंत्री किसी भी इस्लामिक देश का प्रवास नहीं करता अरबी भाषा (लिपि) का कोई पत्र प्राप्त नहीं करता किसी भी इस्लाम मतावलंबी को बीसा नहीं देता यदि किसी राजनयिक को जाना है तो वापस आने की तिथि पहले ही तय करता है, विश्व में धीरे धीरे इस्लाम के बारे में ज्यों ज्यों समझदारी बढ़ रही है त्यों त्यों सारा विश्व सचेत होता जा रहा है, कुछ लोग यह कहते नहीं अघाते कि यह सेकुलर देश है यहाँ हिंदू मुसलमानों को समान अधिकार है यह बात बिल्कुल गलत है यह देश तो केवल और केवल हिन्दुओं का है देश धर्म के आधार पर बंट गया था मुसलमानों ने पाकिस्तान ले लिया और वड़ी ही योजना वद्ध तरीके से “गजवाये हिन्द” के लिए कुछ मुसलमान यहाँ रूक गया आज वे अपना असली चेहरा दिखा रहे हैं लेकिन अब हिंदुओ को यह स्वीकार नहीं हिंदू अपने धर्म और देश के लिए खड़ा हो रहा है, विवाद की जड़ इस्लाम की मूल अवधारणा है जिसे इस्लाम के अतिरिक्त कुछ बर्दाश्त नहीं उन्हें सम्पूर्ण विश्व में गैर इस्लामिक शासन स्वीकार नहीं जबकि इनके अपने अपने मत है जो एक दूसरे से लड़ते रहते हैं आपस में भी मरने मारने को उद्दत रहते हैं।

इस्लामिक देश और 72 फिरके आतंक की जड़

मुसलमानों के 56 देश हैं गिनने में तो वड़ी संख्या दिखाई देती है इनके 72 सम्प्रदाय हैं जो आपस में लड़ते रहते हैं असली खलीफा कौन ? इसका युद्ध जारी है, सम्पूर्ण विश्व में जो आतंकवाद है वह इनके विभिन्न फ़िरकों के आतंकवादियों द्वारा है इन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों को बांट लिया है वहाबियों ने सर्वाधिक भूमिका निभाई है जिसका प्रमुख देश ‘सऊदी अरब’ है, बढ़ता चरम पंथ इस्लाम का पर्याय बनता जा रहा है इनके इस्लाम के जुडते रिश्तों से परेशान भारत में बरेलवी विचारधारा के सूफियों और नुमाइंदों ने पत्रकारों से कहा कि वे दहसत गर्दी के खिलाफ है, बरेलवी विचार ने इसके लिए वहाबी विचार को दोषी ठहराया, इसमें दिलचस्वीऔर बढ़ गयी आखिर वहाबी विचार क्या है? और इस्लाम कितने भागों में बटा हुआ सभी मुसलमान लेकिन कानून (फ़िक़ह) और इस्लामिक इतिहास अपनी अपनी समझ में आधार पर कई ग्रंथों में बैठे हुए इसमें चर्चित और बड़ा तबका दो भागों में शिया सुन्नी और यह दोनों भी कई फिर को में बैठे हुए सभी पंथ एक बात पर सहमत है अल्लाह एक है मोहम्मद उसके दूत है और कुरान आसमानी किताब है लेकिन मोहम्मद की मौत के पश्चात उत्तराधिकारी के मुद्दे पर गंभीर मत-भेद-! दोनों के नियम कानून अलग अलग सुन्नी या सुन्नत का मतलब वह तरीके अपनाना जो मोहम्मद के अख्तियार किया हो इसी हिसाब से वह सुन्नी कहलाते हैं 80% मुसलमान सुन्नी है मोहम्मद के पश्चात उसके ससुर ‘हजरत अबू बकर’ (632-634) सुन्नियों के नेता बने जिन्हें ‘खलीफा’ कहा गया सुन्नी चार भागों में बटे हुए हैं इसमें एक पांचवा भाग है जो इनसे अपने को अलग करता है आठवीं-नवी सदी में लगभग 150 वर्ष में चार धार्मिक नेता हुई उन्होंने इस्लामिक कानून के अपने -अपने हिसाब से व्याख्या की उनके समर्थक उनके फिरके अलग-अलग हो गए।

