कारगिल के वो योध्दा जिन्होंने जान की बाजी लगाकर देश को बचाया

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कारगिल युद्ध 20 मई 1999 को शुरू हुआ तो मेरठ के रणबांकुरे भी इसमें आहुति देते गए। देश के रणबांकुरों ने पाकिस्तानी घुसपैठियों पर फतह शुरू की तो मेरठ शहर और आसपास के गांवों के लोग भी दिल से इस युद्ध में शामिल हो गए। जब-जब मेरठ कैंट से फौजियों की टोलियां कारगिल के लिए निकलीं तब तब भारी भीड़ ने पुष्प वर्षा की। नौनिहालों से लेकर बुजुर्गों तक कैंट से निकलने वाली सड़कों पर तिरंगा लेकर खड़े हो गए।

त्याग और वीरता की मिसाल भारतीय फौज हर युद्ध में कायम करती आई है। कारगिल युद्ध में सेना का मनोबल ऊंचा रखने में मेरठ के लोगों का भी कम योगदान न रहा। पूर्व सैनिक संगठन के जिलाध्यक्ष मेजर राजपाल सिंह कहते हैं कि इसी मनोबल के बूते कारगिल युद्ध में दुर्गम परिस्थितयों में सेना के जवानों ने वीरता का अद्भुत प्रदर्शन किया। कारगिल की दुर्गम पहाड़ियों पर भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस का प्रदर्शन करते हुए दुश्मन को धराशाई कर दिया।

युद्ध के दौरान मेरठ में ऐसा माहौल बना था कि हर शख्स की नजर टीवी और अखबारों पर लगी रहती थी। जैसे-जैसे सेना की टोलियां कारगिल की तरफ निकलतीं सेना पर लोग फूल बरसाने निकल पड़ते। कारगिल युद्ध में मेरठ के कई रणबांकुरे उस तिरंगे को लिपट कर लौटे जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने खाई थी। जिस राष्ट्र ध्वज के आगे कभी उनका माथा सम्मान से झुकता था, वही तिरंगा मातृभूमि के इन बलिदानी जांबाजों से लिपटकर उनकी गौरव गाथा का बखान कर रहा था।

मुजफ्फरनगर की गांधी कॉलोनी में 29 अगस्त 1969 को जन्मे मेजर मनोज तलवार 11 जून 1999 को 19 हजार फीट ऊंची चोटी टूरटोक लद्दाख में सैनिकों का नेतृत्व करते हुए ऊपर चढ़े थे। चोटी से पाक सेना बम बरसा रही थी, लेकिन मेजर के कदम नहीं डगमगाए। 13 जून को उन्होंने चोटी पर तिरंगा लहराया और वीरगति को प्राप्त हो गए। कारगिल में मनोज की शहादत के बाद जब उनका शव यहां लाया गया तो पूरा शहर ही उनके अंतिम दर्शन को उमड़ा। मेजर तलवार के पिता मेरठ में रहते हैं।

देश की रक्षा के लिए कारगिल युद्ध में टाइगर हिल पर जांबाज योगेंद्र 17 दुश्मनों को मौत के घाट उतारकर शहीद हो गए थे। देश के अमर शहीद ने अपने जान की कुर्बानी देकर क्षेत्र ही नहीं देश का नाम रोशन किया है। कारगिल विजय दिवस पर शहीद योगेंद्र यादव के शहीद स्थल पर उनकी प्रतिमा पर
पुष्पांजलि अर्पित की जाएगी।

हस्तिनापुर के पाली गांव में जांबाज सिपाही योगेंद्र का जन्म रामफल यादव की पत्नी शकुंतला देवी की कोख से एक मई 1970 को हुआ था। देश सेवा का जज्बा लिए योगेंद्र यादव मात्र 18 वर्ष की आयु में ही ग्रेनेड बटालियान में वर्ष 1988 में भर्ती हो गए थे। वे अपनी बटालियन के साथ पांच जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। परंतु उन्होंने बहादुरी के साथ 17 दुश्मनों को मौत के घाट उतार दिया था। जब उनका पार्थिव शरीर यहां पहुंचा तो क्षेत्र के लोगों ने शामिल होकर उनको गमगीन और नम आंखों से अंतिम विदाई दी।

