मुंबई। धार्मिक मामलों को राजनीतिक मुद्दा बनाने से जीवदया प्रेमियों, धर्मप्रेमियों, वैष्णव समाज और जैन समाज में रोष बढ़ता जा रहा है। पिछले लंबे समय से हर धार्मिक मुद्दे में राजनीतिक अडंगा लगाना लोगों को रास नहीं आ रहा है। खासकर दक्षिण मुंबई में कांग्रेस के स्थानीय नेताओं का इन मामले में चुप रहना लोगों को बहुत परेशान कर रहा है। लोगों का मानना है कि जो लोग समाज के सहयोग से जीतकर आए हैं और समाज की ताकत की वजह से ही जिनका राजनीतिक वजूद बना है, उनका इस तरह से चुप रहना समाज के लिए बहुत खतरनाक है। इस पूरे प्रकरण में खेतवाड़ी के कांग्रेसी नगरसेवक शांतिलाल दोशी समाज के निशाने पर हैं।
महानगरपालिका ने 9 अक्टूबर को एक प्रस्ताव पास करके सन 1964 से चली आ रही पर्युषण को दौरान मांसाहार की बिक्री रोकने की परंपरा को एक झटके में हमेशा के लिए समाप्त कर दिया है। शिवसेना, मनसे और समाजवादी पार्टी व अन्य से धर्मप्रेमी समाज को कोई उम्मीद नहीं थी। लेकिन कांग्रेस के अपने नगरसेवक शांतिलाल दोशी से जीवदया प्रेमियों व जैन समाज को सहयोग की कोई उम्मीद थी। अकेली भाजपा ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। 50 साल से भी ज्यादा समय से चली आ रही पर्युषण में मांसाहार प्रतिबंध की परंपरा समाप्त करने के लिए जब वोटिंग की बात आई, तो भाजपा के सभी नगरसेवकों ने वोटिंग से इंकार कर दिया था। पर, कांग्रेस पूरी तरह से इस प्रस्ताव के समर्थन में खड़ी रही।
उल्लेखनीय है कि जैन धर्म के सबसे बड़े त्यौहार पर्यूषण महापर्व के दौरान भी कांग्रेस की तरफ से कत्लखाने खुले रखने का खुलकर समर्थन किया गया था। मामला शिवसेना ने शुरू किया था, बाद में कांग्रेस भी उससे जुड़ गई। पिछले पांच दशक से हर साल पर्युषण के दौरान कत्लखाने सरकारी तौर पर बंद रहते थे। लेकिन इस बार विवाद हुआ, तो कांग्रेस खुलकर जैन समाज के विरोध में उतरी और मांसाहार का समर्थन किया। समाज को उम्मीद थी कि कांग्रेस के जैन पदाधिकारी व जन प्रतिनिधि समाज के हक में खड़े होंगे। लेकिन खेतवाड़ी के कांग्रेसी नगरसेवक शांतिलाल दोशी भी पर्युषण के दौरान जीव हत्या के समर्थन में खड़े रहे। उन्होंने एक बार भी नहीं कहा कि इस मामले में उनकी पार्टी के विचार से वे सहमत नहीं है। पर्युषण जैसे पवित्र पर्व में भी जैन नगरसेवक शांतिलाल दोशी का जीव हत्या के समर्थन में खड़ा होना जैन समाज को बहुत परेशान कर रहा है। लोगों का दुख यह है कि पिछले महानगरपालिका चुनाव से पहले शांतिलाल दोशी की कोई राजनीतिक हैसियत नहीं थी। लेकिन जैन समाज के समर्थन सहयोग व संबल से ही वे नगरसेवक बने। लेकिन राजनीति की वजह से उनका धर्म के विरोध में खड़ा रहना धर्मप्रेमियों, जीवदया समर्थकों व समाज की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण हैं।