हनफ़ी मत

‘इमाम अबू हनीफा’ के मानने वाले “हनफी” कहलाते हैं अफ्रीका या इस्लामिक कानून के मानने वालो के दो गुट है देवबंदी और बरेलवी दोनों उत्तर प्रदेश के 2 जिले देवबंद और बरेली नाम पर है बीसवीं सदी में धार्मिक नेता मौलाना ‘अशरफ अली थानवी’ (1863-1943 ) और ‘अहमद रजा खान’ का संबंध बरेली से था मौलाना अब्दुल रशीद, मौलाना कासिम ननोतवी ने 1866 ‘देवबंद मदरसा’ शुरू किया भारत, पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुसलमान इसी “स्कूल ऑफ थॉट” के हैं अधिकांश इन्हीं दो पंथ्यों से हैं भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में इन्हीं लोगों के द्वारा आतंकवाद है।
देवबंदी व बरेलवी का दावा है कि कुरान-हदीस ही उनकी सरिया का मूल स्रोत है इसलिए स्त्रियों के तमाम कानून ‘अबू हनीफा’ के “फिगर” (विचार) के अनुरूप है वहीं बरेलवी ‘अलहजरत रजा खान बरेलवी’ के बताएं तरीके को सही मानते हैं बरेली में ‘आला हजरत रजा खान’ की मजार है जो इस विचार के मानने वालों का बड़ा केंद्र है दोनों में ज्यादा फर्क नहीं कुछ मतभेद है ‘बरेलवी’ पैगंबर को सब कुछ मांगते हैं जो नहीं दिखता वह भी वह हर जगह मौजूद है, सब कुछ देख रहा है, वहीं देवबंदी इस पर विश्वास नहीं करते ‘देवबंदी’ अल्लाह के बाद “नबी” को दूसरे स्थान पर मानते हैं लेकिन उन्हें मनुष्य मानते हैं बरेलवी ‘सूफी इस्लाम’ के अनुयाई है और मजारों का महत्व है जबकि देवबन्दियों के यहां मजारों की अहमियत नहीं है बल्कि इसका विरोध करते हैं इनके बीच संघर्ष का एक कारण यह भी है।


मालिमी-पंथ

‘इमाम असहनीफा’ के बाद सुन्नियों के दूसरे ईमाम इस्लाम के मालिक है जिनके मानने वाले एशिया में कम है, इनकी महत्वपूर्ण किताब “इमाम मोत्ता” के नाम से प्रसिद्ध है उनके अनुयाई उनके बताएं नियमों को ही मानते हैं यह समुदाय आमतौर पर मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं।

शाफई-समुदाय

‘साफई इमाम’ ‘मल्लिक’ के शिष्य और सुन्नियों के तीसरे इमाम प्रमुख हैं, मुसलमानों का एक बड़ा तबका इनका अनुयायी है जो ज्यादातर मध्य-पूर्व एशिया और अफ्रीकी देशों में रहता है आस्था के मामले में दूसरों से अलग नहीं है लेकिन इस्लामी तौर तरीकों के आधार पर इनकी यह ‘हनफी फीकह’ से अलग है इसलिए इमाम का अनुसरण करना जरूरी है।

हंबली मत
सऊदी अरब, कतर, कुवैत, मध्य पूर्व और कई अफ्रीकी देशों में भी मुसलमान इमाम फ़िक़ह (ईमाम कानून) पर अधिक अमल करते हैं और वह अपने को ‘हंबली’ कहते हैं सऊदी अरब की सरकार शरीयत व ‘इमाम हंबल’ के धार्मिक कानून पर आधारित है उनके अनुयायियों का कहना है कि उनका बताया रास्ता हदीशों के अधिक करीब है, इन्हें चारों इमामों को मानने वाला मुसलमानों का यह मानना है कि शरीयत का पालन करने के लिए अपने अपने इमाम का अनुसरण जरूरी है।

