Sunday, November 24, 2024
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इज़राईल गाज़ा युध्दः आगे क्या होगा

जैसे हमारी दुनिया में पहले ही अस्थिरता में कोई कमी रह गई थी कि इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच नए सिरे से सुलगी आग ने इस मिश्रण में एक और ख़तरनाक परत जोड़ दी है. मौजूदा स्थिति मध्य पूर्व के मानकों से भी सामान्य नहीं है. इसे इज़रायल का 9/11 पल क़रार दिया जा रहा है- एक ऐसा पल जो आगे चलकर इस बात को परिभाषित करेगा कि इज़रायल अपनी सुरक्षा चुनौतियों से कैसे निपटता है, और क्षेत्रीय स्तर के तमाम किरदार किस तरह से अपनी रणनीतियों में बदलाव लाते हैं. बेहद मज़बूत सुरक्षा तंत्र के गर्व से इतरा रहे देश के लिए ये ख़ुफ़िया मोर्चे पर बहुत बड़ी नाकामी है. लेकिन इसके परे, ये उन लोगों के लिए एक झटके के समान है जो ये मानकर चल रहे थे कि उन्होंने सुरक्षा का वो स्तर हासिल कर लिया है जिसे उनके दुश्मनों के लिए तोड़ पाना अगर असंभव ना भी हो तो भी बेहद मुश्किल होगा.

ऐसा लग रहा है कि उथल-पुथल भरे वातावरण में रहने के आदी हो चुके लोगों का ताज़ा हमले से भीतर तक आत्मविश्वास डोल गया है.

योम किप्पुर युद्ध में हैरतअंगेज़ हमले के 50 साल बाद इज़रायल में एक और हमला हुआ है. रॉकेटों की बारिश को ढाल बनाकर फिलिस्तीनी लड़ाके समुद्र, ज़मीन और हवा के रास्ते से दक्षिणी इज़रायल में दाख़िल हुए. ऐसा लग रहा है कि उथल-पुथल भरे वातावरण में रहने के आदी हो चुके लोगों का ताज़ा हमले से भीतर तक आत्मविश्वास डोल गया है. चूंकि ऐसे आक्रमण की किसी को कोई उम्मीद नहीं थी, लिहाज़ा इसके पैमाने और दायरे के साथ-साथ इज़रायलियों के मनोविज्ञान पर इसका प्रभाव इस हमले को अभूतपूर्व बना देता है. इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि देश एक “लंबे और कठिन युद्ध” में जा रहा है, जो उनके मुताबिक “हमास के क़ातिलाना हमले के चलते हमपर थोपा गया है.”

हमले को गाज़ा से अंजाम दिया गया. 2005 में इज़रायल की वापसी के बाद से ये इलाक़ा हमास के नियंत्रण में है. हमास लड़ाकों ने इज़रायली सीमा चौकियों और सैन्य अड्डों को भेदते हुए बेगुनाह नागरिकों की हत्या की और इस क़त्लेआम का सार्वजनिक प्रदर्शन किया. दुनिया भर में प्रतिबंधित इस आतंकी समूह द्वारा खूनख़राबा करने और तबाही मचाने की ये हिमाकत सरेआम सबके सामने है. कुछ देर के लिए आतंकवादियों को खुली छूट मिल गई थी. वो सैन्य वाहनों पर क़ब्ज़ा कर रहे थे और लोगों को बंधक बनाते जा रहे थे. हमले के तीन दिन बाद इज़रायली सेना अब भी “युद्ध में है…हमास से इज़रायली ज़मीन और समुदायों का पूर्ण नियंत्रण हासिल करने की क़वायदों को पूरा कर रही है”. ख़बरों के मुताबिक इज़रायल में 900 से अधिक नागरिक मारे जा चुके हैं, जबकि दर्ज़नों इज़रायलियों को बंधक बना लिया गया है. दूसरी ओर गाज़ा पट्टी में इज़रायल के जवाबी हवाई हमले में फिलिस्तीन के कम से कम 770 लोगों की जान जा चुकी है, और तक़रीबन 4000 लोग घायल हुए हैं. ये तो अभी शुरुआत है और इस इलाक़े के साथ-साथ पूरी दुनिया अभी और ख़ूनख़राबे की ओर बढ़ रही है.

