अपने स्व से मिली प्रेरणा और चतुर्दिक परिवेश से प्राप्त संवेदनाओं के समन्वित स्वरों का तरंगित आयाम जब वैचारिक रूप से साकार होता है तो सृजन सन्दर्भों के विविध पक्ष उभरने लगते हैं। यही सन्दर्भ सृजन मूल्यों को समर्पित व्यक्ति के लिए सामाजिक,सांस्कृतिक और साहित्यिक परिवेश का निर्माण करते हैं और वह अपने पथ पर अनवरत बढ़ता हुआ प्रेरणात्मक पुञ्ज प्रदान करता है। इन्हीं सन्दर्भों का बतियाता दस्तावेज़ है कृष्णा कुमारी की कृति – “कुछ अपनी कुछ उनकी ”
साक्षात्कार की यह कृति मात्र प्रश्नोत्तरी नहीं है वरन् व्यक्तित्व-कृतित्व का वह वार्तालाप है जो भीतर की चेतना और बाह्य परिवेश की संवेदना का विवेचन प्रस्तुत कर संवाद स्थापित करता है और प्रेरणात्मक अनुभवों को साझा करता है।
साक्षात्कार कर्ता कृष्णा कुमारी सहित इस संग्रह में विभिन्न क्षेत्रों में सृजनरत सोलह व्यक्तियों से लिए साक्षात्कार को संकलित किया गया है जिनमें सर्व श्री नरेंद्र कोहली, डॉ. रवीन्द्र अग्निहोत्री, डॉ. कमल किशोर गोयनका, उदित नारायण,विष्णु प्रभाकर, इब्राहिम ‘अश्क’, डॉ. विष्णु पंकज, डॉ. युगल किशोर शर्मा, भीष्म साहनी, जितेन्द्र निर्मोही, डॉ. वीरेन्द्र कुमार दुबे, डॉ. राम चरण महेन्द्र, डॉ. रोशन भारती, प्रो.(डॉ.)जमना लाल बायती एवं एयर इंडिया के पायलट व कैप्टीन से की गई बातचीत ।
यह साक्षात्कार संकलन अपने-अपने क्षेत्र में समर्पित भाव से कर्मरत व्यक्तियों के विचारों का उजास ही नहीं है वरन् अपने समय के साथ कदमताल करते हुए सजगता से आगे बढ़ते रहने की सीख का पुञ्ज भी है। साक्षात्कार लेने में कृष्णा जी ने यथा सम्भव उन साधनों का प्रयोग किया जिससे व्यक्ति विशेष को समग्रता से समझा जा सके यथा प्रश्नोत्तरी भेज कर,पत्र के माध्यम से और सीधे बातचीत। वहीं इन सभी साक्षात्कार देने वालों ने अपने मन की बातों को बेबाकी से उद्बोधित भी किया।
बातचीत में जीवन और जगत के विविध पहलुओं पर गहन विचार सामने आये तो अपने-अपने क्षेत्र की सृजन प्रक्रिया की सहज अभिव्यक्ति भी हुई। वहीं वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के लिए दिशाबोधक सन्दर्भ भी उजागर हुए।
बानगी देखें-
“करुणा ही मेरी प्रेरणा है ।”, “नए रचनाकारों से यही कहना चाहूँगा कि धैर्य रखो,सही रास्ते पर चलो,परिश्रम करो,आपना विकास करो।”-नरेन्द्र कोहली
“शिक्षा की जड़ें ऋषिऋण में होती हैं।”, “केवल रोजगारोन्मुखी शिक्षा की व्यवस्था बेरोजगारी दूर नहीं कर सकती।इसके लिए तो अर्थ व्यवस्था,उद्योग व्यवस्था और शिक्षा व्यवस्था को एक-दूसरे का पूरक बनाना होगा।”- डॉ. रवीन्द्र अग्निहोत्री
“रचनाकार अपना रास्ता स्वयं बनाये। “, “साक्षात्कार यदि हमारे ज्ञान में वृद्धि नहीं करता है तो ऐसे साक्षात्कार की कोई उपयोगिता नहीं है।”-डॉ. कमल किशोर गोयनका
“संगीत तो अथाह सागर है।”, “गीत तो गीत होता है, किसी भी भाषा का हो…” – उदित नारायण
” नए लेखक बड़े प्रतिभाशाली हैं,वह जो कुछ भी करें बड़े ध्यान से व पूरी ईमानदारी से करें और कर्म को ही धर्म समझें।” – विष्णु प्रभाकर
” अवाम को आज भी अच्छे गीतों की प्यास है।” – इब्राहिम ‘ अश्क ‘
” चित्रकला कविता लिखने जैसा ही कार्य है ” , ” हर व्यक्ति की कला के प्रति रूचि होती है।माहौल मिलने पर वह अभिव्यक्त कर सकता है।”- डॉ. युगल किशोर शर्मा।
” एक लेखक को संजीदा होना चाहिए” – जितेन्द्र निर्मोही
” संगीत आदमी को इंसान बनाता है।”- रोशन भारती
” लेखक सोद्देश्य-साहित्य का सृजन करे…उसके साहित्य में मनोरंजन हो,ज्ञान हो और वह समिष्टि- हित का ध्यान रखे।” – डॉ. विष्णु पंकज
” जनवादी विचारधारा मुझे विशाल स्तर पर जनजीवन से जोड़ती है।” – भीष्म साहनी
” मेरी दृष्टि में स्थायी महत्व का साहित्य वह है जो मानव कल्याण तथा पवित्र वैज्ञानिक भावना के साथ लिखा जाता है।”- डॉ. रामचरण महेंद्र
” मनुष्य भौतिक विकास को उद्देश्य बना कर अंधी दौड़ में भागे जा रहे हैं।”- प्रो.(डॉ.) जमना लाल बायती
” आदमी को इंसान बनाने के लिए व्यक्ति की मनोवृत्तियों एवं विचारों को परामर्श के माध्यम से परिवर्तित किया जा सकता है।”- डॉ. वीरेन्द्र कुमार दुबे
अन्ततः यही कि कृष्णा जी की यह साक्षात्कार -कृति सृजनशील व्यक्तियों के विचारों और धाराओं का वह समुच्चय है जिसमें समकालीन परिवेश की संवेदनाओं को बखूबी उभारा गया है वहीं कृतित्व की आभा से प्रेरणात्मक सन्दर्भ उजागर किये हैं।