सल्फी, वहाबी और अहले हदीश
यह सीधे शरीयत को समझने के लिए कुरान हदीस पैगंबर के कहे शब्द का अध्ययन करना चाहिए इसी समुदाय को सल्फी वह भी कहा जाता है यह चारों संप्रदाय यह मामू के ज्ञान उनके शोध अध्ययन और उनके साहित्य का कद्र करता है लेकिन उनका अनुसरण आवश्यक नहीं है ‘मुहम्मद बिन अब्दुल बहाव’ (1703- 1792) के सिर बाँधा जाता है और ‘अब्दुल वहाब’ के नाम से यह समुदाय वहाबी कहा जाता है मध्य पूर्व के अधिकांश इस्लामिक विद्वान इनके विचारधारा से अधिक प्रभावित है यह पंथ बेहद कट्टरपंथी और धार्मिक मामले में बहुत कट्टर है ‘सऊदी अरब’ के मौजूदा शासन इसी विचार को मानते हैं “अलकायदा” के प्रमुख ‘ओसामा बिन लादेन’ इसी सल्फी विचारधारा का समर्थक था।

सुन्नी-बोहरा समुदाय
गुजरात, महाराष्ट्र, पाकिस्तान के सिंध प्रांत मुसलमानों का कारोबारी समुदाय है इन्हें बौहरा कहा जाता है, यह शिया सुन्नी दोनों में पाए जाते हैं सुन्नी बौहरा हनफी इस्लामिक कानून पर अमल करते हैं जबकि सांस्कृतिक तौर पर दाऊदी बौहरा यानी शिया समुदाय के करीब है।

अहमदिया समुदाय
इस समुदाय की स्थापना पंजाब के ‘मिर्जा गुलाम अहमद’ ने की थी इनके अनुयायियों का मानना है कि ‘मिर्जा गुलाम’- नबी के अवतार थे वह नबी का दर्जा रखते हैं, मुसलमानों के सभी समुदाय इससे सहमत हैं कि नबी “अंतिम पैगंबर” हैं, इसी बात को लेकर के गंभीर मतभेद है ‘अहमदिया’ इन्हें ‘नबी’ का दर्जा देते हैं इसलिए मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग इन्हें मुसलमान नहीं मानता यह समुदाय भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन में पाया जाता है।

शिया समुदाय
यह सुन्नी मुसलमानों से काफी अलग है पैगंबर के बाद खलीफा नहीं इमाम नियुक्त किए जाने के समर्थक हैं इनका मानना है कि पैगंबर के मृत्यु के पश्चात उनका दमाद उनके असली उत्तराधिकारी थे लेकिन धोखे से ‘हजरत अबू बकर’ को नेता (खलीफा) चुन लिया गया इस समुदाय के लोग मोहम्मद के बाद बने 3 खलीफाओं को नहीं मानते उन्हें गालिब कहते हैं यानी “हड़पने वाला” आगे चलकर सिया भी कई फिरको में बट गये।

इस्ना असरी समुदाय
सुनियो की तरह सिया में भी कई मत सबसे बड़ा समूह ‘इस्ना असरी’ 12 इमामों को मानने वाला समूह है विश्व में 75% शिया समुदाय इसी मत के हैं इनका कलमा सुन्नियों के कलमे से अलग है अल्लाह, कुरान, हदीस को मानते हैं लेकिन उन्हीं को जो उनके इमामों के माध्यम से आए हैं कुरान के बाद अली के उपदेश पर आधारित किताब ‘नहजुल बलाग़ा’ और ‘अलकाफि’ भी उनका महत्वपूर्ण ग्रंथ है यह इस्लामिक कानून के मुताबिक ‘जाफ़रिया’ में विश्वास रखते हैं यह लोग ईरान, इराक, भारत-पाकिस्तान सहित दुनिया के अधिकांश देशों में ‘इसना सिया’ समुदाय का दबदबा है।

ज़ैदिया समुदाय
शियाओं का दूसरा बड़ा मत ‘ज़ैदिया’ है जो 12 नहीं 5 इमामों से चलता है इसके चार पहले इमाम तो ‘इस्ना असरी’ शियाओं के ही है लेकिन पांचवें और अंतिम इमाम हुसैन (हजरत अली के बेटे) के पोते ‘जैद अली’ है इसी कारण यह सब ‘जेदिया’ कहलाते हैं इनके कानून ‘जैद बिन अली’ की किताब ‘मजमौल फ़िक़ह’ से लिया गया है “मध्य पूर्व के यमन” में रहने वाले सब ज़ैदिया मुसलमान हैं।

