Wednesday, December 25, 2024
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पर्यावरण चेतना से आबाद है महात्मा गांधी चिंतन की पौधशाला – डॉ. चन्द्रकुमार जैन

राजनांदगाँव । महात्मा गांधी के दर्शन और चिंतन के सुविज्ञ अध्येता और दिग्विजय कालेज के प्रोफेसर डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने कहा है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के चिंतन की पौधशाला में पर्यावरण चेतना सदा आबाद रही है । गांधी 150वें जन्म वर्ष पर हेरिटेज व्याख्यानमाला के तहत दिए गए साक्षात्कार में डॉ. जैन ने कहा कि गांधी जी पर्यावरण के प्रति चिंतित और जागरूक थे कि उसके बिना वह जीवन को अधूरा मानते रहे ।

डॉ. जैन ने कहा कि आज जब समाज में नफरत और तनाव ज्यादा फैल रहा है, लोगों की जिंदगियां खतरे में हैं तो गांधी ज्यादा प्रासंगिक हो गए हैं। आज जल, जंगल, जमीन के साथ इंसान भी नफरत के शिकार हो रहे हैं। हिंसा की भावना पूरे जैव जगत के लिए विध्वंसकारी होती है। ऐसे में बापू के उन शब्दों को बार बार याद करना होगा कि यह धरती बहुत से लोगों की सारी जरूरतों को तो पूरा कर सकती है किंतु किसी एक व्यक्ति की सारी इच्छाओं को कभी पूरा नहीं कर सकती ।

डॉ. चन्द्रकुमार जैन ने आगाह किया कि जब सारे बड़े देश अपने संसाधनों को युद्ध में झोंक रहे थे। दुनिया के अगुआ नेता युद्ध को ही समाधान मान रहे थे। उसी समय गांधी अहिंसा की अवधारणा के साथ पूरे जीव जगत के लिए करुणा की बात करते रहे । उन्होंने कहा कि हिंसा सिर्फ शारीरिक नहीं होती है। यह विचारधारा के स्तर पर भी होती है। विचार ही कर्म में बदल जाते हैं ।

आज डॉ. जैन ने स्पष्ट किया कि परोक्ष युद्ध नहीं हो रहे हैं, लेकिन जिस तरह से पर्यावरण के साथ हिंसा हो रही है उसके शिकार नागरिक ही हो रहे हैं। जिस तरह दुनिया के अगुवा देश पर्यावरण को धता बताकर खुद को सबसे पहले बताता है तो इस समय गांधी याद आते हैं। आज के संदर्भ में देखें तो आपको गांधी एक पर्यावरण योद्धा भी नजर आएंगे, उनकी विचारधारा में आप एक कुशल पर्यावरणविद की सोच भी देख सकते हैं।

डॉ. जैन ने जोर देकर कहा कि गांधी चिंतन के गर्भ में ही पर्यावरण छुपा बैठा है। महात्मा गांधी हमें सिर्फ मानव हत्या नहीं पूरे जीव जगत की हत्या के खिलाफ अहिंसक ढंग से खड़ा करते है । जब सुंदरलाल बहुगुणा पेड़ों के काटने के खिलाफ होते हैं, पेड़ों पर चली कुल्हाड़ी चिपको कार्यकर्ता अपने सीने पर झेलने को तैयार हो जाते हैं और भूदान के जरिये भूमिपुत्रों के सम्मान की नयी कहानी लिखी जाती है , नदियों।और तालाबों को बचाने की मुहिम।चलाई जाती है तब, डॉ. जैन ने कहा गांधी की ज़रूरत आसानी से समझी जा सकती है । यह जरूरत कल थी, आज है और कल भी रहेगी ।

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