Thursday, November 28, 2024
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महाराजा सूरजमल ः जिन्होंने ताजमहल में भूसा भरवा दिया था

आगरा सन् 1080 ईस्वी में महमूद गजनवी के आक्रमण गुलामी की जंजीरों में इस प्रकार जकड़ा गया कि निरंतर ६८१ वर्ष तक इसने आजादी का सूर्य नहीं देखा| महमूद गजनवी की विजय के पश्चात् आगरा पर इस्लाम के बादशाहों के नीचे पाददलित होता रहा|

मुगलों के आधीन रहते हुए आगरा मुगलों की शक्ति का केंद्र बन गया था। यहां की सत्ता पर आसीन मुग़ल लोग बार बार हिन्दू राष्ट्रवाद तथा हिन्दू राजाओं को कुचलते रहे। इस नगर मेन स्थित लाल किला इस का गवाह है कि इस किले से मुगलों ने हिन्दुओं पर जितने अत्याचार किये इतने तो कभी तथा कहीं नहीं हुए।

विश्व में सब लोग जानते हैं कि समय कभी एक सा नहीं रहता| आगरा के सम्बन्ध में हुआ भी ऐसा ही क्योंकि अब तक भरतपुर के शासक महाराजा सूरजमल ने अत्यधिक शक्ति का संचय कर सम्राट के रूपा में पद पर आसीन हो चुके थे| वह एक राष्ट्रवादी राजा और वीर योद्धा थे | विदेशियों विशेष रूप से मुगलों की आधीनता से उन्हें बेहद चिढ थी| उन्होंने आगरा को मुगलों से मुक्त कराने का निश्चय किया तथा अपने निश्चय को क्रियान्वित करते हुए उन्होंने 4 मई 1761 ईस्वी को बलराम सिंह व अपने भतीजे वैर के राजा बहादुर सिंह के नेतृत्व में हजारों सैनिक आगरा को विजय करने के लिए भेजे।

वीर बलराम सिंह को अपनी योजना की पूर्ति के लिए यमुना पार जाना था| अत: उसने यमुना पार करने के लिए नाव मांगी तो मुगलों ने नाव देने से मना कर दिया। इसी को आधार बनाकर दोनों वीरों ने अपनी छोटी सी सेना की सहायता से आगरा पर आक्रमण कर दिया। इस समय आगरा का राज्य दिल्ली से चलता था तथा फाजिल खां यहां का किलेदार था। उसके पास प्राय: 6-7 हजार की सेना रहती थी। इस आक्रमण का सामना न कर पाने के कारण मुगलीय सेना को यमुना से हटने पर मजबूर कर दिया।

इसके पशचात् महाराज सूरजमल जी की इस सेना ने आगरा के लाल किले मेन दुबकी बैठी मुग़ल सेना को उनके ही किले में घेर लिया | यह वीर सेना २० दिन तक घेरा डाले बैठी रही। इस घेरे को देख कर किले में सुरक्षित मुग़ल सेना बैठी अंदर इतनी भयभीत थी कि भय से कांप रही थी| दूसरी और दिल्ली में बैठे मुग़ल बादशाह भी सूरजमल के भय से अत्यधिक भयभीत था, इस कारण उसने भी आगरा के लिएकोई सहायता न भेजी। जब युद्ध आरम्भ हुआ तो दोनों ओर से तोपें आग उगलने लगीं, भयंकर युद्ध हुआ।

इस युद्ध में लगभग 180 मुगल सैनिक मारे गए जबकि हिन्दू सेना के केवल २० यौद्धा ही वीरगति को प्राप्त हुए। कहा तो यह भी जाता है कि महाराज सूरजमल के पास जो एक विशालतम टॉप, जिसका नाम लाखा था, जिसका अब तक कोई परिक्षण नहीं हुआ था| इसका प्रयोग भी इस युद्ध में कियागया| भरतपुर से हि इस टॉप से गोला दागा गया, जो आगरा के इस लालकिले में आकर गिरा| इस प्रकार इन दो वीर योद्धाओं ने अपनी छोटी सी वीर सेना की सहायता से आगरा के किले को विजय किया| धीरे धीरे पुरे नगर पर भी अधिकार कर लिया गया और अंत में फाजिल खाँ ने भी हथियार डालते हुए पराजय स्वीकार कर तथा राजा सूरजमल के वीरों से समझौता कर यह किला महाराजा सूरजमल को सौंप दिया। इस प्रकार 12 जून सन् 1761 ईस्वी को आगरा के किले पर 681 वर्षों कि गुलामी के पश्चात् एक बार फिर से भगवा ध्वज लहराने लगा।