ईस्माइलरिया

यह समुदाय केवल सात इमामों को मानता है इनके अंतिम इमाम ‘मोहम्मद बिन इस्माइल’ है और इसी वजह से इन्हें इस्माइल सिया कहा जाता है इस्माइलों ने अपना सातवां इमाम ‘इस्माइल बिन जाफर’ को माना इनकी फकत और कुछ मान्यताएं भी ‘इसना अशरी’ से कुछ अलग है।

दाउदी बोहरा समुदाय
बौहरा एक मत दाऊदी बौहरा कहलाता है, अन्य शियों में फर्क यह है कि यह 21 इमामों को मानता है बोहरा भारत के पश्चिम खासकर गुजरात, महाराष्ट्र, यमन और पाकिस्तान में पाया जाता है, सभी फिरकों में थोड़ा बहुत मतभेद होने पर ये वैचारिक रूप नहीं लेते बल्कि ये एक दूसरे की हत्या ही परिणीति के रूप में होती है।

धोखेबाज और झूठ बोलने की फितरत
इस्लाम के जन्म से ही झूठ बोलने और अन्य समाज को धोखा देना यही इनकी फितरत है मुहम्मद साहब जब मक्का से मदीना गए युद्धों में पराजित होने के बाद बार बार समझौता करना और उसका उलंघन करना यानी धोखा देना यह इस्लाम के जींश में है इसलिए भारत से पाकिस्तान बार बार समझौता और धोखा बहुत से लोग यह बात समझ नहीं पाते क्योंकि वे इस्लाम को समझते नहीं, 26/11 को जब अमेरिका पर इस्लामी हमला हुआ तब अमेरिका को इस्लाम समझ में आया भारत तो 1100 वर्षों इस्लामिक आतंकवाद झेल रहा है जो मुस्लिम बुद्धिजीवी है वह इस्लाम की हर विषय को जायज ठहराने का प्रयत्न करता है सम्पूर्ण विश्व में इनके इस्लामिक आतंकवाद जो 72 मतों के झगड़े अपने को असली मुहम्मद का अनुयायी बता दूसरे की हत्या, यह बताने का प्रयत्न करना कि यह सब यहूदियों और हिंदुओं की योजना से हो रहा है, इराक ईरान का युद्ध हो अफगानिस्तान पाकिस्तान का संघर्ष अथवा सीरिया का आतंक अथवा सारे विश्व के मुसलमानों की 72 सम्प्रदाय के संघर्ष ये कोई वैचारिक मतभेद नहीं ये एक दूसरे को समाप्त करने के लिए युध्द इसकी अंतिम परिणीति होगी, कुछ मुसलमानों का विस्वास है कि मुहम्मद साहब ने कहा था कि एक ही फिरका जो मेरे विस्वास में रहेगा, आज सभी फ़िरकों के मुखिया यानी आतंकवादी संगठनों के प्रमुख अपने को ही प्रमुख खलीफा मान युध्द कर रहे हैं यह युद्ध अंतिम मुसलमान के जीवित रहने तक होने वाला है।

