साहित्यकार का काम स्थायी रूप से प्रतिपक्ष में खड़े रहना है : अशोक वाजपेयी
नई दिल्ली : राजकमल प्रकाशन समूह और ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर चौथे हिन्दी साहित्य उत्सव का आयोजन 24 मार्च को ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई। उसके बाद उद्घाटन व्याख्यान मशहुर कवि, साहित्यकार एवं आलोचक अशोक वाजपेयी ने दिया।
वाजपेयी जी के व्याख्यान का विषय था ‘निर्भय मन’। उन्होंने कहा, “हमारे यहाँ परंपरा में कहा गया है कि कुछ स्थायी भाव होते हैं, वैसे ही लेखक के कुछ स्थायी भय भी होते हैं।“
“लेखक को सबसे बड़ा डर होता है कि उसका लिखना व्यर्थ है और वह अंततः विफल होगा। अपर्याप्तता का बोध, परंपरा का डर, अकेले पड़ जाने का भय, दुर्व्याख्या का भय–ये सब होते हैं। कुछ भय हमारे समय में और बढ़ गए हैं। एक भय है सत्ता का, पिछले 50 सालों से हिंदी साहित्य सत्ता विरोधी रहा है। पहले भी व्यवस्था थी, लेकिन डर नहीं लगता था। अब डर लगने लगा है, झूठ की विपुलता का डर। कई बार संदेह होता है कि आपका अल्पसंख्यक सच बचेगा भी कि नहीं। लोकप्रियता का भय अब बहुत बढ़ गया है। इस समय में लेखक क्या करे, अच्छे लेखक कौन होंगे, मेरे हिसाब से अव्वल लेखक वह हैं जो सच बोलने की हिम्मत और हिमाक़त दोनों करे, उसका जोख़िम उठाए। बोलने के वक़्त चुप रहना या तो चतुरता है या कायरता है। अक्सर दोनों एक तरह की अवसरवादिता हैं। साहित्यकार का काम स्थायी रूप से प्रतिपक्ष में खड़े रहना है। जब प्रश्न पूछना द्रोह माना जा रहा हो, उस समय बोलना और प्रश्न पूछना लेखक का नैतिक कर्त है।“
कार्यक्रम के पहले सत्र का विषय था “स्त्री: जीवन और साहित्य के बीच” जिसमें मशहुर लेखिका अनामिका, गीतांजलि श्री, अल्पना मिश्र एवं सुजाता से बातचीत कर रही थीं दिल्ली विश्वविद्यालय की पीएचडी छात्रा अनुपम सिंह। बातचीत में कथाकार गीतांजलि श्री ने कहा, “एक स्त्री के भीतर, स्त्री होने के साथ-साथ और बहुत सारी पहचानें हैं, जब तक वो उसकी पहचान का हिस्सा नहीं बनेंगे, स्त्री का संघर्ष जारी रहेगा।“
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में “लेखन किसके लिए?” विषय पर बोलते हुए पल्प फिक्शन के मशहुर उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक ने कहा, “लेखक सिर्फ और सिर्फ पाठक के लिए लिखता है, पाठक कंज्यूमर है, जैसे हलवाई अपने लिए मिठाई नहीं बनाता है, ग्राहक के लिए बनाता है वैसे ही राइटर को रीडर बनाता है, राइटर अपने आप को नहीं बनाता है। रीडर कंज्यूमर है, आपका लिखा प्रोडक्ट है और मैं मैन्युफैक्चरर हूँ। हमारा कारोबार लिखना है।” इस सत्र के वक्ताओं में आलोचक एवं संपादक संजीव कुमार और भगवन्त अनमोल ने भी अपनी बात रखी। विभिन्न विषयों पर बेबाकी से अपनी बात रखने वाले मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार ने जानदार तरीके से सत्र का संचालन किया।
सत्र में बातचीत के बाद सुरेन्द्र मोहन पाठक की आत्माकथा के दूसरे भाग “हम नहीं चंगे बुरा न कोय” किताब के कवर का लोकार्पण हुआ। किताब राजकमल प्रकाशन से शीघ्र प्रकाशित होने वाली है।