इस विजय से लगभग १०० वर्ष पूर्व इसी किले से कुछ दूरी पर ही हिन्दू धर्म न छोड़ने पर दिनांक 1 जनवरी सन् 1670 ईस्वी को औरँगजेब ने अपनी धर्मान्धता का परिचय देते हुए वीर गौकुला जी के शरीर की बोटी बोटी कटवाई थी। महाराजा सूरजमल इस घटना से भी अब तक आहत थे किन्तु आगरा विजय करने से एक प्रकार से इस इस घटना का भी उनहोंने मुगलों से प्रतिशोध ले लिया गया।

मुगलों के हाथों अपवित्र हुए इस किले पर कब्जा करने पर महाराजा सूरजमल ने इस किले को गंगाजल से धुलवा कर इसका शुद्धिकरण करवाया तथा वेदोक्त हवन करके हवन के धुआं से इसे पवित्र किया और इसके पश्चात् इसमें प्रवेश किया और अपना राज्य स्थापित किया। आगरा में ६८१ वर्ष की गुलामी के कारण हिन्दू अत्यंत शिथिल हो चुके थे| राजा सूरजमल जी की प्रेरणा से प्रेरित होकर यहां के हिन्दू धर्मावालाम्बियों में फिर से नव जागृति आई| इससे हिन्दू धर्मानुयायियों में एक बार फिर से दृढ़ता का आभास हुआ|

आगरा पर विधिवत् अपना अधिकार करने के अनंतर राजा सूरजमल की इच्छा थी कि तेजोमहल ( जिसे आजा हम ताजमहल के नाम से जानते हैं तथा जिसे एक कब्र के रूप में बदला जा चुका था ) को एक बार फिर से उसके पूर्व वैभव में लाते हुए , यहाँ मंदिर की स्थापना की जावे किन्तु उनके उस समय के राजपुरोहित जी ने कहा कि यह एक कब्रिस्तान बन चुका है कब्रिस्तान को फिर से मन्दिर बनाना शुभ नहीं होगा, इस लिए वहां कब्र को ही रहने दिया गया और पहले से बने मंदिर को पुन: सथापित करने का विचार त्याग दिया गया।

इस तथ्य से यह बात स्पष्ट होती है कि यह ताजमहल बादशाह शाहजहाँ ने नहीं बनवाया था, उसने तो हिन्दू मंदिर पर कब्जा मात्र ही किया था और उसमे बिना कुछ भी परिवर्तन किये इसे अपने बेगम की कब्र रूपी स्मारक में बदल दिया था तथा इसके आसपास के दोनों मंदिरों को भी मस्जिद क रूप दे दिया था| केवल यह किला ही नहीं सम्पूर्ण आगरा भी सन् 1774 तक हिन्दू राजाओं की सत्ता के आधीन ही था| यही वह किला था ,जिस से हिन्दुओं की रक्षा करने वाले भरतपुर के महाराजा जवाहर सिंह तथा उनके पशचात् भरतपुर के अन्य राजाओं ने शासन करते हुए इसे रक्षा कवच बनाए रखा|

आगरा में अवैध रूप से बनाई गई जामा मस्जिद को महाराजा जवाहर सिंह ने साहस दिखाते हुए खाली करवाकर उसमें अनाज मंडी खुलवा दी तथा उसके एक भाग में पशुओं का तबेला खुलवा दिया| इसके साथ हि ताजमहल में भूसा भरवाकर सेना के घोड़े बांधने लगे| आगरा के इस किले में महाराजा जवाहर सिंह की छत्री बनाई गई| यह छतरी लाल किले में स्थित खास महल के पास शाहजहां की बेटी रोशनारा की छतरी के नजदीक ही बनी हुई है| यहाँ पर ही महाराजा नवल सिंह के नाम से एक हवेली भी बनी हुई है| इस नगर की सुन्दरता बढाने के लिए महाराजा जवाहर सिंह जी ने आगरा में एक सुंदर तथा आकर्षक उद्यान भी बनवाया था। इसके अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार के निर्माण के कार्य उन्होंने आगरा में किये|

इस प्रकार आगरा की सुन्दरता को चार चाँद लगाने वाले कहे जाने वाले मुग़ल इस का कारण नहीं हैं बल्कि इसकी सुन्दरता को बढाने का काम भरतपुर के राजाओं ने किया था, जिसे बाद में मुगलों ने अपना नाम दे दिया| आज भी आवश्यकता है कि इस तथ्य पर व्यापक शोध कर नए तथ्य सामने लाए जाएँ

ड़ॉ. अशोक आर्य
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