Monday, November 25, 2024
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जलियाँवाला, हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

भारत के इतिहास का ओ एक ऐसा शर्मनाक दिन जिसे इतिहास के पन्नो में काले अक्षरों से लिखा गया। इसी दिन बैसाखी को अमृतसर का जलियांवाला बाग कांड हुआ। हम सभी इसके 100 वें वर्ष के साक्षी बन रहे हैं। 13 अप्रैल का वो मनहूस दिन फिर से याद कर इस नरसंहार को जिसे हमारी आजादी का सुलगता परचम मानते है,जिसने सभी की नींदें उड़ा दी ,आज भी उस जगह पर जब कोई जाता है …आँखो में आँसू लेकर आता है ….चन्द बातें जो मेरा मन कहना चाह रहा है, आप सभी से साझा करने की की कोशिश कर रहा हूँ ।

गदर पार्टी के गठन के पश्चात लगातार विदेशी जमीन पर हमारी आजादी के लिए लडने वाले सिक्खों का ऐसा जूनून. इससे अछूता न रहा ।फिर प्रथम विश्व युद्ध ने इसमे अंगारे बरसाए ,जबर्दस्ती सिक्खों को सेना में भर्ती कर इसकी नींव रखी जहाँ हमारे लगभग 44000 सैनिकों की मौत ने देश को हिला दिया । गदर पार्टी के 42 लोगों को फाँसी की सजा, देश भर मे अग्रेंजी हुकूमत के रोलेट एक्ट के कारण ,असहयोग आंदोलन का दौर चल पड़ा। इसी तरह पंजाब भी इसमें पीछे न रहा, जिसके चलते डा.सैफुदीन किचलू और डा.सत्यपाल की गिरफ्तारी और फिर उनकी सजा की माफी के प्रयास। लगातार विद्रोह से होने वाले भयावह परिणामों से डरी ब्रितानी सरकार का ये कायरना नरसंहार। बैसाखी के दिन 13 अप्रैल को जनरल डायर ने जलियावाला बाग के नरसंहार को अंजाम दिया।

बाग जलियांवाला ,,बता,हम तुझे कैसे भुल पाएंगे,
खुशहाली भरा बैसाखी का दिन था,मातम मे बदल गया
कुछ इस तरह सूरज ढलते-ढलते हाल हमारा बदल गया
घर से पैदल चले थे, जिस्म चार कांधो में निकल गया
मैं कैसे भूल पाऊगा ,हर रात की,मेरी नींद उडा ले गया
ना ही कोई नाता किसी से मेरा, मुझको सजा दे गया
ना कोई पहचान उससे मेरी,फिर भी मुझको दगा दे गया
माटी तेरा मोल दे न सका मैं कैसे वो मेरा अजीज गया।
बाग जलियांवाला बता, हम तुझे कैसे भुल पाएंगे

बस बात इतनी थी, माँग रहे थे माफी सजा काले पानी की
उन दो जांबाजों की, डा.सत्यपाल था दूजा डा. किचलू था
संभलाने की कोशिश के ,देखो हर प्रयास हमारे बेकार गये
बदल गया इतिहास इस मर्म का ,जमीं हो गई लाल खूं से
कितने लाशों का संमंदर था,कितनी बेफिक्री का मंजर था
जालिमों के अत्याचार ने माँ बहनो बच्चों तक को न छोड़ा
निहत्थों पर वार कर ,बरर्बता की ऐसी वो मिसाल दे डाली
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

सकरी गली अमृतसर की, शहीदी कुआँ ऐसा बना सबूत है
हर बार याद करता ..हर बैसाखी को , ये दुआ माँगता …हूँ
देखा होगा वो मंजर,जिस्म हरकत करना छोड़ चुका होगा
हर किसी की सांसे रूक गई होगी ,पलके थम ,गई होगी
हमने जिनको खोया,न फिर आ पाएगें, देश तुझसे जुदा हो
हम न जी पाएगे ..कुछ इस तरह मौत का घर बनाया था
सुनाई देती ,मुझको शहीदो की आत्माओं की आवाज आज भी
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएंगे

