Sunday, November 24, 2024
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मंगल यान की यात्रा के पीछे की पूरी कहानी

भारत का मंगलयान देश की सबसे महत्वाकांक्षी 20 करोड़ किलोमीटर दूर की अंतरिक्ष यात्रा पर जरवाना हो चुका है। 1,350 किलोग्राम का यह उपग्रह एक अरब से अधिक भारतीयों के सपनों के साथ आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से रवाना किया गया है। मंगल ग्रह के लिए इस अंतरिक्ष अभियान से राष्ट्रीय गौरव भी जुड़ा हुआ है.   भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में सैटेलाइट विकसित किया है. इसरो ने इस मानवरहित सैटेलाइट को मार्स ऑर्बिटर मिशन नाम दिया है. इसकी कल्पना, डिजाइन और निर्माण भारतीय वैज्ञानिकों ने किया है और इसे भारत की धरती से भारतीय रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. भारत के पहले मंगल अभियान पर 450 करोड़ रु. का खर्च आया है और इसके विकास पर 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने काम किया है.  

 

इस भारतीय सैटेलाइट में भारत में बने करीब 15 किलोग्राम वजन के पांच अंतरिक्ष उपकरण होंगे जो मंगल के वायुमंडल के नमूने लेंगे, जिसके बारे में हमारी जानकारी बहुत कम है. दुनिया का वैज्ञानिक समुदाय पहली बार मीथेन गैस सेंसर मंगल ग्रह पर भेजने के भारत के प्रयास को लेकर काफी उत्साहित है. लाल ग्रह मंगल पर मीथेन गैस की उपस्थिति वहां कार्बन आधारित जीवन का पक्का सबूत होगी.   भारत के मंगल अभियान के लिए इसरो के प्रोग्राम मैनेजर एम. अन्नादुरै पुख्ता ढंग से यह बात कहते हैं कि मंगल यान वहां पर मीथेन के होने या न होने को ‘स्पष्ट’ रूप से साबित कर देगा. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मार्स एटमॉस्फेयर ऐंड वोलेटाइल इवॉल्यूशन मिशन (एमएवीईएन) के मुख्य इन्वेस्टिगेटर ब्रूस एम. जाकोस्की का कहना है, “मैं काफी उत्साहित हूं कि पहली बार मंगल की कक्षा में मीथेन गैस से जुड़ी विश्वसनीय जानकारी मिल सकेगी.”

 

इसके यह मायने निकाले जा सकते हैं कि मंगल पर कदम रखे बिना ही भारत इस बड़े सवाल का जवाब देना चाहता है कि क्या इस ब्रह्मंड में हम अकेले हैं? एक अत्याधुनिक कैमरा मंगल ग्रह के रंगीन चित्र भी लेगा, जबकि एक अन्य प्रयोग यह पता लगाने की कोशिश करेगा कि मंगल पर विरल वायुमंडल (थिन एटमॉस्फेयर) निरंतर कैसे बदलता रहता है.  

 

यह इस बात को समझने के लिए भी जरूरी है कि क्या कभी मंगल पर इंसानी बस्तियां बसाई जा सकती हैं. ग्रहों से जुड़ा आश्चर्यजनक संयोग है कि हाल ही में खोजा गया साइडिंग स्प्रिंग नाम का पुच्छल तारा 2014 में मंगल ग्रह के करीब से गुजरने वाला है और इस बात की पूरी संभावना है कि मंगलयान इस पुच्छल तारे के पिछले हिस्से से होकर गुजरेगा, जिससे उसे सही समय पर सही जगह होने का दुर्लभ मौका मिलेगा.

 

इसरो के चेयरमैन के. राधाकृष्णन का कहना है कि भारत का मंगल अभियान वास्तव में “टेक्नोलॉजी का प्रदर्शन्य” करने वाला है, जिससे दुनिया को यह दिखाया जा सकेगा कि भारत दूसरे ग्रहों तक भी छलांग लगा सकता है. अब तक सिर्फ रूस, जापान, चीन, अमेरिका और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने मंगल ग्रह तक जाने की कोशिश की है, जिनमें से सिर्फ अमेरिका और यूरोपियन स्पेस एजेंसी को सफलता मिली है.

