पूरा विश्व आज एड्स दिवस मना रहा है और आज भी इस ‘वैश्विक कलंक’ के खिलाफ मानव जाति की जंग जारी है । एक दौर में जन स्वास्थ्य के लिए सबसे खतरनाक माने जाने वाले हयूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (एचआईवी)/ एड्स के मामलों में यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक़ वैश्विक स्तर पर गिरावट देखने को मिली है। 29 साल की जंग के बाद भारत में भी एचाआईबी/एड्स के मामलों में कमी दर्ज की गई है।
देश में इस तरह का पहला मामला मामला 1996 में दर्ज किया गया था। इसके खिलाफ सफलता से उत्साहित सयुंक्त राष्ट्र ने वैश्विक रूप से इस वाइरस और एड्स बीमारी से पूरी तरह से निजात पाने के संकल्प के साथ इस साल की थींम ‘एचआईवी पीड़ितों की संख्या शून्य तक ले जाना’ निर्धारित की है।
विश्व एडस दिवस पर हम सभी को यह समस्या याद सी आ जाती है । भारत में एडस रोगियों की समस्या में बढोत्तरी हो रही हैं । एडस फैलने का मुख्य कारण है इस बीमारी के प्रति लोगों में जानकारी का आभाव। जिसका परिणाम एडस के रूप में हमारे सामने आती है। ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का आभाव होना इसका प्रमुख कारण है। जब की भारत जैसे विशाल देश में यह आसान काम नही हैं कि स्वास्थ्य के प्रति लोगों घर -घर जाकर समझाया जा सके। सरकार का प्रयास भी काम चलाऊ लगता है। विकास भारत में भौगिलिक स्थिती ऐसी है जिस वजह से हर स्थान पर सूचनाएं देना संम्भव नही ।
लोगो को एड्स के प्रति जागरूक करने के मकसद से 1988 से हर वर्ष एक दिसम्बर को विश्व एड्स मनाया जाता है। एड्स को तमाम जागरूकता, अभियानों के बावजूद अब भी एक संक्रमण नहीं, बल्कि सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है। घर-परिवार और समाज से लेकर कामकाज की जगहों तक में एचआईवी/ एड्स से ग्रस्त लोग अपमान, प्रताड़ना और भेदभाव के शिकार हो रहे हैं। यदि भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के सर्वेक्षण को देखे तो आने वाले दिन में इन एडस रोगियों की संख्या में कुछ सुधार के आसार हैं। पर क्या इस तरह की सरकारी बातों को माना जा सकता है। ये तो आने वाले दिन ही बतायेंगे। फिर भी एडस से पीडित रोगियों के लिए पर्याप्त संशाधन की व्यावस्था न होने के कारण इन रोगियों की बची हुई जिंदगी आसान नही रह जाती है। तो क्या इस तरह से जीवन के एक पल को घुट -२ कर जी रहें लोगों को हम लोगों को मदद नही करनी चाहिए। वैसे तो भारत में कई गैर सरकारी संगठन इन रोगियों के लिए काम कर रहें पर ये संगठन मात्र दिखावा ही लगते है।
एचआईवी एड्स महज एक मेडिकल समस्या नहीं है, यह सामाजिक संकट बनती जा रही है। एक समय लोग सोचते थे कि भारत जैसे देश में यह रोग तेजी से नहीं फैलेगा, क्योंकि यहां सामाजिक नियम बड़े कड़े हैं। जाहिर है कि यह बात गलत साबित हुई। आज अगर ग्रामीण इलाकों के लोग भी इस रोग की चपेट में आ रहे हैं तो उसका मतलब यह है कि समाज के ऐसे कई पहलू हैं जिनको हमने नहीं समझा है। आइये हम मिलकर इस एडस दिवस पर ये संकल्प ले की हम इन रोगियों को प्यार एवं आर्थिक मजबूती देगें। इस बीमारी को खत्म करने के लिए प्रयास करेगें।।
अनुज हनुमत
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग ,इलाहाबाद
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