ये हमला, स्थानीय स्तर पर इज़रायल को अपनी सैन्य रणनीति की पूरी बुनियाद का नए सिरे से आकलन करने को प्रेरित करेगा. हमले के पीछे की बारीक़ योजना को देखते हुए ये तय है कि हमास को इज़रायली पक्ष की ओर से दिए जाने वाले संभावित जवाब की पूरी तरह से समझ होगी. इज़रायल का जवाबी हमला शुरू होते ही हमास ने फिलिस्तिनियों और अन्य अरबों से इस कार्रवाई में शामिल होने की अपील कर दी है ताकि “[इज़रायली] क़ब्ज़े को पूरी तरह से ख़त्म किया जा सके.” जंग में एक से ज़्यादा मोर्चे खुलने की वास्तविक आशंकाओं के बरक़रार रहने के चलते इज़रायली सेना ने सैनिकों की भारी लामबंदी के आदेश दिए हैं. इज़रायली अधिकारियों का विचार है कि हमास के क़ब्ज़े से बंधकों को छुड़ाने, और उसके बाद आतंकी समूह को पूरी तरह से मिट्टी में मिलाने के लिए ज़मीनी कार्रवाइयों की दरकार होगी. लेकिन यहीं पर एक समस्या है. दरअसल ज़मीन पर ऐसा क़दम उठाने के लिए इज़रायली सुरक्षा बलों को शहरी माहौल में जंग के बेहद मुश्किल परिदृश्य में उतरना होगा, जहां हमास के लड़ाके आसानी से नागरिक आबादी में छिप सकते हैं. ये एक ऐसी फांस है जिससे इज़रायल के रक्षा बल लंबे अर्से से बचने की कोशिश करते रहे हैं, और हमास का लक्ष्य हूबहू यही है.

अब ये स्थानीय संघर्ष नहीं रह गया है. इज़रायल-फिलिस्तीन मसला क्षेत्र में मौजूद व्यापक विभाजनों से जुड़ा है. हमास को ईरान का समर्थन हासिल है और लेबनानी चरमपंथी समूह हिज़्बुल्लाह भी लड़ाई में दाख़िल हो चुका है.

प्यापक परिदृश्य में देखने की ज़रूरत

बहरहाल, अब ये स्थानीय संघर्ष नहीं रह गया है. इज़रायल-फिलिस्तीन मसला क्षेत्र में मौजूद व्यापक विभाजनों से जुड़ा है. हमास को ईरान का समर्थन हासिल है और लेबनानी चरमपंथी समूह हिज़्बुल्लाह (ईरान द्वारा ही समर्थित) भी लड़ाई में दाख़िल हो चुका है. इज़रायल, लेबनान और सीरिया के दावे वाले माउंट डोव में हुए हमलों के पीछे हिज़्बुल्लाह ने अपना हाथ बताया है. उसने साफ़ किया है कि इस हमले को “फिलिस्तीनी प्रतिरोध के साथ एकजुटता दिखाने” के लिए अंजाम दिया गया है. इज़रायल ने जाबलरस इलाक़े में हिज़बुल्ला पर पलटवार किया है. मिस्र में इज़रायली सैलानियों की हत्या की ख़बरें आई हैं और क़तर ने ज़ोर देकर कहा है कि “वो मौजूदा तनाव के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ इज़रायल को ज़िम्मेदार समझता है क्योंकि वो फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों का उल्लंघन जारी रखे हुए है.”

