Sunday, December 29, 2024
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हिंदी साहित्य के इतिहास में तालाबंदी काल

हिंदी साहित्य के इतिहास पुनर्लेखन का समय फिर से एक बार निकट आता दिखाई दे रहा है। वीरगाथा काल से शुरु हो कर भक्ति काल, रीति काल और आधुनिक काल तक लिखे गये इतिहास में अब तालाबंदी (लॉकडाउन) काल को जोड़ना पड़ेगा। लॉकडाउन का सही उपयोग किसी ने किया तो वह हिंदी के रचनाकारों ने किया। कोरोना को देश भगाने के जितने प्रयास किए गये उनमे हिंदी के रचनाकारों ने भी अपने मोबाइल के माध्यम से सोशल मिडिया पर जमकर योगदान दिया। यहॉ तक की इस काल में कई नये रचनाकार भी पैदा हुए। जिनको जीवन पर्यन्त साहित्य का ‘स’ और कविता का ‘क’ छू भी नहीं पाया था वो भी कोरोना की कृपा से कवि हो गये। और अपनी छुपी हुई प्रतिभा से साहित्य समाज को संक्रमित करने लगे।

जो अकवि घर में बैठे-बैठे अभी तक केवल अपनी रोजी-रोटी के चक्कर में सर खपाया करते थे उनको लॉकडाउन में प्रसारित महाभारत बड़ी शिक्षा दे गई। लॉकडाउन उनके लिए कवि-शायर बनने का सुनहरा अवसर लेकर आया। हस्तिनापुर नरेशों की तरह कई कवि और लेखक इस दौरान ऐसे पैदा हुए जिन्होंने किसी शायर की ग़ज़ल के दो शेर लिए और किसी कवि की कविता की चार पंक्तियां ली और जोड़-तोड़ कर एक नई कविता को जन्म दिया और अपनी संतान घोषित कर दिया।

लॉकडाउन काल से पहले तक जो लोग बैंक और बीमा कम्पनी से मुफ्त मिली डायरियों में लिख कर जिंदगी को गुलज़ार रखने का प्रयास करते थे, इस काल में फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हॉटसएप के माध्यम से अपनी तुरन्त जन्मी कविता का ‘जातकर्म’ संस्कार सम्पन्न करवाते नज़र आए। कुछ ऐसे लोग जिनको घरेलु और ‘बाथरुम सिंगर’ का खिताब प्राप्त था, वे लोगों बच्चों के हाथ में मोबाइल पकड़ा कर अपनी प्रतिभा का सार्वजनिक प्रदर्शन करने लगे।

लॉकडाउन काल में वाचिक परम्परा के कवियों के हाथ से माया और राम दोनों निकल गये। रोज कवि सम्मेलन पढ़ने वाले कवियों को एक कवि सम्मेलन भी नसीब नहीं हुआ । और तो और अपनी पहचान व प्रतिभा को बचाने के लिए बिना पेमेंट लिए रोज नये कपड़े पहन कर फेसबुक/ इंस्टाग्राम पर आना पड़ रहा है। मंच पर चुटकुलों को कविता कहने वालो को ये डर सताने लगा है कि लोगों कहीं ये पता न चल जाए की कविता क्या होती है। अगर पता चल गया तो उनकी रोजी रोटी के लाले पड़ जाएंगे।

बगैर जाम के जूम के माध्यम से झूमती हुई ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों ने तो वैश्विक रिकॉर्ड तोड़ दिए है। कुछ कवियों ने तो बकायदा रोज पॉच-छह गोष्ठियों में अपनी सक्रिय भागीदारी भी की और रोजाना बिस्किट की परमानेंट प्लेट सामने रखकर, घर की चाय पी कर, कभी अध्यक्ष तो, कभी अतिथी के रूप में अपनी प्यास बुझाई। आखिर पत्नी को कब तक नई रचना सुना-सुना कर पकाए। कुछ कवियों ने हड़बड़ाहट में इन कवि गोष्ठियों का रिकॉर्ड नहीं रखा, लेकिन जो कवि रिकार्ड रखने में होशियार है वे इतिहास लेखन से पहले गिनीज बुक और वर्ल्ड बुक वालों प्रमाण पत्र प्रदान करने के लिए बाध्य करने की तैयारी कर रहे है। जो कि गिनीज बुक और वर्ल्ड बुक को सम्मान सहित उन्हें प्रदान करना भी पड़ेगा।

फेसबुक के माध्यम से ऑनलाइन आने वालों ने भी लॉकडाउन काल में कुछ कम योगदान नहीं दिया है। रोज किसी ना किसी विषय को लेकर घंटों लंबी चर्चाएं करते है। जो चर्चाएं अभी तक बंद कमरे या किसी स्कुल के हाल में होती थी वह सार्वजनिक होने लगी है। जिनके भाग्य में मुश्किल से अतिथियों सहित पॉच श्रोता होते थे, उन्हें अब बीस-पच्चीस श्रोता मिलने लगे जो कि पूर्वकाल से 4 गुना 5 गुना थे। और वह भी लाइक और पारम्परिक कमेंटस् के साथ। ‘बहुत खूब’, ‘सुंदर रचना’, ‘बधाई सर’, ‘मजा आ गया आपको सुन कर’ ऐसे कमेंटस् लिख कर चर्चा में अपनी उपस्थिती दर्ज करवाने और चर्चा को सफल बनाने वालों का योगदान भी अभूतपूर्व है। क्योंकि उनको भी जीवन में वह सब सुनने को मिल गया जिसे सुनना उन्होने चाहा ही नहीं। हालांकि फेसबुक पर श्रोता कम दर्शक अधिक होते है। पर जब घर बैठे गंगा घर आए तो कौन हाथ नहीं धोए। सर का सम्मान भी हो गया और संबंधों में भी एक बार फिर मिठास घुल गई।

जो ‘कवि कम श्रोता’ थे उनके लिए लॉकडाउन काल स्वर्णिम काल रहा। वे कवि जिनके भीतर कवि सम्मेलन के मंचों पर चढ़ने का कीड़ा तो सालों से कुलबुला रहा था, लेकिन उन्होंने कोई बुला नहीं रहा था और ना कोई जुगाड़ लग पा रहा था ऐसे में यह अवसर उनके लिए तो परमात्मा के दिए किसी दिव्य वरदान से कम नहीं रह। अपना फेसबुक/ इंस्टाग्राम एकाउंट, अपना मोबाइल, अपने शब्द, अपनी मर्जी, सब कुछ अपना यहॉ तक की उन्हें झेलने वाले भी अपने, याने कि जो उनके फेसबुक/ इंस्टाग्राम मित्र हैं । यदि पहुंच थोड़ी लंबी हुई तो किसी समूह या किसी संस्था के बैनर तले बने फेसबुक/ इंस्टाग्राम पर काव्य पाठ कर अपनी भूख मिटा रहे है। कुछ ने तो लंबी कहानियाँ, व्यंग्य और उपन्यास के अंश तक ‘लाइव हावर’ में पढ़ डाले, चाहे उनके श्रोता दो या तीन रहे हो या अंत तक पहुंचते समय शुन्य हो गये हो। लेकिन वर्तमान लॉकडाउन काल में वे फेसबुक लाइव आने वालों की लिस्ट में अपना नाम दर्ज करा गये। और लॉकडाउन के इतिहास लेखकों के लिए सिर दर्द बन गये।

-संदीप सृजन

संपादक-शाश्वत सृजन

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