भाजपा ने मणिपुर विधानसभा चुनावों के नतीजों में 60 में से 21 सीटें जीती थी। बाद में उसने दूसरे दलों को साथ लेकर सरकार बना ली और पहली बार इस राज्य में भाजपा का राज हो गया। इन चुनावों में भाजपा ने कई मिथ तोड़े हैं। उसने कई ईसाई बहुल सीटों पर जीत हासिल कर यह भ्रम तोड़ा कि वह केवल हिंदुओं की पार्टी है। जैसे हेंगलेप से टी थांगजलम हाओकिप, थानलोन से वुंगजागिन वाल्टे, चूड़ाचंद्रपुर से वी हांगखानलियान, तामेंगलॉन्ग से सेम्युअल जेंडाई कामेई और कांपोपी से नेमचा किपगेन। ये सभी ईसाई हैं और जिन सीटों से जीते हैं वहां पर 99 प्रतिशत वोटर ईसाई हैं।
मणिपुर में भाजपा 0 से 21 सीटों पर पहुंची है। एक साल पहले ही उसने असम विधानसभा में 60 सीट जीतकर उत्तर-पूर्व के किसी राज्य में पहली बार अपने दम पर सरकार बनाई थी। मणिपुर में भारत की जीत का श्रेय नॉर्थईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) के संयोजक और असम के मंत्री हिमंत बिस्व सरमा, भाजपा के महासचिव राम माधव, युवा रणनीतिकार रजत सेठी, मणिपुर भाजपा के प्रभारी प्रहलाद पटेल और असम भाजपा सचिव जगदीश भुयान को दिया जाता है। लेकिन संघ परिवार की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
मणिपुर चुनावों के जिम्मेदारी संभालने वाले और 40 साल तक नागालैंड में काम करने वाले आरएसएस के वरिष्ठ नेता जगदम्बा माल ने बताया, ”यह बात सही है कि भाजपा ने काफी मेहनत की। लेकिन कोई यह ना भूले कि कई सालों से संघ परिवार के कई संगठन यहां इंफाल घाटी और पास के पहाड़ी इलाकों में मेहनत से काम कर रहे हैं। आदिवासी लोगों ने धार्मिक विश्वास से ऊपर उठकर हमारे कल्याणकारी कार्यक्रमों में भरोसा और सम्मान जताया है। यह भरोसा निश्चित रूप से वोटों में बदला है।”
मणिपुर में संघ से जुड़े कम से कम 15 संगठन सक्रिय हैं। कई तो 30 साल से यहां पर काम कर रहे हैं। भाजपा के लिए खुलेआम प्रचार करने के बजाय आरएसएस संगठन मतदान के दिन लोगों को घरों से बाहर लाने पर ध्यान देते हैं। आरएसएस के उत्तर असम प्रांत के प्रचार प्रमुख शंकर दास के अनुसार, ”जब आप घर-घर जाते हैं और कहते हैं कि वोटर्स को बाहर आना होगा तो संदेश साफ होता है।”
साभार- इंडियन एक्सप्रेस से