पिछले दो वर्षों के दौरान कोरोना महामारी के चलते विश्व के सभी देशों में आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह से प्रभावित हुई थीं। पूरे विश्व में बड़े आकार की अर्थव्यवस्थाओं में भारत ही एक ऐसा देश है जिसने अपनी आर्थिक गतिविधियों को तुलनात्मक रूप से शीघ्रता से पटरी पर लाने में सफलता अर्जित की है। चाहे अर्थव्यवस्था में तरलता की उपलब्धि को आसान बनाना हो, चाहे कम्पनियों द्वारा पूंजी बाजार से धन उगाहना हो, चाहे सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर को बढ़ाना हो, चाहे कम्पनियों द्वारा लाभ अर्जन की क्षमता को बढ़ाना हो एवं छोटे निवेशकों द्वारा पूंजी बाजार में अपनी बचत का निवेश करना हो, भारतीय अर्थव्यवस्था के लगभग समस्त क्षेत्रों में तेज गति से अतुलनीय सुधार दृष्टिगोचर हुआ है।
भारत से उत्पादों के निर्यात में अच्छी वृद्धि दर जारी रखते हुए जनवरी 2022 माह में भी भारत से उत्पादों के निर्यात 23.4 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 3,406 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे हैं और वित्तीय वर्ष 2021-22 के 10 माह के दौरान यह 33,550 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए है और इस प्रकार अब वित्तीय वर्ष 2021-22 के वार्षिक लक्ष्य 40,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर को आसानी से प्राप्त कर लिया जाएगा। विशेष रूप से इंजिनीयरिंग सामान, पेट्रोलीयम पदार्थ, जेम्स एवं ज्वेलरी, केमिकल, टेक्स्टायल एवं फार्मा उद्योग से निर्यात में वृद्धि दर बहुत अच्छी रही है। जिन उद्योगों में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना लागू की गई है उन उद्योगों से (ऑटोमोबाइल, मोबाइल एवं इलेक्ट्रिक सामान एवं फार्मा उद्योग, आदि) निर्यात में भारी वृद्धि दर्ज हुई है अतः इस योजना का लाभ इन उद्योगों को अब मिलने लगा है। इसी प्रकार, आयरन एवं स्टील के निर्यात में पिछले 3 वर्षों के दौरान 100 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई है। इलेक्ट्रिकल मशीनों का निर्यात भी अप्रेल-दिसम्बर 2021 के दौरान, अप्रेल-दिसम्बर 2020 की तुलना में, 50 प्रतिशत अधिक रहा है।
एक चिंता का विषय भी है कि चीन से भारत के विदेशी व्यापार में पुनः व्यापार घाटा, भारत के लिए, बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत ने चीन से अपने आयात में, वित्तीय वर्ष 2018-19 की तुलना में, 500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की कमी की थी एवं वित्तीय वर्ष 2020-21 में भी 480 लाख अमेरिकी डॉलर की कमी दर्ज हुई थी। परंतु, वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम 10 माह के दौरान चीन से आयात पुनः भारी वृद्धि दर्ज करते जा रहे हैं। वित्तीय वर्ष 1997 से वित्तीय वर्ष 2021 के बीच भारत के कुल आयात में औसत 10.1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर्ज हुई है वहीं इसी अवधि के दौरान चीन से किए गए आयात में 20.4 प्रतिशत की वार्षिक औसत वृद्धि दर्ज हुई है। इसी प्रकार निर्यात के क्षेत्र में भी इसी अवधि में जहां औसत वृद्धि दर 9.6 प्रतिशत की रही है वहीं चीन को किए जाने वाले निर्यात में वार्षिक औसत वृद्धि दर 15.8 प्रतिशत की रही है।
वर्तमान में भारत चीन से कुल 6,367 उत्पादों का आयात करता है जिनका मूल्य 6800 करोड़ अमेरिकी डॉलर (कुल आयात का 15.3 प्रतिशत भाग) है। कई मदों में तो भारत कुल आयात का एक बड़ा भाग चीन से आयात करता है अर्थात इन उत्पादों के मामले में भारत की चीन पर बहुत अधिक निर्भरता है। 893 उत्पादों का तो 90 प्रतिशत से 100 प्रतिशत भाग (759 करोड़ अमेरिकी डॉलर) चीन से आयात किया जा रहा है। इसी प्रकार 364 उत्पादों का 80 प्रतिशत से 90 प्रतिशत भाग (549 करोड़ अमेरिकी डॉलर), 386 उत्पादों का 70 प्रतिशत से 80 प्रतिशत भाग (909 करोड़ अमेरिकी डॉलर), 428 उत्पादों का 60 प्रतिशत से 70 प्रतिशत भाग (656 करोड़ अमेरिकी डॉलर), 476 उत्पादों का 50 प्रतिशत से 60 प्रतिशत भाग (972 करोड़ अमेरिकी डॉलर), 461 उत्पादों का 40 प्रतिशत से 50 प्रतिशत भाग (914 करोड़ अमेरिकी डॉलर), 550 उत्पादों का 30 प्रतिशत से 40 प्रतिशत भाग (890 करोड़ अमेरिकी डॉलर) एवं 706 उत्पादों का 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत भाग (524 करोड़ अमेरिकी डॉलर) चीन से आयात किया जाता है।
