दो टूक : जिंदगी संबंधों और भावनाओं की उथल-पुथल का नाम ही है पर अगर उसे कोई आकर संभाल ले तो वो बस एक आगोश में सिमट जाती है निर्देशक शोनाली बोस की कल्कि कोइचलिन, रेवती और सयानी गुप्ता के अभिनय वाली फिल्म मार्गरिटा विद ए स्ट्रॉ.
कहानी : फिल्म की कहानी के केंद्र में सेरेब्रल पाल्सी की बीमारी से ग्रस्त बिंदास लड़की लायला (कल्कि कोचलिन) है. लेकिन व्हील चेयर पर बैठी लायला के सपने मरे नहीं है. लायला का छोटा भाई मोनू (मल्हार खुशू), मां (रेवती) और पापा ( कुलजीत सिंह) लायला का ध्यान रखते हैं. लायला को गाना लिखने का शौक है. पर एक दिन जब लायला आगे की पढाई के लिए लायला का ऐडमिशन न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी जाती है और उसकी दोस्ती खानुम (सयानी गुप्ता) से होती है तो सबकुछ बदल जाता है. धीरे धीरे इन्हें एक-दूसरे से इश्क होने लगता है. यहीं से लायला समलैंगिक रिश्तों के साथ-साथ पारिवारिक रिश्तों की कश्मकश में भी फंस जाती है.
गीत संगीत : फिल्म में मिकी मेक्लिरी का संगीत है लेकिन बैक ग्राउंड में उनका संगीत और गीतों के कुछ स्वर कहानी कोई नया विकास देते हैं.
अभिनय : कल्कि कोइचलिन एक फ्रेंच अभिनेत्री हैं लेकिन उन्होंने ने लैला को आत्मसात कर लिया है. हाव-भाव और अभिव्यक्ति में वह कोई कसर नहीं रहने देतीं. कल्कि ने इस किरदार को आंतरिक रूप से पर्दे पर जीवंत किया है. सेरेब्रल पालसी की वजह से किरदार की गतिविधियों में आने वाली स्वाभाविक भंगिमाओं को जज्ब करने के साथ ही उन्होंने उसकी मानसिक क्षमताओं को भी सुंदर तरीके से अंकित किया है. सयानी गुप्ता नयी हैं लेकिन प्रभावित करती हैं. रेवती ने मां की ममता और भावना के बीच सुंदर संतुलन बिठाया है.
निर्देशन :मार्गरिटा विद ए स्ट्रॉ दरअसल एक नयी तरह की फिल्म है जहां हम भारतीय समाज की कुछ प्रतिबद्धताओं और प्रतिबंधों एक साथ सामने आते हैं. हालांकि फिल्म में समलैंगिक रिश्तों को सिर्फ एक आधार मानकर कहानी रची गयी है लेकिन लायला के माध्यम से वो एक साथ अनेक सामाजिक ग्रंथियों को छूती हैं. गौर से देखा जाए तो यह लायला के बहाने संबंधों और भावनाओं कहानी है. संबंधों के इन पहलुओं को पहले किसी निर्देशक ने कभी इतने नजदीक से नहीं रचा.
फिल्म क्यों देखें : कल्कि के शानदार अभिनय के लिए.
फिल्म क्यों ना देखे : अगर इसे सिर्फ समलैंगिक रिश्तों की कहानी मान रहे हैं.