वर्तमान विकट स्थिति की कुछ समझ वैश्विक स्तर पर हासिल की जा सकती है. अपने दुस्साहसी हमले के ज़रिए हमास ना सिर्फ़ इज़रायल-फिलिस्तीन मसले पर ख़ुद को एक अहम वार्ताकार के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रहा है बल्कि वो इस क्षेत्र में अमेरिका की उभरती रणनीति को भी बेपटरी करने की फिराक में है. बाइडेन प्रशासन ने रियाद को सुरक्षा गारंटियों और असैनिक परमाणु टेक्नोलॉजी के आदान-प्रदान के बदले सऊदी अरब और इज़रायल के बीच सुलह पर ज़ोर दिया, जिससे मध्य पूर्व में नई रणनीतिक रूपरेखा उभरने लगी. अंतिम रूप दे दिए जाने पर ये संधि इस इलाक़े में ईरान और हमास को हाशिए पर ला सकती है, लिहाज़ा इज़रायल पर एक बड़े आतंकी प्रहार के ज़रिए इस क़रार में पलीता लगा दिया गया. अब चूंकि इज़रायल, हमास और अन्य आतंकी समूहों के ख़िलाफ़ जंग छेड़ चुका है, सऊदी अरब को सामान्यीकरण के रास्ते पर आगे बढ़ने में भारी दिक़्क़त आएगी. जनता की नाराज़गी के चलते कम से कम अल्पकाल में उसे ऐसी मुश्किलों से दो-चार होना पड़ेगा.

भारत जैसे राष्ट्र राज्यों के लिए सबक़

आतंकवाद से निपटने की कोशिश कर रहे भारत जैसे राष्ट्र राज्यों के लिए इस घटना में कई अहम सबक़ छिपे हैं. भले ही दुनिया का ध्यान महाशक्तियों के बीच जारी टकराव पर हो, लेकिन राज्यसत्ता से इतर शैतानी किरदारों की ओर से पेश ख़तरे की तीव्रता का विस्तार हुआ है. टेक्नोलॉजी में हो रही तेज़ तरक़्क़ी कुछ मायनों में नॉन-स्टेट एक्टर्स के लिए समान अवसर मुहैया कराने लगी है. इनमें ख़ासतौर से वो किरदार शामिल हैं जिन्हें ईरान और पाकिस्तान जैसे देशों का समर्थन हासिल है. सुरक्षा तंत्रों को शत्रुओं के प्रति अपने पूर्वाग्रहों को प्रतिबिंबित करने से परहेज़ करना चाहिए और अगर उन्हें अपने दुश्मनों से आगे बने रहना है तो हमेशा अकल्पनीय के बारे में सोचना चाहिए.

अगर हर युद्ध का लक्ष्य सियासी मक़सद पूरा करना है तो शायद इज़रायल के लिए अपनी युद्धक मशीनरी को फिर से चालू करने और अपनी प्रतिरोधक शक्ति को दोबारा स्थापित करने का वक़्त आ गया है. इज़रायली डिफेंस फोर्स एक ताक़तवर सैन्य मशीन है और इज़रायली ख़ुफ़िया व्यवस्था दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तंत्रों में से है. फिर भी, ताज़ा हमला एक ऐसे राष्ट्र की असुरक्षाओं और कमज़ोरियों को दर्शाता है जिसे बिना रुके हमेशा जंगी तेवर में रहना पड़ता है. अगर हर युद्ध का लक्ष्य सियासी मक़सद पूरा करना है तो शायद इज़रायल के लिए अपनी युद्धक मशीनरी को फिर से चालू करने और अपनी प्रतिरोधक शक्ति को दोबारा स्थापित करने का वक़्त आ गया है. इसके साथ ही उसे उस सियासी मक़सद पर भी पुनर्विचार करना होगा जिसे वो अपनी ताक़त के ज़ोर से हासिल करना चाहता है.

साभार- https://www.orfonline.org/hindi/ से

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