मनुष्य के जीवन में समय – समय पर परिवर्तन आते हैं। आज का शौक कल नहीं रहता। नया उत्साह नई वृति को जन्म देता है। कोई अनुराग ऐसा होता है जो कई वर्ष पीछे छूटने पर भी उसकी चिंगारी राख में दबी रहती है। पता नहीं कब हवा चले और चिंगारी शोला बन जाए। ऐसा ही कुछ साहित्यानुरागी अनुज कुमार कुच्छल के जीवन की कहानी लिए हुए है। पता ही नहीं चला किशोरावस्था का साहित्य के प्रति जुनून की हद तक प्रेम की आग कब चिंगारी बन गया और मन में इसकी टीस बरकरार है।
मध्य – पश्चिम रेल मंडल कोटा में पिछले — वर्षो से सेवारत सीनियर सेक्शन इंजिनियर अनुज कुच्छल मूलत: उत्तरप्रदेश में कैराना कस्बे की धरती के लाल है। कैराना के अध्यापक स्व. मोतीलाल कुच्छल के परिवार में 29 जनवरी 2967 को जन्में अनुज ने मातृभूमि में ही अपनी शिक्षा प्राप्त की और सिविल इंजिनियरिंग में डिप्लोमा कर भारतीय रेलवे में सेवा में आ गए। साहित्य के प्रति इनका अनुराग बचपन से ही हो गया जब 10 वर्ष की आयु में ये कविता लिखने लगे। कविता लिखने का चाव परवान चढ़ा तो एक डायरी भर गई।
इनके चाचा क्षेत्रीय समाचार पत्रों के संवाददाता थे और साहित्य के प्रति रुचि रखते से कस्बे में अखिल भारतीय स्तर के कवि सम्मेलन और मुशायरों के आयोजन करवाते थे। उनसे जुड़ कर इन्होंने पूरी जिम्मेदारी ले कर कई बार पूरी सक्रियता से कवि सम्मेलनों के आयोजन करवाए। कवियों को आमंत्रण पत्र भेजना, उनकी समस्त व्यवस्थाएं करना, मानदेय का भुगतान करना आदि कार्य बखूबी किए। रुचि होने से कई ख्यातनाम कवियों से अच्छा संपर्क हो गया और सभी को निकट से सुनने और समझने का मौका मिला। यही नहीं कवि सम्मेलनों की समाचार रिपोर्ट भी ये तैयार करने लगे। इनकी रिपोर्ट और स्वलिखित कविताएं जब समाचार पत्रों में छपने लगी तो होंसला और बढ़ गया।
इन्होंने हिंदी, धार्मिक, आध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक आदि साहित्य का न केवल गूढ़ अध्यन किया वरन गहनता से विश्लेषणात्मक दृष्टि से समझा भी। पौराणिक ग्रंथों के कम चर्चित पत्रों की मनोदशा का विशेष रूप से अध्यन किया। उम्र के 18 बसंत बीतते – बीतते पुराण, वेद, पुराण, रामायण,गीता,बाइबल और कुरान जैसे धार्मिक ग्रंथों का गहराई से अध्यन किया। इन्होंने संत कबीर,कालीदास, रहीम,सूरदास,तुलसीदास, मीरा बाई, बिहारी,रसखान, आदि के साहित्य को भी गंभीता से पढ़ा। महात्मा गांधी, विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, राजाराममोहन राय, जैसे अन्य कई महापुरुषों का साहित्य भी पढ़ा और उनकी विचारधारा को समझा।
प्राचीन काल से मुगल काल तक के इतिहास और ऐतिहासिक प्रसंगों और संदर्भों पर महान उपन्यासकारों आचार्य चतुर सेन शास्त्री, वृंदावन लाल वर्मा, रांगेय राघव,हजारी प्रसाद द्विवेदी और अमृता लाल नागर के ऐतिहासिक उपन्यास भी अन्वेषण दृष्टि के साथ पढ़े।
कालजई साहित्यकारों और कहानीकारों के साहित्य का भी पूरा रसास्वादन कर वर्णित परिवेश और उनकी विचारधारा को गहनता से समझा। इन्होंने चंद्रधर शर्मा गुलेरी, मुंशी प्रेमचंद, मैथिली शरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘ निराला ‘, सुमित्रानंदन पंत,महादेवी वर्मा,सुभद्रा कुमारी चौहान,मिर्जा गालिब, जयशंकर प्रसाद और हरिवंश राय बच्चन के साहित्य का पूरी शिद्दत से अध्यन – मनन किया। इन्होंने कैराना में अपनी एक अच्छी खासी गृह लाइब्रेरी बना ली थी। साहित्य प्रेम का अंदाजा इससे भी होता है कि ये अपनी पॉकेट मनी साहित्यिक पुस्तकें खरीदने पर व्यय करते थे।
एक लंबा समय बीतने पर पर भी बातचीत में इनका साहित्यानुराग तो साफ झलकता ही है साथ ही अपनी साहित्यिक यात्रा को आगे जारी न रख पाने की कसक भी चेहरे पर झलक जाती है। साहित्यिक प्रसंग, घटनाये और संदर्भ इतने कंठस्थ है कि किसी भी साहित्यिक विषय पर लंबा व्याख्यान दे दें। जिस धाराप्रवाह रूप से बताते हैं प्रतीत होता है जैसे सामने कोई चलचित्र चल रहा हो।
मिलनेजुलने और चर्चा के दौरान ये सभी बातें मेरे समक्ष उभर कर आई। लेखन के प्रति रुचि और अन्वेषण दृष्टि का भान हुआ जब पिछले कुछ वर्षो में मेरे साथ संयुक्त रूप से पुस्तक लेखन में सभागिता की। इन्होंने ” भारत की विश्व विरासत – यूनेस्को की सूची में शामिल”, ” भारत में समुद्र तटीय पर्यटन “, “वर्ल्ड हेरिटेज ग्लोबल टू लोकल” एवं” ” पर्यटन को सुगम बनाती भारतीय रेल” पुस्तकों में कंधे से कंधा मिला कर पूरा शोध कर अपने लेखन की समर्थ साहित्यिक सुगंध से पुस्तकों को महकाया।
इसके साथ ही कहीं पीछे छूट गई साहित्यिक यात्रा शायद फिर से दामन थामले और अनुज मूलधारा में जुड़ जाए इस दिशा में विचार बन रहा है। सेवा निवृत्ति के कुछ ही साल शेष रह गए हैं। घर – गृहस्थी के जिमेदारियों से भी फारिक हो जायेंगे। स्वरचित कविताओं की डायरी फिर से खंगालेंगे। नूतन सृजन होगा। सुषुप्त साहित्यिक अनुराग की चिंगारी फिर से शोला बन जाए तो आज के साहित्य जगत में एक नया सितारा उदय होगा और साहित्य आकाश पर चमकेगा।