महापुरुष यदा—कदा ही जन्म लेते हैं लेकिन बौद्ध परंपराओं के अनुसार भगवान बुद्ध के विचारों को पूरे विश्व में फैलाने के लिए कुशोक बकुला 19 बार पृथ्वी पर अवतरित हो चुके हैं। बौद्ध परंपराओं के अनुसार 20 वें बकुला भी जन्म ले चुके हैं। आज जन्म 19 मई, 1917 को लेह के राजपरिवार में पैदा हुए 19वें कुशक बकुला रिम्पोछे का जन्मदिन है।
भगवान बुद्ध के शरीर त्याग के समय उनके 16 शिष्यों ने प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक उनके विचार पूरे विश्व में नहीं फैलेंगे, तब तक वे मोक्ष से दूर रहकर बार-बार जन्म लेंगे और यह काम पूरा करेंगे। इन 16 में से एक कुशोक बकुला अब तक 19 बार जन्म ले चुके हैं। उनके 19वें अवतार थे श्री लोबजंग थुबतन छोगनोर, जो कुशक बकुला रिम्पोछे के नाम से प्रसिद्ध हुए।
राज परिवार में हुआ था जन्म
श्री रिम्पोछे का जन्म 19 मई, 1917 को लेह (लद्दाख) के पास माथो गांव के एक राज परिवार में हुआ था। 1922 में 13वें दलाई लामा ने उन्हें 19वां कुशक बकुला घोषित किया। तिब्बत की राजधानी ल्हासा के द्रेपुंग विश्वविद्यालय में उन्होंने 14 वर्ष तक बौद्ध दर्शन का अध्ययन किया। 1940 में लद्दाख वापस आकर उन्होंने अपना जीवन देश, धर्म और समाज को समर्पित कर दिया। अब वे संन्यासी बनकर भ्रमण करने लगे।
भारतीय सेना के साथ किया था पाकिस्तान के हमले को विफल 1947-48 में पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर हमला कर दिया। श्री रिम्पोछे ने भारतीय सेना के साथ मिलकर इसे विफल किया और लद्दाख को बचा लिया। 1949 में नेहरू जी आग्रह पर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और लद्दाख के नव निर्माण में लग गये।
जम्मू-कश्मीर में सत्ता पाते ही शेख अब्दुल्ला ने ‘लैंड सीलिंग एक्ट’ बना दिया। अब कोई व्यक्ति या संस्था 120 कनाल से अधिक भूमि नहीं रख सकती थी। इसका उद्देश्य विशाल बौद्ध मठों और मंदिरों की भूमि कब्जाना था। श्री रिम्पोछे ने सभी मठों के प्रमुखों के साथ ‘अखिल लद्दाख गोम्पा समिति’ बनायी। फिर वे शेख अब्दुल्ला, नेहरू जी और डा. अम्बेडकर से मिले। डा. अम्बेडकर के हस्तक्षेप से यह कानून वापस हुआ। 1951 में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा बनने पर वे निर्विरोध उसके सदस्य निर्वाचित हुए। उन्होंने विधानसभा में लद्दाख के भारत में एकीकरण का समर्थन तथा जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग होने का अधिकार देने का खुला विरोध किया।
मंगोलिया के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में दिया योगदान
श्री रिम्पोछे का मंगोलिया के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में भी बड़ा योगदान है। मंगोलिया में मान्यता थी कि एक समय ऐसा आएगा, जब वहां बौद्ध विहारों, गं्रथों तथा भिक्षुओं को काफी खराब समय देखना होगा। फिर भारत से एक अर्हत आकर इसे ठीक करेंगे। और सचमुच यही हुआ। 1924 में साम्यवादी शासन आते ही हजारों भिक्षु मार डाले गये। धर्मग्रंथ तथा विहार जला दिये गये। ऐसे में 1990 में श्री रिम्पोछे भारत के राजदूत बनाकर वहां भेजे गये।
उनके वहां जाने के कुछ समय बाद शासन और लोकतंत्र समर्थकों में सशस्त्र संघर्ष छिड़ गया। श्री रिम्पोछे ने लोकतंत्र प्रेमियों को अहिंसा के संदेश के साथ ही हाथ पर बांधने के लिए एक अभिमंत्रित धागा दिया। लोकतंत्र प्रेमियों ने अपने बाकी साथियों के हाथ पर भी वह धागा बांध दिया। तभी शासन ने भी हिंसा छोड़कर शांति और लोकतंत्र बहाली की घोषणा कर दी। 10 वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने बंद मठ और विहारों को खुलवाया तथा बौद्ध अध्ययन के लिए एक महाविद्यालय स्थापित किया। उनके योगदान के लिए मंगोलिया शासन ने उन्हें अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पोलर स्टार’ प्रदान किया।
दो बार विधायक और दो बार रहे सांसद
श्री रिम्पोछे लद्दाख से दो बार विधायक तथा दो बार सांसद बनेे। 1978 से 89 तक वे अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य रहे। 1988 में शासन ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। चार नवम्बर, 2003 को उनका निधन तथा 16 नवम्बर को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हुआ। 2005 में बौद्ध परम्परा के अनुसार 20वें कुशक बकुला की पहचान कर ली गयी है।
साभार- साप्ताहिक पाञ्चजन्य से