देश में एक तरफ जहां अनुसूचित जाति-जनजाति कानून में हुए बदलाव के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं और दलित संगठन इस बदलाव को रद्द करने के लिए अध्यादेश लाने की मांग कर रहे हैं। इस बीच मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले में सामाजिक परिवर्तन की एक अलग ज्योति जलाई गई है। जिला प्रशासन ने तीन महीने की कड़ी मेहनत के बाद उन 80 सरकारी स्कूलों के नाम बदल दिए हैं जो दशकों से सामाजिक विभेद पैदा कर रहे थे। जिला प्रशासन की पहल पर ऐसे स्कूल जिनकी स्थापना या नामकरण 15 से 50 साल पहले हुआ था, उनका नाम बदल दिया गया है। जिन स्कूलों का नाम बदला गया है वो पहले जाति-सूचक नामों पर आधारित थे। इस वजह से दूसरे समुदाय के लोग अपने बच्चों को वहां भेजने से परहेज करते थे।
मसलन, किसी स्कूल का नाम हरिजन बस्ती, खैरवारी टोला, विरयानी टोला, बैगा बस्ती, गोदान टोला या बासोर टोला के नाम पर था जिसे अब बदलकर ऐतिहासिक महापुरुषों के नाम पर कर दिया गया है। अब इन स्कूलों का नाम बदलकर डॉ. अम्बेडकर, स्वामी विवेकानंद, चंद्रशेखर आजाद, महारानी दुर्गावती, बिरसा मुंडा जैसी हस्तियों के नाम पर रखा गया है। कुछ स्कूलों के नाम में टोलों का नाम बदलकर आदर्श टोला, झरिया टोला, आजाद नगर भी किया गया है। इन स्कूलों में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च विद्यालय भी शामिल हैं, जो राजधानी भोपाल से करीब 700 किलोमीटर दूर हैं।
जिलाधिकारी अनुराग चौधरी ने जनसत्ता.कॉम से बातचीत में कहा कि क्षेत्र भ्रमण के दौरान उन्हें जाति सूचक स्कूलों के नाम और वहां सामाजिक भेदभाव होने की बात पता लगी। इसके बाद उन्होंने नियमानुसार स्कूलों का नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू की। इस प्रक्रिया में सभी स्कूलों की प्रबंधन समिति, ग्राम सभा, ग्राम पंचायत व सरकारी विभागों से सिफारिश, अनुमोदन और संस्तुति मिलने के बाद 80 स्कूलों के नाम बदले गए हैं। सभी स्कूलों के शिलापट्ट पर भी नए नाम लिखे जा चुके हैं।
जिलाधिकारी चौधरी ने बताया कि इन स्कूलों का सिर्फ नाम बदलने भर तक उनकी कोशिश सीमित नहीं है। उन्होंने सभी स्कूलों को गुणवत्ता सुधारने की सलाह दी है और कहा है कि जो स्कूल बेहतर परफॉर्म करेंगे, उन्हें स्वाधीनता दिवस यानी 15 अगस्त को सम्मानित किया जाएगा। जनसत्ता.कॉम के सवाल पर जिलाधिकारी ने कहा कि उनकी कोशिश है कि इन सरकारी स्कूलों के बच्चे अंग्रेजी भले न बोल पाएं मगर कम से कम उसे जरूर समझ सकें। उन्होंने कहा कि पांचवी क्लास का बच्चा गणित के सवालों का जवाब दे सके। उस क्लास में पढ़ाई जाने वाली कविताओं को याद रख सके, उसका मतलब बता सके।
उन्होंने बताया कि एनटीपीसी, कोल इंडिया जैसी सरकारी क्षेत्र की पीएसयू कंपनियों के नुमाइंदों के सीएसआर के नाम पर सिर्फ वाटर फिल्टर या पंखा-कूलर लगाने के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए भी सहयोग करने को कहा है। जिलाधिकारी ने जिले के कई अधिकारियों को भी इस मिशन परिवर्तन में लगाया है। इलाके के लोगों ने नाम परिवर्तन किए जाने पर खुशी जाहिर की है और इसे सामाजिक और शैक्षणिक सद्भाव की मिसाल बताया है।
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साभार- जनसत्ता से