शहीद योगेंद्र यादव का छोटा भाई महीपाल भी सेना में ग्रेनेडियर बटालियन में सिपाही के पद पर कोटा राजस्थान में तैनात है। शहीद योगेंद्र यादव की पत्नी उर्मिला के अलावा दो पुत्र और एक पुत्री हैं। उनकी पत्नी उर्मिला को इतना गर्व है कि वह दोनों पुत्रों को देश सेवा के जज्बे की सीख देती है। वहीं उनकी बेटी की इसी वर्ष शादी हो गई है।

मेरठ के कंकरखेड़ा क्षेत्र में रामनगर निवासी सतीश आर्मी में इंजीनियर कोर में थे। 26 जुलाई 1999 को वह कारगिल युद्ध मे शहीद हो गए। 29 जुलाई को शहीद सतीश का शव मेरठ लाया गया था। तब यहां जबरदस्त भीड़ उमड़ी थी, लोग शहीद की अंतिम यात्रा में फूल बरसाते हुए चल रहे थे।

ललियाना निवासी 22 ग्रेनेडियर में तैनात रहे जुबैर अहमद पुत्र जर्रार अहमद के दिल में भी देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। लड़ाई से पहले वह छुट्टी पर थे। लेकिन, कुछ दिन बाद ही लड़ाई शुरू हो गई। वह बॉर्डर पर चले गए। कुछ दिन बाद उनके शहीद होने की खबर मिली। पिता जर्रार अहमद का देहांत हो चुका है, जबकि मां बुढ़ापे में संघर्ष कर रही हैं। मेरठ के यशवीर सिंह 12 जून 1999 में तोलोलिंग पहाड़ी पर पाकिस्तानी सेना से युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे।

शादी के महज पंद्रह दिन बाद कारगिल में मोर्चे पर पर पहुंचे बुलंदशहर के औरंगाबाद अहीर निवासी 19 साल के योगेन्द्र यादव बहादुरी की मिसाल बन गए। सत्रह गोलियां खाकर भी योगेन्द्र ने दुश्मनों को मार तिरंगा फहरा दिया।

बुलंदशहर के ग्राम औरंगाबाद अहीर में 10 मई 1980 को जन्मे योगेन्द्र सिंह यादव के पिता रामकरण सिंह यादव सेना में रहे हैं। पांच मई मई 1999 को योगेन्द्र यादव की शादी हुई और पंद्रह दिन बाद ही कारगिल से बुलावा आ गया। कमांडिंग ऑफिसर कर्नल कुशलठाकुर के नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर को टाइगर हिल कब्जा करने का आदेश मिला। इसके लिए बटालियन को तीन कंपनियों ‘अल्फा ‘डेल्टा’और’घातक’ में बांटा गया। घातक कंपनी में ग्रेनेडियर योगेन्द्र यादव समेत 7 जवान थे। चार जुलाई की रात 25 सैनिकों के दल ने टाइगर हिल पर मुठभेड़ के बाद पहली चौकी पर कब्जा कर लिया। फिर 7 जवानों का दल आगे बढ़ा औरमुठभेड़ में दो जवान शहीद हो गए। फिर आगे बढ़े 5 जवानों में से चार जवान मुठभेड़ में शहीद हो गए। इकलौते बचे योगेन्द्र यादव बुरी तरह घायल हो गए और उन्हें पंद्रह गोलियां लगीं। इसके बावजूद योगेन्द्र ने एके-47 से ताबड़तोड़ फायरिंग कर दुश्मनों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। पत्थरों की आड़ लेकर अदम्य साहस का परिचय देते हुए योगेन्द्र यादव ने हैंड ग्रेनेड से पाक सैनिकों पर हमला बोल दिया। फिर उन्हीं की राइफल से फायरिंग की। योगेन्द्र यादव ने चार पाक सैनिकों को मौत की नींद सुलाते हुए भारत माता की जय बोली। करीब पांच सौ फीट ऊंची पहाड़ी से किसी तरह गंभीर रूप से घायल अवस्था में अपने कैंप पर पहुंचा। वहां अफसरों को पूरी दास्तां सुनाई। लंबे उपचार के बाद 14 अक्तूबर 1999 को योगेन्द्र यादव पूरी तरह ठीक होकर फिर ड्यूटी पर पहुंचे। योगेन्द्र को 26 जनवरी 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन के हाथों योगेन्द्र ने परमवीर चक्र प्राप्त किया।

