कोल्हापुर के पगोरे नामक गाँव में निजाम की पुलिस ने अत्यधिक आतंक मचा रखा था| इस गांव के सब लोगों पर अत्याचार किये गए तथा किये जाते रहे किन्तु क्रान्ति के सम्बन्ध में फरार मल्लू नामक व्यक्ति की माँ काशीबाई पर रोंगटे खड़े कर देने वाले अत्याचार किये गए| काशीबाई, उसके पति तथा उनके दोनों बच्चों के साथ ही साथ दो अन्य व्यक्तियों के साथ निजाम की चिखावल के पुलिस पाटिल के घर लाये तथा काशीबाई को १९ अक्तूबर १९४४ ईस्वी को इन्गवाले नामक दारोगा के सामने पेश किया गया| यहाँ इस दारोगा ने काशीबाई के बाल पकड़कर उसे भूमि पर पटक दिया, सब के सामने उसे –उसी के पति के हाथों नंगा कराया गया तथा फिर उसकी हंटरों से पिटाई की गई| इतने से ही इस मुस्लिम दारोगा को शान्ति नहीं मिली अब उसने इस महिला के गुपत स्थान को मिर्चों की बुकनी डाल कर भर दिया गया| अगले दिन पुन; इस महिला को नंगा करके पीटा गया| जब तक पुलिस गाँव में रही तब तक किसी को कुछ भी खाने को नहीं दिया गया तथा पुलिस थाने में नहीं अपितु पुलिस दारोगा के घर पर ही यह सब पिटाई तथा दुष्कर्म किया गया|
कोल्हापुर के सरकारी अस्पताल में काशीबाई का इलाज हुआ किन्तु किसी भी डाक्टर अथवा नर्स को गवाही के लिये नहीं जाने दिया गया| जब वह इस अत्याचारी मुस्लिम दारोगा के चंगुल से छूटकर घर लौट रही थी तो मार्ग में इसके गुप्त स्थान से खून बहता हुआ वहां के लोगों ने देखा था|
भारतीय महिलाओं ने देश की रक्षा के लिए, देश की स्वाधीनता प्राप्ति के लिए तथा देश को पराधीन होने से बचाने के लिए किस प्रकार इदन्नमम के वेद आदेश को अपनाते हुए स्वयं को स्वाहा किया, इस का रेखाचित्र खैंचते हुए कवि ने निम्न कविता को बड़ी सफलता से रचा है| तथा इसमें भारतीय वीरांगणाओं की वीरता को स्पष्ट किया है और बताया है कि वह किस प्रकार इस हेतू अपने सिरों को अपने हाथों में ले कर बलिवेदी की और बढती थीं|
वीर मंदिर
दशों दिशाए गूंजी टन टन टन टन की टंकारों से
कानों शब्द न आ पाता है भक्तों के जयकारों से|
यह वह मंदिर है जिस में नित .सभी समय का मेला है
प्रतिपल आता जय जय गाता नव भक्तों का रेला है||
इस मंदिर में धर्मदेव का पूजन युग युग से होता
इसकी वेदी पर बहता है पावन लोहू का सोता|
यहाँ पुजारी धूप दीप या अक्षत कभी न लाते हैं
जो भी आते हैं अपने हाथों में अपना सर लाते हैं ||
भवन बना है इसी भाँति यह ईंट न चूना पानी से
किन्तु जान के निर्मोही दीवानों की कुर्बानी से|
जब यह मंदिर बना न आया यहाँ ईंट चूना पानी
इसे बनाने में भक्तों ने अपना तन मन है वारा ||
ईंटों के स्थानों पर अपने हाथों से अपने सर
सर के ऊपर सर फिर उस पर सर सर रखकर…………..
डॉ. अशोक आर्य
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