कार्यक्रम का तीसरा सत्र कहानियों को समर्पित रहा। इस सत्र में साहित्यकार गौतम राजऋषि, सुजाता, विजयश्री तनवीर एवं हिमांशु वाजपयी ने अपने प्रकाशित नए उपन्यास एवं कहानी संग्रह से कुछ अंश पढ़कर सुनाए। सत्र के अंत में सुमन परमार ने लेखिका नमिका गोखले के उपन्यास “राग पहाड़ी” से एक छोटा सा अंश पढ़कर सुनाया। यह किताब नमिता गोखले की अंग्रेजी उपन्यास “Things To Leave Behind” का हिंदी अनुवाद है जिसके अनुवादक पुष्पेश पंत हैं।
चौथा सत्र लीजेंड्री राइटर मनोहर श्याम जोशी के नाम रहा। मनोहर श्याम जोशी ने हिंदी फ़िल्मों और डेली सोप ओपेरा के लिये भी लेखन किया था। इस मौके पर राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित संस्मरण “पालतू बोहेमियन” (मनोहर श्याम जोशी की स्मृति कथा) किताब का लोकार्पण भी किया गया। किताब के लेखक ब्लॉगर एवं अनुवादक प्रभात रंजन हैं। प्रभात रंजन ने मनोहर श्याम जोशी के जीवन से जुड़े अनेक वृत्तांत इस पुस्तक मे शामिल किये हैं। किताब न केवल दिलचस्प है, बल्कि प्रेरक और ज्ञानवर्द्धक भी हैं। स्टोरीटेल इंडिया के साथ पब्लिशर के रूप में जुड़े हुए गिरिराज किराडू ने सत्र का संचालन करते हुए प्रभात रंजन , पुष्पेश पन्त और मनोहर श्याम जोशी की सहधर्मिणी भगवती जोशी से बातचीत की।
दिन भर चलने वाले कार्यक्रम में पाठकों एवं श्रोताओं का उत्साह देखने लायक था। पांचवा सत्र कविता पर आधारित रहा। सत्र कविता – कुछ और रंग ने शब्दों का अद्भुत रंग बिखेरा जिसमे अनामिका, इला कुमार, प्रकृति करगेती, मृतुन्जय और सविता सिंह ने अपनी कविताएँ सुनाईं।
इसके बाद समय था एक मुलाक़ात अरुंधति राय के साथ का। ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर में अरुंधति रॉय की आगामी किताब—‘एक था डॉक्टर एक था संत’ किताब के कवर का लोकार्पण किया गया। यह किताब अंग्रेजी एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में एक साथ प्रकाशित की जा रही है। किताब का अनुवाद डॉ अनिल यादव ‘जयहिंद’ और रतन लाल ने किया है। राजकमल प्रकाशन समूह से प्रकाशित यह किताब पहले पेपरबैक संस्करण में आ रही है जिसका लोकार्पण 5 अप्रैल, 3 बजे, मावलंकर हॉल, कॉन्सटिट्यूशन क्लब ऑफ़ इंडिया में होगा।
अरुंधती रॉय ने अपनी किताब के बारे बात करते हुआ कहा “मै जब ये किताब लिख रही थी मै खुद बहुत ही हैरान थी, की हमारी जो कंडिश्निंग हुई है, हमारी हिस्ट्री को लेकर वो कई झूठ और ग़लत इंटरप्रिटेशन पर आधारित है। जो इतिहास हमें सिखाया जाता है उसपर भी कई सारे सवाल उठते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि गाँधी जी को लेकर जो उनकी साउथ अफ्रीका की कहानियां है उसमे भी कई झूठ हैं। मैंने इस किताब में अपना कोई भी इंटरप्रिटेशन या कनक्लूशन ड्रा नहीं किया है। मैंने सीधे-सीधे लोगों के लिखे हुए को कोट किया है।” किताब पर बोलते हुए अरुंधति ने आगे कहा, ”हमें अपने इतिहास को थोड़ा
ईमानदारी से देखना चाहिए, जब तक हम यह नहीं कर पाएंगे तब तक कोई भी चीज़ हमारे समाज को ठीक नहीं कर पायेगी।”
