Sunday, November 17, 2024
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संस्कृत से बदली गाँव की संस्कृति, पूरा गाँव संस्कृत में बात करता है

भोपाल। मध्यप्रदेश के राजगढ़ का नाम सामने आते ही कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह का चेहरा सामने आता है और इसके साथ ही उनके बेसिर-पैर के बयान याद आने लगते हैं लेकिन दिग्विजय सिंह के राजगढ़ से कुछ ही दूर झीरी गांव में एक अनोखी बात है। यह झीरी गांव ‘संस्कृत ग्राम’ के नाम से जाना जाता है। इस गांव में लगभग एक हजार लोगों की आबादी है। गांव की सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां रहने लोगों में से करीबन छ: सौ लोग संस्कृत बोलते हैं और दैनिक जीवन में इसी भाषा का उपयोग करते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, आपको गांव के लगभग पचास प्रतिशत घरों के प्रवेश द्वारों पर ‘संस्कृत गृहम’ लिखा दिखाई देगा।

झीरी के ही रहने वाले उदयनारायण चौहान ने बताया कि जिन घरों के सभी सदस्य संस्कृत में ही बात करते हैं सिर्फ उनके ही घरों को यह पदवी दी गई है। कहने को तो कर्नाटक के शिमोगा जिले में स्थित मुत्तूर ग्राम का नाम झिरी से पहले आता है क्योंकि मुत्तूर की अस्सी फीसदी आबादी ब्राह्मणों की है जिन्हें संस्कृत विरासत में मिली है।
बाकी बीस प्रतिशत लोग दूसरी जाति के हैं जो संस्कृत नहीं बोलते। लेकिन अगर बारीकी से देखा जाए तो झिरी का नाम पहले आना चाहिए क्योंकि झिरी में सिर्फ एक ब्राह्मण परिवार रहता है। यहां रहने वाले ज्यादातर लोग क्षत्रिय और अनुसूचित जनजाति के हैं। इसके बावजूद यहां के साठ फीसदी लोग संस्कृत में बात करते हैं।

क्या है इतिहास
imageझीरी की कहानी शुरू हुई एक दशक पहले, जब यहां के लोगों ने ‘संस्कृत ग्राम’ का सपना देखा। उस वक्त यहां एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं था जिसे संस्कृत भाषा का ज्ञान रहा हो। अपने ‘संस्कृत ग्राम’ का सपना पूरा करने के लिए गांव के बड़े बुज़र्गों ने एक बैठक बुलाई। इस बैठक के लिए ‘संस्कृत भारती’ नाम की संस्था से संपर्क किया गया। ‘संस्कृत भारती’ संस्था संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित संस्था है। संस्कृत भारती ने गांव वालों के इस सपने को सच करने के लिए गांव में एक संस्कृत पाठशाला शुरू कर दी।

एक युवती ने बदल दी गांव की तस्वीर
इस बीच इस संस्था के इंदौर स्थित कार्यालय के एक स्वयंसेवी की मुलाकात विमला पन्ना नाम की एक ऐसी युवती से हुई जिसे संस्कृत पढ़ाने के लिए कहीं भी जाना स्वीकार्य था। विमला ने संस्कृत भाषा के माध्यम से गांव का संस्कार ही बदल दिया। जहां पहले उस गांव में लड़कियों के बाहर निकलने पर पाबंदी थी, वहीं आज वही लड़कियां पूरी आजादी के साथ उस गांव में जी रहीं हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, संस्कृत भाषा सीखने में महिलाओं की रुचि भी बढ़ी है और इस गांव की प्रगति भी हुई है। इस गांव की नई पीढ़ी ज्यादातार संस्कृत में बात करती है।

साभार-http://mp.patrika.com/ से

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