 

1960 से 45 मिशन लॉन्च किए जा चुके हैं, जिनमें एक-तिहाई असफल रहे. 2011 में चीन के मिशन की असफलता सबसे ताजा उदाहरण है. अगर भारत मंगल ग्रह तक पहुंच गया तो पूरी तरह अपने दम पर यह कामयाबी हासिल करने वाला दुनिया का दूसरा देश होगा. नासा के एडमिनिस्ट्रेटर चाल्र्स बोल्डन ने भारत के इस पहले मंगल अभियान का समर्थन करते हुए कहा है, “अधिक से अधिक देशों का खोज से जुड़े प्रयासों खासकर मंगल खोज अभियान में हिस्सा लेना रोमांचक है.

 

इसमें हम कम्युनिकेशन और डाटा ट्रांसमिशन के जरिए सहयोग दे रहे हैं. हमारी भी उसमें भागीदारी है.”  बहुत से लोगों का मानना है कि यह 21वीं शताब्दी में एशिया में अंतरिक्ष होड़ की शुरुआत है. दो क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी भारत और चीन ग्रहों के बीच इस आधुनिक मैराथन में टक्कर ले रहे हैं. मंगल तक पहुंचने का तीसरा उम्मीदवार भी मैदान में है. 1998 में जापान का नोजोमी मार्स सैटेलाइट असफल रहा था.   

 

 वैसे तो अंतरिक्ष अभियान के लगभग हर पहलू में चीन ने भारत को मात दी है; उसने पहला मानव मिशन 2003 में भेजा था; उसका चंद्र मिशन भी भारत से पहले हुआ था फिर भी मंगल की यात्रा शायद भारत को बढ़त दिला देगी. नवंबर, 2011 में रूस के उपग्रह फोबोस ग्रंट पर सवार चीन का पहला मंगल यान यिंगहुओ-1 अंतरिक्ष में जाने में ही नाकाम हो गया था. इसरो के चेयरमैन का कहना है, “हम किसी से होड़ नहीं लगा रहे हैं. भारत के मंगल अभियान की अपनी प्रासंगिकता है.” फिर भी वे मानते हैं कि इस अभियान से कहीं न कहीं  ‘राष्ट्रीय गौरव’ जुड़ा है.”  

 

मंगलयान बनाने वाली टीम के मुखिया 50 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर सुब्बियन अरुणन ने बताया कि पिछले 15 महीने में अधिकतर रातें उन्होंने सैटेलाइट सेंटर में ही गुजारी हैं. अरुणन इस जल्दबाजी की एक अधिक तर्कसंगत वैज्ञानिक वजह बताते हैं. उनका कहना है कि मंगल ग्रह के लिए प्रक्षेपण का मौका हर 26 महीने में सिर्फ एक बार मिलता है. इस अवधि में हम पीएसएलवी जैसे कम शक्ति के लॉन्चर के जरिए भी मंगल तक पहुंच सकते हैं. अरुणन का कहना है कि इस जल्दबाजी की असली वजह ग्रहों की स्थिति में निरंतर होते बदलाव हैं.

 

भारत का यह यान 10 महीनों से ज्यादा समय के लिए अंतरिक्ष में रहेगा. अरुणन और उनके साथियों ने ज्यादातर छुट्टियों में भी काम किया और काम को डेडलाइन पर पूरा किया है.  भारत के मंगल अभियान की शुरुआत लीक से हटकर होगी क्योंकि पीएसएलवी मंगल यान को मंगल के सीधे रास्ते पर डालने के लिए पर्याप्त ताकत नहीं दे सकता. यह सैटेलाइट एक महीने तक पृथ्वी का चक्कर लगाएगा और सैटेलाइट में लगी रॉकेट मोटर के साथ उसमें जमा 852 किलो ईंधन का इस्तेमाल करते हुए इतना वेग हासिल कर लेगा कि नवंबर में 20 करोड़ किलोमीटर से भी लंबी यात्रा शुरू कर सकेगा. इस तरह पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से निकलने वाला यह भारत का पहला अंतरिक्ष यान होगा.     