कायक्रम में शाम की चाय से पहले का सत्र था “शब्द – काग़ज से स्क्रीन तक”। इस विषय पर बातचीत के लिये डॉक्यूमेंट्री फ़िल्ममेकर अनवर जमाल, कथाकार गौतम राजऋषि, फ़िल्म समीक्षक मिहिर पंड्या शामिल थे। सत्र का संचालन स्टोरीटेल इंडिया के पब्लिशर गिरिराज किराडू ने किया। सत्र में अपनी बात रखते हुए मिहिर पंड्या ने कहा, “आज का डिजिटल दौर, जिसमें नए स्ट्रीमिंग सर्विस शामिल हैं, वो किताब पढ़ने जैसा ही अनुभव देते हैं। जैसे किताब पढ़ना एक निजी प्रक्रिया है, वैसे ही यह नए डिजिटल प्लेटफॉर्म भी अपने को इसी तरह पेश कर रहे हैं।“
ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर में संपन्न हिन्दी साहित्य महोत्सव पावर पैक सत्रों से भरा रहा। रविवार के दिन इतनी विभिन्न विषयों पर हुई शानदार एवं जानदार बातचीत ने उपस्थित सभी लोगों का दिल जीत लिया। इसके साथ कार्यक्रम का आख़िरी सत्र लेखक एवं दास्तानगो हिमांशु बाजपेयी की प्रस्तुति ‘दास्ताँ दास्तान फलों के राजा की’ रही। हास्य व्यंग्य की शैली में रची गयी इस दास्ताँ में किस्सों, शायरी और खतों के ज़रिये भारतीय समाज में आम की मौजूदगी बतायी गयी। दास्तान में ग़ालिब, जोश मलिहाबादी, निराला, बादशाह अकबर अदि तमाम आम प्रेमियों के किस्से शुमार थे। आमों के लिए मशहूर कसबा मलीहाबाद के लोगों के किस्से भी बड़ी मज़ेदार तरीके से हिमांशु ने सुनाएं। सुनने वालों ने इस दास्तान का भरपूर लुत्फ़ लिया।
इस अनोखे कलेवर वाले कार्यक्रम हिन्दी साहित्य महोत्सव के चौथे सीज़न पर अपनी राय रखते हुए राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा “एक दिवसीय “हिन्दी साहित्य उत्सव ” गागर में सागर जैसा रहा। थोड़े से समय में अशोक वाजपेयी, अरुंधति रॉय, अनामिका, सविता सिंह और सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे स्थापित लेखकों से लेकर हिमांशु बाजपेयी और सुजाता जिनकी पहली किताब आयी है–तक से हम परिचित हुए। कविता, कहानी, दास्तान, विमर्श से लेकर फिल्म तक पर चर्चा हुई। भगवती जोशी और पुष्पेश पंत ने मनोहर श्याम जोशी पर आई प्रभात रंजन की संस्मरण की किताब को यथार्थपरक और संतुलित बताया। नौजवान पाठक दिन भर अपनी अपनी पसन्द के लेखकों से मिले। दिन का इससे बेहतर उपयोग हो नहीं सकता।”
प्रीति पॉल, निर्देशक एपीजे सुरेन्द्र ग्रुप, ने इस अवसर पर कहा “ऑक्सफ़ोर्ड बुकस्टोर में आयोजित साहित्यिक कार्यक्रमों के माध्यम से हम लेखक और पाठक के बीच दूरी कम करने का प्रयास करते हैं। इसी श्रृंखला में हिंदी साहित्य महोत्सव हमारे लिए गर्व का अवसर है। हिंदी न सिर्फ हमारी राष्ट्रभाषा है, बल्कि विश्व में बोली जाने वाली श्रेष्ठ तीन जुबानों में भी शामिल है। यह हमारे लिए बहुत ही गर्व की बात है की बीते वर्षों की तरह इस साल ऑक्सफ़ोर्ड बुक्स्टोर हिंदी साहित्य उत्सव में लिटरेचर के बड़े दिग्गज जैसे अशोक वाजपेयी, अरुंधति रॉय, गौतम राजऋषि , सुरेंद्र मोहन पाठक जैसे दिग्गज अपने विचार पाठकों के साथ साझा कर रहे हैं।“
Best wishes,
Faraz Rizvi
9711893590