कहते हैं कि विपक्ष सत्ता पर अंकुश का काम करता है। अपने सकारात्मक व्यवहार से। किसी महावत की तरह। लेकिन अठारहवीं लोकसभा को सब से ज़्यादा विध्वंसक विपक्ष मिला है। विपक्ष को बहुत गुरुर है कि राम मंदिर बनवाने का श्रेय लेने वालों को राम के प्रतीक अयोध्या , प्रयाग , चित्रकूट समेत तमाम संसदीय क्षेत्रों में बड़ी पटकनी दे दी है। संविधान बदल कर , आरक्षण ख़त्म करने का डर दिखा कर , हर महीने 8500 रुपए की लालच दिखा कर झंडा ऊंचा करने वाला विपक्ष नहीं जानता कि कोई अराजक महावत किसी हाथी को जब मिल जाता है तब हाथी बिना चूके महावत का काम तमाम कर देता है , क्षण भर में। आह भी भरने का समय नहीं देता , महावत को।
ऐसा अनेक बार देखा और सुना गया है।
यक़ीन न हो तो लोकसभा अध्यक्ष के हालिया चुनाव में यह घटना अभी-अभी गुज़री है। याद कर लें। पूर्व में नज़ीर और भी कई हैं। 2014 में भी , 2019 में भी। 2024 के इस सत्र में ऐसी घटनाएं और भी गुज़रने ही वाली हैं। कि आह भी लेने का अवकाश नहीं मिलने वाला। फिर जब सत्ता की जगह जब प्रतिपक्ष ही मदांध हो जाए तो लोकतंत्र का भगवान ही मालिक है। तब और जब समूचा विपक्ष किसी चुने हुए प्रधानमंत्री को निरंतर तानाशाह घोषित करते हुए , अघोषित आपातकाल की घोषणा करने का अभ्यस्त हो चला हो। जीतने पर भी नैतिक हार बताने की बीमारी हो गई हो जिस विपक्ष को , उस से रचनात्मक विपक्ष की उम्मीद करना बैल से दूध दूहने की कल्पना जैसा है। क्यों कि ऐसा नकारात्मक नेता प्रतिपक्ष किसी लोकसभा को कभी नहीं मिला। हिंसक और अराजक बयान ही जिस की आत्मा हो , आत्ममुग्धता ही जिस का सरोकार हो छल-कपट ही जिस की खेती हो , उस नेता प्रतिपक्ष की उपस्थिति में लोकसभा कभी किसी भी सत्र में निरापद ढंग से चल भी पाएगी , मुझे शक़ है।
इस लिए भी कि नेता प्रतिपक्ष को संसदीय अनुभव चाहे जितना हो , संसदीय परंपरा और मूल्यों का ज्ञान शून्य है। हिंसक बयान और अराजकता ही नेता प्रतिपक्ष की बड़ी पूंजी है। अराजकता ही उन की ताक़त है। तब जब कि नेता प्रतिपक्ष को शैडो प्राइम मिनिस्टर माना जाता है। लेकिन वर्तमान नेता प्रतिपक्ष प्राइम मिनिस्टर के पीछे-पीछे चलते हुए शैडो तो बन सकते हैं पर शैडो प्राइम मिनिस्टर कैसे बनेंगे , यह यक्ष प्रश्न है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर नेता प्रतिपक्ष ने जो रुख़ अपना कर अपने संसदीय ज्ञान का जो परिचय दिया है , वह विलक्षण है। भूतो न भविष्यति !
नेता प्रतिपक्ष का एकमात्र मक़सद है कि येन-केन-प्रकारेण लोकसभा को सुचारु रूप से चलने नहीं देना है। कोई बिल पास नहीं होने देना है। जिस भी क़ीमत पर हो अराजकता की चादर ओढ़ कर तानाशाह , तानाशाह का उच्चारण करते रहना है। नैतिक हार का उदघोष करते रहना है। मछली की आंख की तरह लक्ष्य साफ़ है कि जैसे भी हो सरकार गिर जाए। और कि बिना चुनाव दूसरी सरकार बने और नेता प्रतिपक्ष प्रधान मंत्री बन जाएं। नीतीश और नायडू किसी उम्मीद , किसी छींके की तरह हैं। छींका टूटे और बिल्ली का भाग्य खुल जाए , मुहावरा ही नहीं , पुरानी आसानी भी है।
छींका टूटता भी है और नहीं भी। क़िस्मत-क़िस्मत की बात है। राजनीति की नहीं।
साभार- https://sarokarnama.