शब्द छोटे हैं पर अश्रु बहाते हैं,,
बात है ” जश्ने – आज़ादी” की,
सिंदूरी रंग था लहू का ,
लेकिन कहानी थी वो सिंदूर के शहादत की ।
हुए बलिदान वो वीर थे महान,
सुखदेव, राजगुरु थे कुछ नाम,
किताबों की कोख में ये खेले,
लेकिन कहानी थी वो कोख के शहादत की।।
घर छूटा,शहर छूटा,सरहद टूटी ,
खौफ़जदा नन्ही आंखें थीं,
बन्दूक बनी हाथ का खिलौना,
लेकिन कहानी थी वो बचपन के शहादत की।
जोश -ए – आज़ादी का आलम कुछ यूं था,,
अंग्रेज़ की छाती पर
लिखी कहानी थी शहादत की।
कौमी एकता का बुलन्द वो नारा,
न कोई हिन्दू न मुसमान,
राम के घर ईद थी,
किसी रहीम के घर दिया जला,
आज़ादी की चिता में हर व्यक्ति जला
क्योंकि कहानी थी वो धर्म के शहादत की।
वो जुनून,वो जज़्बा खो गये कहीं,
आज़ाद होकर भी बंध गए कहीं,
कुछ प्रश्नों में उलझे रह गये,
जिन्ना सही थे या गांधी,
ये पूछते रह गये,
क्यों ?
क्योंकि ये कहानी है हमारे विचारों के शहादत की।
लेखिका -शिखा अग्रवाल,
1- एफ -6, ओल्ड हाउसिंग बोर्ड, शास्त्री नगर, भीलवाड़ा, राजस्थान।