आतंकवाद की जड़ कट्टर पंथी वहाबी विचार
72 फिल्म आपस के मतभेद को जाहिर करने के लिए आतंकी हमलों पर्याप्त है शिया, सुन्नी, वहाबी, क़ादियानी इनका जो विवाद है संपूर्ण मानवता पर कलंग के रूप में प्रस्थापित-! सीरिया और ईरान के साथ युद्ध ‘सऊदी कतर’ का एजेंडा है और इसके परिणाम स्वरूप सऊदी और खाड़ी राज्य सीरिया के अंदर आतंकियों को बड़ी मात्रा में धन और हथियार मुहैया करा रहे हैं और शियाओं को मारना एजेंडे का हिस्सा है फ्रैंकलिन मेमे ‘दमिश्क’ से लिखते हैं ‘यह उनके एजेंट जिहादी समूह जिन्होंने सीरियाई नागरिक की आबादी को बदल दिया है संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के अनुसार चोरी, फिरौती, बलात्कार, बच्चों की बिक्री और सैकड़ों की हत्या के लिए सुन्नियों से सहारा ले रहे स्पष्ट रूप से ईरानी राजनीतिक शक्ति मात्र विनाश के कहीं व्यापक रूप से विस्तार करना, न केवल इस क्षेत्र केवल को दूर करने के लिए “सऊद अरब” दुनिया भर में एक सुन्नी रूढ़िवादी प्रधानता को बनाये रखने के लिए देवबंद मदरसे से प्रभावित संपूर्ण विश्व के आतंक के लिए धन मुहैया कराना और अपने को प्रधान श्रेणी में रखना, इस्लाम में क्या हो रहा है ? कौन मुस्लिम है ?और कौन नहीं ! इस्लाम के बैनर तले इतना अपराध क्यों हो रहे हैं ? लेबनान, सीरिया, लीबिया में छिपे हुए अपराध ऐसे में सीरिया में होने वाली घटनाएं जहां पूरे परिवार को सांप्रदायिक मुसलमानों द्वारा मार दिया जाता है क्या इनका कुरान हदीश यही है ? मुसलमानों को यह भी पूछने की जरूरत है कि पैगंबर मुहम्मद के संदेश और शिक्षाएं कैसे बदल गई जहां हमारे पास समूह घूम रहे हैं आस-पास जिहादियों द्वारा हत्या और मानवता, करुणा के बिना अन्य मुस्लिमों को मारना यही इस्लाम है क्या ? यही मोहम्मद की शिक्षा है क्या ?

मदरसों की शिक्षा का परिणाम
‘इमाम अली’ के बेटे ‘इमाम हुसैन’ को यह स्पष्ट हो रहा था कि उन्हें अपने अत्याचार के खिलाफ खड़ा होना होगा या इस्लाम भ्रष्टाचार और पतन का धर्म बन जाएगा इमाम हुसैन अपने परिवार और 72 में नंबर के समर्थकों के साथ 10000 की यजीद सेना द्वारा कर्बला में घात लगाकर मारे गए, सदियों से हर इमाम जो पैगंबर मोहम्मद की पंक्ति से था उसे मार डाला गया अत्याचार किया गया और साथ ही किसी इमामों की शिक्षाओं का पालन किया है मुआविया के समय हर शुक्रवार को नमाज के बाद इमाम अली को साफ देना अनिवार्य है यह ‘देवबंद मदरसे’ की शिक्षा है, सऊदी के वित्त पोषित स्कूलों, मस्जिदों और शिक्षण केंद्रों के माध्यम से मुस्लिम देशों में बनाए गए ”आधुनिक दीन” सऊदी अरब की प्रथाओं में परिलक्षित लक्षित होते हैं जो बहुत ही खतरनाक है जहां सऊदी के श्रद्धेय मुआविया और यजीद में पैगंबर से जुड़े लगभग हर ऐतिहासिक अवशेष नष्ट कर दिए हैं उदाहरण के लिए मुहम्मद की अपनी प्यारी पत्नी खदीजा के घर को सार्वजनिक शौचालय में बदल दिया है जबकि जावीर के स्वामित्व वाले व्यवसायों जैसे जायोनी स्वामित्व वाले शॉपिंग मॉल और चमचमाते हुए बनाया गया और वही भारत में जो आतंकी बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि के मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाया जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है जहां पर आजतक कोई नमाज नहीं पढ़ी गई है उसके लिए देवबंदी बरेलवी सारे मिलकर हिंदुओं के विरुद्ध खड़े हुए हैं क्योंकि भगवान श्रीराम हिंदुओं के आराध्य हैं यह कौन सा इस्लाम है और कैसा मनुष्य है ? जिसे बात यह बात समझ में नहीं आती ।
इस्लाम का पहला शिकार मुसलमान