ऐसे लगता है मुझको मैं गुम हो गया हूं आज की इस भीड़ में,
मेरी वो पहचान कहां है,आज की इस भीड में,सरहदो ने बाँट दी है
मेरी हर वो जमीं ,मैं आज फिर खो गया हूँ आज की इस भीड़ में
जीना है जरूरी तो सब कुछ भूलना होगा, पर बार-बार आती याद है
अपने देश में ,लूटी ऐसी भी वाहवाही, कायर जनरल डायर ने फिर
तमगे भी मिले उन्हें, अग्रेजों ने इस बाग को लाशों से पाट दिया
मानवता के नाम पर कंलक, देश हमारा ही नहीं विश्व भी रोया था
बाग जलियांवाला,बता,हम तुझे कैसे भुल पाएंगे

सवालों के आज वो जवाब देता नहीं ,वो एक ऐसा कुआँ है
जिसने बचाई है लाज,असमत हमारी, माँ, बहन, बेटियों की
जिस्म तो छलनी था ,दिल भी बेजार था,ऐसा ही संसार था
हर बाजू ,हर एक का सहारा बना, जिसने जितनों को थामा

संभाल पाया, संभालते रहे, मौत से लड़ते रहे ,फिर मरते रहे
हर तरफ लाशें धरती पर बिखरती रही, गोलियाँ चलती रही
निहत्थे पर 1650 राउंड गोलियाँ चला भून डाला इस कायर ने
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

बना साक्षी कुआँ भी आजादी का अमृतसर तेरे घर में
देश आज क्यों इसे भूल जाता है, नरसंहार देखा,सहा
मां बन सब मां बहनो,भाई को, अपने में स्वीकारा है
हवन कुण्ड की तरह न सही ,कूद –कूद कर देते सभी
कुए में आहुति अपनी देकर अपने प्राण फिर सभी
गोलियाँ दीवारों पर रसीदी टिकट की तरह आज भी

घर के द्वार से हम उस समय जो, इस तरह निकले
सँकरी थी वो गली मौत का ताडंव लिखा था जहाँ
पहुंचे, द्वार तक हम सभी न निकल पाए फिर कभी
वतन वालो हमारे ही खून की होली हमसे खेलकर
किस तरह वो हमको ही बहलाते फिर फुसलाते रहे
हमारे ही सीने में मूँग दल हमेशा फिरंगी गाते रहे
हमारी फरियाद का कुछ ऐसा ही सिला मिला हमें
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएंगे

हमे कोई सौदा मंजूर नहीं है, न कोई दया चाहिए है
हमें चाहिए तो सिर्फ,उस जनरल डायर का सर चाहिए
बगावत की इस राह पर निकल पड़े,फिर नौजवां कई,
इस तरह तो नहीं निकलेगा कोई हल ,देश तो जूझ रहा है
गहरी हो गई गुलामी के उस दौर में, आजादी का मतलब,
देश पर हो रही कुर्बानियों को रोल्ट एक्ट का बना निशाना
जेल भरे जा रहे थे,सीधे, सादे लोग फाँसी पर चढे जा रहे थे
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएंगे

काश कुछ और गोलियाँ हमारे जिस्म में उतर जाती
जो कुछ थी उसके पास सब गोलियां खत्म हो जाती
डायर तेरी कायरता का जश्न भी मना था हमने सुना
ऐसे इन्सानी हैवानों का देश बना इंगलैण्ड हमने सुना
हर रूह भी कांप रही है जिस्म से निकलते-निकलते
कैसे अंगारों सा फिर ये नाम, सुलग रही है देह, सुना
गहरे दफन कर दो ऐसे हर उस पैगाम को साथियों
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

