कई लोगों को ये कंफ्यूज़न है कि #छपाक तपाक से देख लें या फिर रिजेक्ट कर दें? कोई छुट्टी का लाभ उठाना चाहता है, कोई इतना बवाल हुआ है तो आखिर में है क्या ये सोचकर देखने जाना चाहता है, कोई हमें क्या हम तो जाएंगे ये सोचकर देखना चाहता है तो कोई मूवी संदेश अच्छा देती है ये सोचकर देखने जाना चाहता है। किसी को के डर भी है कि कहीं चले जाने से हम भी वामपंथियों में शामिल हो गए तो?
वैसे बात अगर फ़िल्म देखने की है तो अभिव्यक्ति की आज़ादी के तौर पर हर किसी को हक़ है अपना स्टैंड ख़ुद लेने का की उसे ये फ़िल्म देखनी है या नहीं।
क्यों नहीं देखनी चाहिए ये भी कोई ख़ुद तय करे तो बेहतर होगा। दीपिका की फ़िल्म है यही इसके विरोध की इकलौती वज़ह है और होनी भी चाहिए। क्योंकि वो उन लोगों की भीड़ में जाकर खड़ी हुई जहाँ आज़ादी के नारे लगे। वो खड़ी थी उसी के पास खड़े रहकर इस देश के विश्व विख्यात विश्वविद्यालय के छात्रों (वैसे छात्र कहना देश के उन बाकी सारे छात्रों का अपमान होगा जो सही उम्र में मेहनत करके पढ़ाई करते हैं और समाज में इकॉनमी में, अपने परिवार में योगदान देते हैं) ने ये नारे लगाए ” लड़कर लेंगे आज़ादी ” पर किससे आज़ादी? और आज़ादी लेकर जाना कहाँ है? क्योंकि अगर दीपिका को आज़ादी लेनी है तो भारत के सिवा कहीं उसे कोई काम नहीं देगा..वो विन डीज़ल की मूवी तो आपको याद ही होगी शायद..
एक फिल्मस्टार होने के तौर पर आप देश के बहुत बड़े युवा तबके को प्रभावित करते हैं और इतनी ज़िम्मेदारी के साथ अगर आप ये तय नहीं कर पा रहे हैं कि किसके साथ खड़ा होना है और कहाँ चुप रहना है तो फिर आपको कोई हक नहीं है सोशल मेसेज देने के नाम पर उन्हीं युवाओं की जेबें काटने का।
बात एसिड अटैक पर है तो मूवी देखे बिना भी हम ये कर सकते हैं कि एसिड ना खरीदें, ना खरीदने दें, ना बेचने दें। आपकी नज़रों के सामने कोई खरीद रहा है तो कायदे से रोकने का साहस रखें। एसिड अटैक सर्वाइवर की हेल्प के लिए आप जागृति अपने घर से शुरू कीजिए। अपने बेटों कोना सिर्फ औरतों की इज़्ज़त करना सिखाएं बल्कि रूप, रंग के पीछे पागल ना होना भी सिखाएं।
यही काम आप बिना मूवी देखें भी कर सकते हैं। क्योंकि वो काम दीपिका नहीं करेगी, वो तो सिर्फ मूवी बनाकर अवार्ड लेगी और पैसे बनाएगी। एसिड सर्वाइवर के रूप रंग से भागते लोगों को वो ये कैसे समझाएगी की रूप रंग ही सब कुछ नहीं है, क्योंकि उसे तो लक्स की ऐड करके भी तो पैसे कमाने हैं। उसे बाल काले कर सुंदर दिखने का तरीका गार्नियर बेचकर भी तो बताना है। तो कहाँ से वो उन लोगों की हेल्प करेगी। वो तो सिर्फ मूवी के ज़रिए पैसे बनाएगी।
और वैसे भी इन चैनल्स की स्पर्धा में हर फ़िल्म थियेटर से बाहर हो उससे पहले तो टीवी पर प्रसारित होने की डेट्स आ जाती है, तब देख लेना।
हम केजरीवाल तो है नहीं कि दीपिका के घर के सामने जाकर धरने दें। हमारे हाथ में कस्टमर का पावर है और वो हम ज़रूर दिखा सकते हैं।
अब आते हैं जेएनयू के छात्रों पर। अगर ये बॉलीवुड सच में देश की समस्याओं से मतलब रखता है तो हर समस्या पर अपनी आवाज़ उठाये सिर्फ सेलेक्टिव एजेंडा पर नहीं। कश्मीरी पंडितों के लिए भी मार्च निकालें, नानकाना साहिब पर हुए हमले के ख़िलाफ़ भी मार्च निकालें, पुलवामा में मारे गए शहीदों के घर भी मिलने जायें और देश की सरहदों को सुरक्षित करनेवाले उस हर शहीद को श्रद्धान्जलि दें। सिर्फ अपने फायदे में हो उसे ही नहीं।
और जो छात्र 2 महीनें पहले 300 रुपये की फीस के लिए रो रहे थे वो आज इतने दिनों से धरने पर बैठे हैं, अब उनकी पढ़ाई को नुकसान नहीं हो रहा? और पढ़ाई ही करनी है तो फ़िर आज़ादी किनसे लेनी है? जिन मोबाइल्स से ये लोग वीडियो भेज रहे हैं वो भी इनकी सालाना फीस से महंगे है। ये स्टूडेंट्स कम निट्ठल्ले मुफ़्त की रोटी तोड़नेवाले ज्यादा है।
क्योंकि इन्हें कहाँ कोई टैक्स देना है। वो तो आप मेरे जैसे लोग डायरेक्ट या इनडाइरेक्ट रूपमें देते हैं जिसका एक हिस्सा आप छपाक के टिकट द्वारा भी दोगे।
तो क्या ज़रूरत है अपना पैसा इन लोगों के लिके बर्बाद करने की। मनोरंजन के लिए बॉलीवुड साल में 600 से ज्यादा मूवी बनाता है कोई और देख लेना..