नाटककार संजय कुंदन लिखित, मंजुल भारद्वाज अभिनीत एवं निर्देशित नाटक ‘मैं भी रोहित वेमुला’ जाति आधारित शोषण के विरुद्ध संवैधानिक प्रतिरोध है. नाटककार संजय कुंदन ने सदियों से जातिकुचक्र में फंसे भारतीय समाज पर प्रहार करते हुए दलित, वंचित और बहुजन सुमदाय के अपने संवैधानिक अधिकारों के संघर्ष को बखूबी कलमबद्ध किया है. यह नाटक भारतीय समाज को जाति की बेड़ियों से मुक्त हो संविधान सम्मत भारत के लिए उत्प्रेरित करता है ! यह नाटक अपने मानवीय हकों, अधिकारों की बुलंद आवाज है। न्याय, समता, समानता और विवेक के बल पर खड़ी चेतना की मशाल है, जिसकी लपटें सामंतशाही, वर्णवादी, दमनकारी व्यवस्था के अंधकार को मिटा देती हैं।
महात्मा गांधी की शहादत को स्मरण करते हुए, रोहित वेमुला के जन्मदिन पर आइये हम यह संकल्प करते हैं, की हम देश की साझा संस्कृती , विविधता और सद्विचार में विश्वास रखने वाले भारत देश के मालिक हैं। यह नाटक संविधान के मूल तत्व “हम भारत के लोग” यानि हम भारत के मालिक होने के विचार को जगाता है !
भारतीय लोकतंत्र को बचाने के लिए और संविधान के मूल्यों को आत्मसात करने के लिए, अपनी राजनैतिक चेतना को जगाते हैं…. अपनी चेतना से विकार और विचार के फ़र्क को समझते हैं और एक न्यायसंगत, संविधान सम्मत, विवेकी भारत का निर्माण करते हैं !
विगत 31 वर्षों से ‘थिएटर ऑफ़ रेलेवंस’ नाट्य सिद्धांत सतत सरकारी, गैर सरकारी, कॉर्पोरेटफंडिंग या किसी भी देशी विदेशी अनुदान के बिना अपनी प्रासंगिकता,अपने मूल्य और कलात्मकता के संवाद – स्पंदन से ‘इंसानियत की
पुकार करता हुआ जन मंच’ का वैश्विक स्वरूप ले चुका है.सांस्कृतिक चेतना का अलख जगाते हुए मुंबई से लेकर मणिपुर तक,सरकार के 300 से 1000 करोड़ के अनुमानित संस्कृति संवर्धन बजट के बरक्स ‘दर्शक’
सहभागिता पर खड़ा है “थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” रंग आन्दोलन!
“थिएटर ऑफ़ रेलेवंस” ने जीवन को नाटक से जोड़कर विगत 31 वर्षों से साम्प्रदायिकता पर ‘दूर से किसी ने आवाज़ दी’,बाल मजदूरी पर ‘मेरा बचपन’,घरेलु हिंसा पर ‘द्वंद्व’, अपने अस्तित्व को खोजती हुई आधी आबादी की आवाज़ ‘मैं औरत हूँ’ ,‘लिंग चयन’ के विषय पर ‘लाडली’ ,जैविक और भौगोलिक विविधता पर “बी-७” ,मानवता और प्रकृति के नैसर्गिक संसाधनो के निजीकरण के खिलाफ “ड्राप बाय ड्राप :वाटर”,मनुष्य को मनुष्य बनाये रखने के लिए “गर्भ” ,किसानो की आत्महत्या और खेती के विनाश पर ‘किसानो का संघर्ष’ , कलाकारों को कठपुतली बनाने वाले इस आर्थिक तंत्र से कलाकारों की मुक्ति के लिए “अनहद नाद-अन हर्ड साउंड्स ऑफ़ युनिवर्स” , शोषण और दमनकारी पितृसत्ता के खिलाफ़ न्याय, समता और समानता की हुंकार “न्याय के भंवर में भंवरी” , समाज में राजनैतिक चेतना जगाने के लिए ‘राजगति’ और समता का यलगार ‘लोक-शास्त्र सावित्री’, सभ्यता और संस्कृति पर कलंक बने वर्णवाद के वर्चस्ववाद का प्रतिरोध नाटक “गोधड़ी” ऐसे नाटक के माध्यम से फासीवादी ताकतों से जूझ रहा है!
कला हमेशा परिवर्तन को उत्प्रेरित करती है. क्योंकि कला मनुष्य को मनुष्य बनाती है. जब भी विकार मनुष्य की आत्महीनता में पैठने लगता है उसके अंदर समाहित कला भाव उसे चेताता है … थिएटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य सिद्धांत अपने रंग आन्दोलन से विगत 31 वर्षों से देश और दुनिया में पूरी कलात्मक प्रतिबद्धता से इस सचेतन कलात्मक कर्म का निर्वहन कर रहा है. गांधी के विवेक की राजनैतिक मिटटी में विचार का पौधा लगाते हुए थिएटर ऑफ़ रेलेवंस के प्रतिबद्ध कलाकार समाज की फ्रोजन स्टेट को तोड़ते हुए सांस्कृतिक चेतना जगा रहे हैं.
सूत्रधार इंदौर आयोजित
नाटक : “मैं भी रोहित वेमुला !”
कब : 30 जनवरी 2023,शाम 7 बजे
कहां : रीगल चौराहे पर, अहिल्या पुस्तकालय परिसर, दुआ सभागार, इंदौर, मध्यप्रदेश।
लेखक : संजय कुंदन
निर्देशक : रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज
कलाकार : मंजुल भारद्वाज, अश्विनी नांदेड़कर, सायली पावसकर,कोमल खामकर, तुषार म्हस्के.
प्रकाश नियोजन: संकेत आवले
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Manjul Bhardwaj
Founder – The Experimental Theatre Foundation www.etfindia.org
www.mbtor.blogspot.com
Initiator & practitioner of the philosophy ” Theatre of Relevance” since 12
August, 1992.