देश में गद्दारों का आना हम पर ही बारिश गोलियों की कर जाना,
अमृतसर इतिहास लिख डाला,डायर की मौत का फरमान लिख डाला,
बच्चा बच्चा तेरे खून का हो गया है प्यासा, कल जरूर तेरी बारी
मैं उन अनगिनत नामों को,नहीं जानता, पर ये जानता हूँ
भारत माँ के सच्चे सपूतो ,इस देश को अपनी आजादी के लिए
इस तरह की शहादत भी देनी पड़ी क्रूर शासकों का बन खिलौना
इस कदर टूटे, फिर जुड़ न सके इसे किसे कोई कैसे बताए ..
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

हर वो खिताब जो देश के नाम था ,गुरदेव रवीन्द्रनाथ टैगौर,
की तरह हमारा एक संग्राम था नहीं सह पाए इस वीभत्स
कृत्य को ,लौटा दी ,उपाधि जो मिली थी उन्हें देश मुझको ये याद है

देश पर हर कोई मरने को तैयार था,इस हादसे के बाद हर किसी
के हलक से निवाला न उतरा ,माँ ने बच्चो से मिन्नतें की
देश के सौदागरो संभलने के दिन आज फिर लौट के आ गए है,
कुछ तो हक अदा करो ,माटी माँगती लहू इसे कुछ तो अदा करो
बाग जलियांवाला,बता,हम तुझे कैसे भुल पाएंगे

सब कुछ लुट गया ,तेरा लाल नहीं रहा, तेरा सिन्दूर नही रहा
रिश्तों का संसार कहाँ तेरा भाई नहीं रहा ,पिता,चाचा,मामा,ताउ
बस रह गया भाई-चारा उन अनगिनत रिश्तों से, सनी थी जंमीं,
खून ही खून था, लाशें पहचानी गए पर लेने वाला कोई नहीं रहा
सभी की आँखें आसुँओं से भरी थी ,निकलते नहीं पर आँसू आँखों से
शहर सारा विरान हो गए हर तरफ लाशों के ढेर दिख रहे देखो
माँ की गोद में दुध पीता बच्चा माँ के स्तन पर पडा रो रहा है,देखो
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

आजादी के परवाने अपनी आहुति देने निकल पड़े
सारे शहर की माँ बेटियाँ,ये समझ कर निकल पड़ी
शायद कुछ चन्द लम्हों का फासला ही बचा है अब
हम सभी के जिन्दगी और मौत के दरमयान अभी
निरअपराधी न सजा पाते कोशिश कर बतलाते तब
नाकाम, गूंगी बहरी सरकार कहाँ सुनने को तैयार
शासक अपनी ही मद में दे डाले फिर आदेश ऐसा
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएंगे

सुनहरे पलों को तो,हर याद करने वाला बार-बार याद करता है,
भगत सिंह, तेरी शहादत तो सबनू याद है, तेरी वो कसम कहाँ
बता कितनो नू जो जलिंयावाला बाग दे विच खायी थी भगत
उठा माट्टी लगा तिलक जलियावाले बाग दी चल कर आया था
उम्र थी -12 बरस, यात्रा भी कर,12 मील,बांका वीर बालक भगत
माँ भारती, उन–लाशों की कसम खा पाया, कर हत्या निभाया भी
उधम सिंह,तुझको समर्पित है.देश वासियों का कोटि-कोटि नमन
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

लाइलाज हो गया है मर्ज संभलता अब क्यों नहीं अपने ही अन्दर जख्म
फिर उबलता क्यों नहीं ..सलीबो मे हीं सही टांगकर वो बदलता क्यों नहीं,
संभल जाओ अब भी, न बच पाओगे तुम, और न बच पाऊंगा मै भी ,
साथ दिया ये जरूरी नहीं ,शहीदों को देश के,आज नमन करना सीख लो ॥

