दिल्ली की केजरीवाल सरकार के एक विज्ञापन और एक खबर ने मेरा दिल खुश कर दिया। विज्ञापन यह है कि दिल्ली के किसी भी निवासी को यदि एमआरआई, सीटी स्केन और एक्स रे जैसे दर्जनों टेस्ट करवाने हों तो वह सरकारी अस्पतालों और पोलीक्लिनिकों में जाए। यदि एक माह में उसका टेस्ट हो जाए तो ठीक वरना वह अपना टेस्ट निजी अस्पतालों में भी करवा सकता है। वह मुफ्त होगा, जैसा कि सरकारी अस्पतालों में होता है।
आप जानते ही हैं कि देश के सरकारी अस्पतालों की हालत क्या है? वहां अफसरों और नेताओं के इलाज पर तो जरुरत से ज्यादा ध्यान दिया जाता है लेकिन आम आदमियों को भेड़-बकरी समझकर गलियारों में पटक दिया जाता है। यही हाल टेस्टों का है। पहली बात तो यह कि टेस्टों की लाइन इतनी लंबी होती है कि महिनों इंतजार करना पड़ता है और कभी-कभी इंतजार की इस अवधि के दौरान मरीज दूसरे संसार में चला जाता है।
दूसरी बात यह कि टेस्ट हमेशा ठीक ही हों, यह भी जरूरी नहीं। जो मरीज इन अस्पतालों में जाते हैं, वे कौन होते हैं? वे, जिनकी जेब खाली होती है, ग्रामीण, गरीब, पिछड़े, दलित और अल्पशिक्षित लोग! सारी चिकित्सा अंग्रेजी भाषा में होती है, जादू-टोने की तरह। दिल्ली सरकार को सबसे पहले तो इन सरकारी अस्पतालों को सुधारना चाहिए और उसने अब ये जो असाधारण सुविधा की घोषणा की है, उसे ठीक से लागू करना अपने आप में बड़ी जिम्मेदारी है। इसमें भ्रष्टाचार की काफी गुंजाइश है।
अरविंद और मनीष, दोनों ही मेरे प्रिय साथी हैं। मैं दोनों से कहता हूं कि वे दिल्ली प्रशासन के सभी कर्मचारियों और विधायकों के लिए यह अनिवार्य क्यों नहीं कर देते कि उनका और उनके परिजनों का इलाज सरकारी अस्पतालों में ही हो। इन अस्पतालों का स्तर रातों-रात सुधर जाएगा। यदि केजरीवाल सरकार की उक्त योजना सफल हो गई तो ‘आप’ पार्टी का दिल्ली से बाहर फैलना बहुत आसान हो जाएगा लेकिन ध्यान रहे इलाज की यह सुविधा मोदी की नोटबंदी और स्किल इंडिया की तरह फेल न हो जाए। वह सिर्फ विज्ञापन और भाषण का विषय बनकर न रह जाए।
दिल्ली सरकार को हर माह आंकड़े जारी करके बताना चाहिए कि उसकी इस नई योजना से कितने लोगों को लाभ मिल रहा है। इस बीच मप्र सरकार ने गरीबों के लिए पांच रु. में और दिल्ली सरकार ने सरकारी स्कूल के बच्चों को नौ रुपए में भोजन देने की जो घोषणा की है, वह भी सराहनीय कदम है। मुझे विश्वास है कि केंद्र की सरकार इन दोनों सरकारों से कुछ प्रेरणा लेगी।
साभार- नया इंडिया से
बहुत अच्छा लेख लिखा है। जी वाकई आपने जमीनी हकीकत को उजागर किया म प्र में तो वही सरकारी डॉक्टर उसके घर पर एक प्रायवेट क्लीनिक अलग से चलता है। उससे समय मिलने पर सरकारी हॉस्पिटल जाता है।
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