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट रूप से झलकता है कि इन उत्पादों के आयात के मामले में भारत की चीन पर जरूरत से अधिक निर्भरता हो गई है। भारत को इस सम्बंध में अब विचार करना आवश्यक हो गया है कि किस प्रकार इन वस्तुओं का उत्पादन भारत में ही बढ़ाया जाय एवं चीन से इन वस्तुओं के आयात कम किए जा सकें। हालांकि हाल ही के समय में केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना इस सम्बंध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही है परंतु भारतीय नागरिकों को भी स्वदेशी अपनाकर भारत में ही उत्पादित वस्तुओं के उपभोग को बढ़ाना होगा। कुल मिलाकर इस सम्बंध में अब देश में गम्भीर प्रयास किए जाने की महती आवश्यकता है। भारतीय स्टेट बैंक द्वारा हाल ही में जारी किए गए एक प्रतिवेदन के अनुसार भारत में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना को लागू कर चीन से आयात को यदि 20 प्रतिशत से कम किया जा सके तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 800 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वृद्धि की जा सकती है और यदि चीन से आयात को 50 प्रतिशत से कम किया जा सके तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2000 करोड़ अमेरिकी डॉलर की वृद्धि की जा सकती है।
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही के समय में आर्थिक क्षेत्र में लागू किए गए सुधारों के चलते अब अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में आकर्षक प्रगति दिखाई देने लगी है। जैसे, वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम 9 माह के दौरान 12.79 लाख करोड़ रुपए के नए निवेश की घोषणाएं देश में की गई हैं, जो वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान 10.71 लाख करोड़ रुपए की ही रहीं थीं। यह हर्ष का विषय है कि निवेश की इन घोषणाओं में निजी क्षेत्र के निवेशकों का योगदान वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम 9 माह में 68 प्रतिशत है जो वित्तीय वर्ष 2020-21 में 51 प्रतिशत का था।
वित्तीय वर्ष 2016-17 के दौरान तो निजी निवेशकों का योगदान मात्र 29 प्रतिशत ही रहा है एवं वित्तीय वर्ष 2019-20 तक तो निजी क्षेत्र की तुलना में सरकारी क्षेत्र का निवेश ही अधिक रहता आया है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम 9 माह के दौरान सबसे अधिक निवेश रोडवेज (1.79 लाख करोड़ रुपए), कम्यूनिटी सेवाएं (1.16 लाख करोड़ रुपए) रियल एस्टेट (1.19 लाख करोड़ रुपए) आयरन एवं स्टील निर्माण उद्योग (1.08 लाख करोड़ रुपए) जैसे क्षेत्रों में रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकारों के साथ साथ अब निजी क्षेत्र के निवेशक भी अपना पूंजीगत निवेश बढ़ा रहे हैं, इससे देश की आर्थिक गतिविधियों को और अधिक बल मिलेगा एवं रोजगार के लाखों नए अवसर उत्पन्न होंगे।
कोरोना महामारी के दौरान भी देश की लगभग 1000 बड़ी कम्पनियों में प्रवर्तक निवेशकों द्वारा अपना निवेश मार्च 2020 के 53 प्रतिशत से बढ़ाकर दिसम्बर 2021 में 56.7 प्रतिशत कर दिया गया है। यह एक अच्छा संकेत है कि प्रवर्तक निवेशक कम्पनियों में अपना निवेश बढ़ा रहे हैं अतः इन कम्पनियों का आने वाला भविष्य उज्जवल दिखाई दे रहा है। विशेष रूप से वित्त, टेक्स्टायल, केमिकल, फार्मा, सूचना एवं प्रौद्योगिकी, स्टील, ऑटो पार्ट्स एवं पूंजीगत सम्पत्तियों का निर्माण करने वाली इकाईयों में प्रवर्तक निवेशकों द्वारा अपना निवेश बढ़ाया गया है।
कोरोना महामारी काल के रहते हुए भी भारतीय कम्पनियों ने पूंजी बाजार से वित्तीय वर्ष 2020-21 में 1.89 लाख करोड़ रुपए की राशि एकत्रित की है, जो कि अपने आप में एक रिकार्ड है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में केवल 91,670 करोड़ रुपए की पूंजी ही एकत्रित की जा सकी थी। वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम 9 माह के दौरान भी 1.50 लाख करोड़ रुपए की पूंजी, पूंजी बाजार से उगाही जा चुकी है।
एशियन विकास बैंक द्वारा जारी एक प्रतिवेदन के अनुसार वैश्विक वैल्यू चैन में भारत की हिस्सेदारी भी अब बढ़ती जा रही है। इस प्रतिवेदन के अनुसार हाल ही के समय में वैश्विक वैल्यू चैन में भारतीय कम्पनियों की हिस्सेदारी बढ़ी है। विशेष रूप से उत्पादन आधारित वैश्विक वैल्यू चैन में यह स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर है। भारत में अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में किए जा रहे निवेश के चलते ही यह सम्भव हो पाया है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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