सवालों के घेरे में आ जाओगे ,जिस्म का लहू अब भी बोलेगा नहीं ,
आग के दरिया सा वो तूंफा होगा हर घर मे फिर एक शमंशा होगा ॥
इसे बना ऐसे आजादी का उदधोष,आजाद, भगत,राजगुरू ,सूखदेव बन।
बाग जलियांवाला, बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

आईने की तरह साफ था,हर अंजान चेहरा,हर किसी का ,
क्या बच्चे, क्या बूढ़े ,सभी को भून डाला उन गोलियों ने
वीरान कर गये शहर ,मानवता के नाम पर कलंक बना
आँखों में आंसू थमते नहीं, हर किसी के लिए शूल बना
बात कहने का हक छिनती रही हमसे ऐसा मंजर बना
अंग्रेज कर रहे सौदा हमारी जान का हर पल डर बना ,
हम भी कुछ इस तरह पत्थर पर ऐडियाँ रगड़ रहे थे ..।
बाग जलियांवाला, बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

इस तरह संकल्पों, सौगन्धों का ही विषपान करना था
इस तरह हम सभी को अगर कुछ ऐसे ही मरना था,
सभी को फिर धारदार तलवारों के आगे सिर धरना था
मर मिटने की प्रतिबद्धता हमारी कभी भी कम न थी
फिर क्यों इस तरह अनचाहे परिणामों का सामना हुआ
ये सोचकर हम निकल पड़े, आज अंगारों पर चलना होगा
देश तेरी खातिर हर बार संभलना होगा कैसे बच पाऐंगें
बाग जलियांवाला,बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

सरहदे देखो अब नहीं बधंती ,गलत विचारों का शूल
चुभता रहा हर बार, देश को मिली इस घटना से
विश्व भी दहल गया एक बार,गुलामी का मोल मिला
देश वालो सौभाग्य के सहारे जीते मरते नहीं है हम ,
ऐसी मौत न मिले हमें, अपनी मौत भी मरना आता है
नदियों की तरह बहते रहे सागर की तरह सहते रहे
मातृभूमि ये लहू तेरा है तुझको ही अर्पित करना आता है ।
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएंगे

घर पर रहकर, हर घर के चराग नसीहत दे रहे हैं
दहलीज लाँध कर मौत को दे रहे हो दावत क्यों
खुश रहकर इस तरह भी फिर सब कुछ सह रहे है
नसीब मे है,पैगाम हमारी ही मौत का हम रख लेगें
पर ये तो बताती जा हमें तू ऐ मेरी मातृभूमि
इन गद्दारो को किस तरह हम फिर से परख लेंगें
नहीं भूल पाऐगें हम फिर मौत का ये मंजर कभी
बाग जलियांवाला, बता,हम तुझे कैसे भुल पाएंगे।

इस तरह सारे इल्जाम अपने ही तराजू से तौलता रहा
न कभी रहबर की सुनी पर अल्ला-अल्ला बोलता रहा
जब वो मिला हँसते हुए, पर गरम पानी सा खौलता रहा
इसके अन्जाम, सारे सबूतो के साथ मिल गए थे
इस तरह हर किसी के इस बात पर होंठ सिल गए थे
आँखें हरबार कुछ बोल रही थी दिलो-दिमाग हिल गए थे
कैसे सब कुछ देखकर इन हालातो को हम सह रहे थे
बाग जलियांवाला, बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

हर किसी की आरजू का फिर एक अंदाज रहता होगा
जब कोई इस तरह भी रहकर सबके साथ बहता होगा
मौत तो बता कर आती नहीं कैसे ऐसी मौत सहता होगा,
देखना जब इस तरह की कुर्बानी का मातम होता होगा,
हर बार आँखों मे आंसू होंगे ,दिलों मे भरा ग़म होगा
हर दिन का सूरज निकलने से पहले बहकता भी होगा
हमे नाज़ देश उन पर जिसने तुझको खून से सींचा भी होगा।
बाग जलियांवाला,.. बता,हम तुझे कैसे भुल पाएँगे

एक निवेदन

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