जिस देश में चन्द्रमा के १११ नाम हैं, उस देश में चन्द्रमा पर भेजे जाने वाले यान के लिए मून मिशन नाम रखा जाता है..
शरद पूर्णिमा के दिन सोलह कलाओं के साथ अपनी शीतलता, चांदनी और पवित्रता से हमें आप्लावित करने वाले चन्द्रमा को लेकर कई पौराणिक आख्यान, लोककथाएं और कहानियैं प्रचलित है। प्रेमी प्रेमिकाओं को कभी आशा में तो कभी निराशा में डुबोने वाला चन्द्रमा अनादि काल से सौंदर्य का प्रतीक रहा है।
हमारे ऋषि-मुनियों ने
चन्द्रमा के सौंदर्य और शीतलता पर मुग्ध होकर इसको १११ नामों से अलंकृत किया है। दुनिया की किसी भाषा में. चनद्रमा तो क्या किसी भी प्रतीक या वस्ति के लिए १११ नाम महीं मिलेंगे, लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था ने हमको इतना दरिद्र, भिखारी और दयनीय बना दिया है कि हम अपने देश में चन्द्रमा पर जाने के लिए मून मिशन के तहत काम करते हैं। हम चन्द्रमा के १११ नामों को याद नहीं रख पाते।
चन्द्रमा के १११ नाम
1.ॐ श्रीमते नमः।
2.ॐ शशधराय नमः।
3.ॐ चन्द्राय नमः।
4.ॐ ताराधीशाय नमः।
5.ॐ निशाकराय नमः।
6.ॐ सुधानिधये नमः।
7.ॐ सदाराध्याय नमः।
8.ॐ सत्पतये नमः।
9.ॐ साधुपूजिताय नमः।
10.ॐ जितेन्द्रियाय नमः।
11.ॐ जयोद्योगाय नमः।
12.ॐ ज्योतिश्चक्रप्रवर्तकाय नमः।
13.ॐ विकर्तनानुजाय नमः।
14.ॐ वीराय नमः।
15.ॐ विश्वेशाय नमः।
16.ॐ विदुषां पतये नमः।
17.ॐ दोषाकराय नमः।
18.ॐ दुष्टदूराय नमः।
19.ॐ पुष्टिमते नमः।
20.ॐ शिष्टपालकाय नमः।
21.ॐ अष्टमूर्तिप्रियाय नमः।
22.ॐ अनन्ताय नमः।
23.ॐ कष्टदारुकुठारकाय नमः।
24.ॐ स्वप्रकाशाय नमः।
25.ॐ प्रकाशात्मने नमः।
26.ॐ द्युचराय नमः।
27.ॐ देवभोजनाय नमः।
28.ॐ कलाधराय नमः।
29.ॐ कालहेतवे नमः।
30.ॐ कामकृते नमः।
31.ॐ कामदायकाय नमः।
32.ॐ मृत्युसंहारकाय नमः।
33.ॐ अमर्त्याय नमः।
34.ॐ नित्यानुष्ठानदाय नमः।
35.ॐ क्षपाकराय नमः।
36.ॐ क्षीणपापाय नमः।
37.ॐ क्षयवृद्धिसमन्विताय नमः।
38.ॐ जैवातृकाय नमः।
39.ॐ शुचये नमः।
40.ॐ शुभ्राय नमः।
41.ॐ जयिने नमः।
42.ॐ जयफलप्रदाय नमः।
43.ॐ सुधामयाय नमः।
44.ॐ सुरस्वामिने नमः।
45.ॐ भक्तानामिष्टदायकाय नमः।
46.ॐ भुक्तिदाय नमः।
47.ॐ मुक्तिदाय नमः।
48.ॐ भद्राय नमः।
49.ॐ भक्तदारिद्र्यभंजनाय नमः।
50.ॐ सामगानप्रियाय नमः।
51.ॐ सर्वरक्षकाय नमः।
52.ॐ सागरोद्भवाय नमः।
53.ॐ भयान्तकृते नमः।
54.ॐ भक्तिगम्याय नमः।
55.ॐ भवबन्धविमोचकाय नमः।
56.ॐ जगत्प्रकाशकिरणाय नमः।
57.ॐ जगदानन्दकारणाय नमः।
58.ॐ निस्सपत्नाय नमः।
59.ॐ निराहाराय नमः।
60.ॐ निर्विकाराय नमः।
61.ॐ निरामयाय नमः।
62.ॐ भूच्छायाच्छादिताय नमः।
63.ॐ भव्याय नमः।
64.ॐ भुवनप्रतिपालकाय नमः।
65.ॐ सकलार्तिहराय नमः।
66.ॐ सौम्यजनकाय नमः।
67.ॐ साधुवन्दिताय नमः।
68.ॐ सर्वागमज्ञाय नमः।
69.ॐ सर्वज्ञाय नमः।
70.ॐ सनकादिमुनिस्तुताय नमः।
71.ॐ सितच्छत्रध्वजोपेताय नमः।
72.ॐ सितांगाय नमः।
73.ॐ सितभूषणाय नमः।
74.ॐ श्वेतमाल्याम्बरधराय नमः।
75.ॐ श्वेतगन्धानुलेपनाय नमः।
76.ॐ दशाश्वरथसंरूढाय नमः।
77.ॐ दण्डपाणये नमः।
78.ॐ धनुर्धराय नमः।
79.ॐ कुन्दपुष्पोज्ज्वलाकाराय नमः।
80.ॐ नयनाब्जसमुद्भवाय नमः।
81.ॐ आत्रेयगोत्रजाय नमः।
82.ॐ अत्यन्तविनयाय नमः।
83.ॐ प्रियदायकाय नमः।
84.ॐ करुणारससम्पूर्णाय नमः।
85.ॐ कर्कटप्रभवे नमः।
86.ॐ अव्ययाय नमः।
87.ॐ चतुरश्रासनारूढाय नमः।
88.ॐ चतुराय नमः।
89.ॐ दिव्यवाहनाय नमः।
90.ॐ विवस्वन्मण्डलाज्ञेयवासाय नमः।
91.ॐ वसुसमृद्धिदाय नमः।
92.ॐ महेश्वरप्रियाय नमः।
93.ॐ दान्ताय नमः।
94.ॐ मेरुगोत्रप्रदक्षिणाय नमः।
95.ॐ ग्रहमण्डलमध्यस्थाय नमः।
96.ॐ ग्रसितार्काय नमः।
97.ॐ ग्रहाधिपाय नमः।
98.ॐ द्विजराजाय नमः।
99.ॐ द्युतिलकाय नमः।
100.ॐ द्विभुजाय नमः।
101.ॐ द्विजपूजिताय नमः।
102.ॐ औदुम्बरनगावासाय नमः।
103.ॐ उदाराय नमः।
104.ॐ रोहिणीपतये नमः।
105.ॐ नित्योदयाय नमः।
106.ॐ मुनिस्तुत्याय नमः।
107.ॐ नित्यानन्दफलप्रदाय नमः।
108.ॐ सकलाह्लादनकराय नमः।
109.ॐ पलाशसमिधप्रियाय नमः।
110.ॐ चन्द्रमसे नमः।
111. ॐ सुधाकराय नम
मौका है शरद पूर्णिमा का तो जानिये शरद पूर्णिमा के बारे में…
हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
शरद पूर्णिमा की व्रत कथा
एक साहूकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनों पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लड़के को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया।
इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और जितेन्द्रिय भाव से रहे।धनवान व्यक्ति ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए १०० दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (३ घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक ग़रीबों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा किसी दीन दुःखी को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।
इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।