 

भारत का ताकतवर रॉकेट पीएसएलवी अपने 25वें प्रक्षेपण में मंगल यान को अंतरिक्ष में ले जाएगा. सात मंजिला बिल्डिंग यानी 44 मीटर की ऊंचाई वाले पीएसएलवी रॉकेट का 300 टन का वजन पूरी तरह लदे हुए 747 बोइंग जंबो जेट के वजन के लगभग बराबर होगा. रॉकेट पर नजर रखने के लिए भारत पहली बार प्रशांत महासागर में दो विशेष जहाज तैनात करेगा.   नौ महीने के सफर के बाद सैटेलाइट जब मंगल के करीब पहुंचेगा तो मंगलयान की गति धीमी की जाएगी ताकि वह मंगल ग्रह के गुरुत्वाकर्षण में बंध सके.

 

एक बार ऐसा हो जाने पर यह यान अंडाकार कक्षा में घूमेगा और करीब छह महीने तक मंगल का अध्ययन करेगा.  इसरो के अनुसार इस मिशन की सबसे बड़ी चुनौती 20 से 40 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर मंगलयान से संचार संपर्क साधने की होगी. बंगलुरू से सैटेलाइट तक एकतरफ हुआ संदेश पहुंचने में कम-से-कम 20 मिनट लगेंगे. बंगलुरू के पास ब्यालालू में इस काम के लिए एक विशाल डिश एंटिना लगाया गया है.

 

सैटेलाइट और कंट्रोल रूम के बीच दोतरफा संपर्क में कम से कम 40 मिनट का अंतराल होगा. विमान की औसत गति 700 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. जरा-सी चूक होने पर करीब 9,000 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलता अंतरिक्ष यान आसानी से गुम हो सकता है. ऐसे किसी भी हादसे से बचने के लिए इसरो ने सैटेलाइट में चार कंप्यूटर लगाए हैं, जिससे सैटेलाइट पर पूरा नियंत्रण रह सके.

 

अब सवाल यह है कि जो देश अपनी 40 करोड़ जनता को आज भी बिजली नहीं दे सकता और जिसके 60 करोड़ निवासी खुले में शौच करते हैं क्या उसके लिए यह बहुत ऊंची छलांग है या शेख चिल्ली का पुलाव? इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर है कि आप विभाजन रेखा के किस तरफ  खड़े हैं.  

 

मशहूर अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने एक अखबार को बताया, “यह महाशक्ति बनने के भारत के अभिजात्य वर्ग के हवाई सपने का हिस्सा लगता है.” 2008 में भारत के पहले चंद्र अभियान चंद्रयान-1 के सूत्रधार रहे इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर इसे राष्ट्रीय फिजूलखर्ची मानते हैं. उनकी नजर में यह वैज्ञानिक मिशन कतई नहीं है.   इन तमाम तर्कों को खारिज करते हुए इसरो के चेयरमैन राधाकृष्णन का कहना है, “भारत शून्य से शिखर तक अंतरिक्ष में अपनी टेक्नोलॉजी संबंधी दक्षता के सहारे एक से दूसरे ग्रह तक यात्रा करने की क्षमता दिखा रहा है.” फिलहाल हम सिर्फ पूरे खेल को देख सकते हैं और नतीजे आने का इंतजार कर सकते हैं.   

लेखक डेस्टिनेशन मूनः इंडियाज क्वेस्ट फॉर मून, मार्स ऐंड बियोंड के लेखक हैं.  

साभारः इंडिया टुडे हिन्दी से

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