पिछले साल डॉक्टर स्माइल सलामी ने अपने लेख पाकिस्तान में शिया नरसंहार के पीछे लिखा 250 से अधिक सिया मुसलमानों को व्यापक दिन में मार दिया गया और डेढ़ सौ शियाओं की आंखें को काट डाला उनके चेहरों को पत्थरों से तोड़ दिया गया ऐसी छिड़क दिया गया कई लोग मर गए वहां भी हमलावर किसी भी दया से सुने थे अपराधी स्वतंत्र थे वह अपने खून के दावे में भाग लेते हैं यही वह शिक्षा है भय और खूनी विभाजन पैदा करने का मुख्य कार्य अलकायदा को सौंपा गया था जो वह भी सलाफी समूहों और देवबन्दी शिक्षा यानी तालिबान ऐसे आतंकवादी समूहों भाड़े के सैनिकों का संयोजक था, केवल मेरी ही बात ठीक, मेरी ही किताब सत्य है और केवल एक ही पैगम्बर “यही है आतंकवाद की जड़” ये विश्व को एक प्रकार से देखना चाहते हैं, एक ही प्रकार पोशाक चाहते हैं, केवल मेरा ही मार्ग उचित, कोइ स्वतंत्रता नहीं, अपने अनुसार जीने का कोई अधिकार, इस प्रकार मानव जीवन त्राहि त्राहि कर रहा है, इसी कारण इस्लाम से सारा जगत दुःखी है, “इस्लाम का पहला शिकार मुसलमान हुआ”, अब मुसलमान इस आतंकवाद से थक चुका है वह इस्लाम से पिंड छुड़ाना चाहता है, इस्लामी विश्व खतरे में है सारा मानव समाज इस्लाम के विरुद्ध संघर्ष करेगा और इस आतंकी समुदाय को समाप्त करेगा।।

मर्माहत मानवता

पिछले 25 वर्षो में इस्लामी जगत में एक करोड़ पच्चीस लाख लोग मारे गए इनको किसी अमेरिका, इजरायल व किसी आरएसएस वाले ने नहीं मारा ये तो स्वयं असली खलीफा के चक्कर में एक दूसरे को मारा, मैं कुछ और तथ्यों को उजागर करता हूँ, *नाइजीरिया में बोकोहराम के सुन्नी जिहादियों ने 2009 में सरकार के विरोध में अपनी ही सरकार के खिलाफ हथियार उठा कम से कम पच्चीस हजार लोगों की हत्या की, *1987 व 2007 के बीच शिया सुन्नी संघर्ष में पाँच हजार लोगों के मरने का अनुमान है इन लोगों ने सैकड़ो सूफी मज़ारों को तोड़ डाला, *वर्ष 2000 में जेद्दा के दक्षिण पश्चिम शहर में अलकायदा और तालिबान द्वारा किए गए हमलों में बहुत सी महिलाओं सहित दो हजार से अधिक शिया मुसलमानों की हत्या की गई, *गिलगित बाल्टिस्तान पर पाकिस्तानी उत्तरी इलाकों में सैकड़ों शिया समुदाय के लोग मारे गए, 2003 में जेद्दा मुख्य शिया फ्राइडे मस्जिद पर हमला हुआ जिसमें साथ से अधिक उपासकों की मौत हुई, *जेद्दा में 2004 से20009 के बीच चार हजार से भी अधिक शिया सुन्नी संघर्ष में मारे गए, *जनवरी 2012 में कजाकिस्तान में शिया नरसंहार गिलगिट- बाल्टिस्तान, गिलगिट -रावलपिंडी इत्यादि स्थानों पर बसों को रोककर उन्हें धार्मिक आधार पर वहां सैन्य वेश धारी ब्यक्तियों द्वारा नरसंहार किया गया, इन्ही कारणों से सम्पूर्ण विश्व में इस्स्लाम आतंकवाद का पर्याय वन गया है कोई भी महिला किसी मस्जिद मदरसों को देखकर घबड़ा जाती है किसी मुल्ला मौलबी को देखने के बाद सबके दिमाग में आतंकी ही बैठ जाता है जैसे लगता है कि सारी मानवता का शत्रु हो गया है इस्लाम, इस प्रकार जिस मत का जन्म से अभी तक का चरित्र ही हिँसा, हत्या, बलात्कार और अमानवीय कृत्य रहा हो कदम- कदम पर अप्रारकृतिक ब्यवहार हो उसका पतन अवश्यम्भावी है।

साभार- https://www.dirghtama.in/ से

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