ये सपूत हुए कारगिल में शहीद:
कैप्टन जिंदू गोगोई, सूबेदार प्रताप सिह, हवलदार मदन सिंह, नायक शिव सिंह, एसएम नायक ज्ञान सिंह, नायक सुरेन्द्र सिंह, लांस नायक सुरेन्द्र सिंह, लांस नायक हरीश सिंह, लांस नायक दिलवर सिंह, मदन सिंह, राम प्रसाद, देवेन्द्र प्रसाद, कृपाल सिह, दिनेश दत्त, राइफल मैन वीरेन्द्र लाल, अमित नेगी, विजय सिंह, जयदीप सिंह भंडारी, रजीत सिंह,सतीश चंद्र दलवीर सिंह, भगवान सिंह।

दुश्मन पर बरसाए 23 हजार बम, मिला कारगिल ऑनर
मेरठ कैंट में तैनात 197 मीडियम रेजीमेंट 1999 कारगिल युद्ध में शामिल रही है। इस रेजीमेंट ने कारगिल में दुश्मन की छाती पर सबसे ज्यादा 23 हजार 239 गोले दागे। बहादुरी के इस शानदार प्रदर्शन के लिए साल 2005 में सत्रह जुलाई को इस रेजीमेंट के जांबाजों को कारगिल टाइटल से नवाजा गया।

तोलोलिंग और टाइगर हिल पर फहराया तिरंगा
पंद्रह मई 1999 को कारगिल रेजीमेंट को माइनस 50 डिग्री के बर्फानी तापमान वाले द्रास सेक्टर में जाने को कहा गया। यह आर्टीलरी की पहली रेजीमेंट थी जिसे द्रास सब सेक्टर के आतंकवाद ग्रसित इलाके में तैनात किया और दुश्मन द्वारा कब्जाई गई चोटियां खाली कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई। रेजीमेंट ने तोलोलिंग, टाइगर हिल और प्वाइंट 5140 पर मौजूद दुश्मन की कमर तोड़ दी और चोटियां खाली कराने को जुटीं सहयोगी यूनिटों को कामयाब सपोर्ट फायर दिया। रेजीमेंट के तत्कालीन कमान अधिकारी सेना मेडल प्राप्त कर्नल आलोक देव अब मेजर जनरल हैं। उन्होंने द्रास सेक्टर के प्रमुख 11 युद्धों के लिए सटीक फायर प्लान बनाया। रेजीमेंट के सभी अफसरों, जेसीओ और जवानों ने क्षमता से कहीं ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया और जीत हासिल करने में अहम भूमिका निभाई। उम्दा नेतृत्व और निश्चय विजय की भावना के कारण ही इस रेजीमेंट ने पांच सेना मेडल, एक मेंशन इन डिस्पे, दो सेनाध्यक्ष प्रशंसा पत्र और 14 जीओसीइनसी प्रशंसा पत्र हासिल किए हैं।

मेरठ कैंट में तैनात गढ़वाल राइफल्स ने लिखी वीरता की दास्तां
इन दिनों मेरठ कैंट में तैनात 18 गढ़वाल राइफल्स ने 19 जून की रात को प्वाइंट 5140 पर कब्जा कर लिया। इसके बाद 22 जून 1999 को बटालियन को प्वाइंट 4700 पर कब्जा कर लिया। इस ऑपरेशन में बटालियान के एक अधिकारी और 18 बहादुर जवानों ने अपनी मृातभूमी के लिए प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया। इस साहसिक ऑपरेशन में चार सरदार साहेबान और 48 जवान घायल हुए। इस अदभुत साहसपूर्ण कार्य के लिए बटालियन को बैटल आनर द्रास और थियेटर आनर कारगिल से सम्मानित किया गया जो कि एक इन्फेन्ट्री बटालियन के लिये सम्मान की बात होती है। बटालियन को इसके लिए छह वीर चक्र,एक बार टू सेना मेडल, सात सेना मेडल, सात मेंशन इन डिस्पैच, दो थल सेनाध्यक्ष प्रशंसा पत्र भी मिले।

बटालियान ने दिए यह बलिदान
कैप्टन सुमित रॉय, सीएचएम कृपाल सिंह, हवलदार जगत सिंह, हलवदार पदम राम, लांस नायक शंकर राजा राम शिंदे, नायक भारत सिंह, नायक कश्मीर सिंह, नायक मंगत सिंह, नायक राकेश सिंह, राइफल मैन अनुसूइया प्रसाद, राइफलमैन डबल सिंह।

साभार- https://www.livehindustan.com से